दिल्ली उच्च न्यायालय ने 05 जनवरी 2018 को दिए एतिहासिक फैसले में कहा कि प्रादेशिक सेनाओं में महिलाएं भी भर्ती हो सकती हैं. अदालत ने कहा कि महिलाओं पर इस प्रकार का प्रतिबंध लगाने वाला कोई भी प्रावधान संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों के खिलाफ है.
प्रादेशिक सेना नियमित सेना के बाद दूसरी पंक्ति की रक्षा सेना होती है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने कहा कि प्रादेशिक सेना अधिनियम की धारा 6 में ‘कोई भी व्यक्ति’ शब्दों में पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल हैं. अदालत ने यह भी कहा कि अधिनियम का कोई भी प्रावधान जो प्रादेशिक सेना में महिलाओं की भर्ती पर रोक या प्रतिबंध लगाता है, वह संविधान के तहत प्रदत्त समता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है.
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दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय
• कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने कहा कि प्रादेशिक सेना अधिनियम 1948 की धारा 6 में ‘कोई भी व्यक्ति’ शब्दों में पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल हैं.
• अदालत ने यह भी कहा कि अधिनियम का कोई भी प्रावधान जो प्रादेशिक सेना में महिलाओं की भर्ती पर रोक या प्रतिबंध लगाता है वह संविधान के तहत प्रदा समता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है.
• उच्च न्यायालय ने वकील कुश कालरा की जनहित याचिका पर यह फैसला दिया. इस याचिका में प्रादेशिक सेना में महिलाओं की नियुक्ति के मामले में भेदभाव का आरोप लगाया गया है.
• याचिकाकर्ता ने प्रादेशिक सेना में महिलाओं की नियुक्ति नहीं करके उनके प्रति संस्थागत भेदभाव का आरोप लगाया गया था.
प्रादेशिक सेना क्या है?
प्रादेशिक सेना एक ऐसा संगठन है जिसमें स्वयंसेवकों को आपात स्थिति के समय देश की रक्षा करने के लिए सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है. यह एक प्रकार से भारतीय सेना की एक ईकाई तथा सेवा पंक्ति है. इसके स्वयंसेवकों को प्रतिवर्ष कुछ दिनों का सैनिक प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर देश की रक्षा के लिये उनकी सेवायें ली जा सकें. सामान्य श्रमिक से लेकर सुयोग्य प्राविधिज्ञ तक भारत के सभी नागरिक, जो शारीरिक रूप से समर्थ हों, इसमें भर्ती हो सकते हैं.
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