राज्यसभा चेयरमैन वेंकैया नायडू ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग (Impeachment Motion) के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. कांग्रेस की अगुवाई में सात विपक्षी पार्टियों ने उपराष्ट्रपति के सामने ये प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन कानूनी सलाह के बाद वेंकैया नायडू ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है.
महाभियोग नोटिस कैसे हुआ ख़ारिज
• उपराष्ट्रपति ने इसको लेकर अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल सहित संविधानविदों और कानूनी विशेषज्ञों के साथ प्रस्ताव पर विचार-विमर्श करने के बाद ये फैसला लिया.
• उपराष्ट्रपति द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार यह महाभियोग राजनीति से प्रेरित था. महाभियोग प्रस्ताव पर सात रिटायर्ड सासंदों के दस्तखत होने की वजह से राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है.
• उपराष्ट्रपति का मानना है कि सांसदों द्वारा मुख्य न्यायाधीश पर लगाए गये आरोप तथ्यों के आभाव में बेबुनियाद साबित होते हैं.
गौरतलब है कि सात राजनीतिक पार्टियों के 60 से ज्यादा सांसदों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने का नोटिस दिया था. महाभियोग नोटिस पर हस्तााक्षर करने वाले सांसद कांग्रेस, एनसीपी, सीपीआई-एम, आईयूएमएल, सीपीआई, सपा और बसपा पार्टी से थे. इन पार्टियों के नेताओं ने संसद में मुलाकात की और सीजेआई के खिलाफ महाभियोग के नोटिस को अंतिम रूप दिया.
कुछ अन्य पार्टियों जैसे आरजेडी, टीएमसी, बीजेडी, डीएमके, अन्नाद्रमुक, टीडीपी, टीआरएस ने इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया. आजाद भारत में अब तक किसी भी चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग नहीं चलाया गया है.
महाभियोग नोटिस क्यों ?
जज बीएच लोया केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस और 6 अन्य विपक्षी दलों ने भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) दीपक मिश्रा पर ‘दुर्व्यवहार’ और ‘पद के दुरुपयोग’ का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया. राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में विपक्षी नेताओं ने महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को सौंपा. महाभियोग प्रस्ताव पर कुल 71 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं, जबकि महाभियोग के लिए 50 सदस्यों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं.
विपक्ष पार्टियों द्वारा दिए गये नोटिस में महाभियोग के लिए निम्नलिखित कारण बताए गये हैं:
• विपक्ष के अनुसार, कुछ मामलों को विभिन्न पीठ को आवंटित करने में अपने पद एवं अधिकारों का दुरुपयोग किया गया.
• विपक्षी दलों ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश पर प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट से संबंधित आरोप हैं. इस मामले में संबंधित व्यक्तियों को गैरकानूनी लाभ दिया गया. इस मामले को प्रधान न्यायाधीश ने जिस तरह से देखा उसे लेकर सवाल उठते हैं.
• मीडिया में आने वाले 4 जज बताना चाहते थे कि सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ सही नहीं चल रहा है, लेकिन उन्हें अनदेखा किया गया.
• जमीन का अधिग्रहण करना, फर्जी एफिडेविट लगाना और सुप्रीम कोर्ट के जज बनने के बाद 2013 में जमीन को सरेंडर करना.
मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया
• मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर युक्त महाभियोग प्रस्ताव की जरूरत होती है.
• इसके बाद ये प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है. इसके बाद इसे राज्यसभा या लोकसभा के स्पीकर को सौंपना होता है.
• राज्यसभा या लोकसभा स्पीकर पर निर्भर करता है कि वो इस प्रस्ताव पर क्या फैसला लेते हैं. वे इसे मंजूर अथवा नामंजूर भी कर सकते हैं.
• यदि राज्यसभा या लोकसभा स्पीकर इस प्रस्ताव को मंजूर करते हैं तो आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन होता है.
• इसमें सुप्रीम कोर्ट का एक जज, एक हाईकोर्ट जज और एक विधि संबंधी मामलों का जानकार (जज, वकील या स्कॉलर) शामिल होता है.
• समिति द्वारा लगाए गये आरोपों की जांच करके सदन में रिपोर्ट पेश की जाती है फिर वहां से दूसरे सदन में भेजी जाती है.
• यदि इस रिपोर्ट को दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत मिलता है महाभियोग पास हो जाता है.
• इसके बाद राष्ट्रपति अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए मुख्य न्यायाधीश को हटाने का आदेश दे सकते हैं.
भारत में इससे पहले महाभियोग
• सुप्रीम कोर्ट के जज वी. रामास्वामी को महाभियोग का सामना करने वाला पहला जज माना जाता है, हालांकि अब तक किसी भी जज को महाभियोग के कारण नहीं हटाया गया. उनके खिलाफ मई 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था.
• सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन के खिलाफ वर्ष 2009 में 75 राज्यसभा सांसदों ने हस्ताक्षर युक्त पत्र तत्कालीन राज्यसभा चेयरमैन और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को सौंपा था. दिनाकरन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
• कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन ने महाभियोग के बाद वर्ष 2011 में इस्तीफा दे दिया था. सेन के खिलाफ राज्यसभा में प्रस्ताव पास हो गया था, जबकि लोकसभा में पास होने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था.
• वर्ष 2015 में गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस जेबी पर्दीवाला के ख़िलाफ़ जाति से जुड़ी अनुचित टिप्पणी करने के आरोप में महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन उन्होंने अपनी टिप्पणी वापिस ले ली थी और प्रस्ताव रुक गया था.
• वर्ष 2015 में ही मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस एसके गंगेले के खिलाफ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन आरोप साबित नहीं हो सके.
• आंध्र प्रदेश और तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के ख़िलाफ़ 2016 और 17 में दो बार महाभियोग लाने की कोशिश की गई, लेकिन प्रस्तावों को समर्थन नहीं मिला.
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राज्यसभा चेयरमैन वेंकैया नायडू ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग (Impeachment Motion) के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. कांग्रेस की अगुवाई में सात विपक्षी पार्टियों ने उपराष्ट्रपति के सामने ये प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन कानूनी सलाह के बाद वेंकैया नायडू ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है.
महाभियोग नोटिस कैसे हुआ ख़ारिज
· उपराष्ट्रपति ने इसको लेकर अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल सहित संविधानविदों और कानूनी विशेषज्ञों के साथ प्रस्ताव पर विचार-विमर्श करने के बाद ये फैसला लिया.
· उपराष्ट्रपति द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार यह महाभियोग राजनीति से प्रेरित था. महाभियोग प्रस्ताव पर सात रिटायर्ड सासंदों के दस्तखत होने की वजह से राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है.
· उपराष्ट्रपति का मानना है कि सांसदों द्वारा मुख्य न्यायाधीश पर लगाए गये आरोप तथ्यों के आभाव में बेबुनियाद साबित होते हैं.
गौरतलब है कि सात राजनीतिक पार्टियों के 60 से ज्यादा सांसदों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने का नोटिस दिया था. महाभियोग नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले सांसद कांग्रेस, एनसीपी, सीपीआई-एम, आईयूएमएल, सीपीआई, सपा और बसपा पार्टी से थे. इन पार्टियों के नेताओं ने संसद में मुलाकात की और सीजेआई के खिलाफ महाभियोग के नोटिस को अंतिम रूप दिया.
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