हृदयनाथ दीक्षित उत्तर प्रदेश विधानसभा के 23वें स्पीकर बने

Mar 31, 2017, 09:35 IST

उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष चुने जाने के बाद हृदय नारायण ने कहा कि वे सदन में अधिक से अधिक बैठकें कराने का प्रयास करेंगे तथा सदन में चर्चाओं, वाद-विवाद और संवाद कराने का प्रयत्न करेंगे.

उत्तर प्रदेश विधानसभा ने 30 मार्च 2017 को बीजेपी के वरिष्ठ नेता हृदयनाथ दीक्षित को प्रदेश विधानसभा का अध्यक्ष चुना. वे उन्नाव स्थित भगवंतननगर के विधायक भी रह चुके हैं. वे उत्तर प्रदेश विधानसभा के 23वें अध्यक्ष चयनित किए गये.

अध्यक्ष चुने जाने के बाद हृदयनाथ ने कहा कि वे सदन में अधिक से अधिक बैठकें कराने का प्रयास करेंगे तथा सदन में चर्चाओं, वाद-विवाद और संवाद कराने का प्रयत्न करेंगे.

चयन प्रक्रिया

•    प्रोटेम स्पीकर फतेह बहादुर के निर्देश पर प्रमुख विधानसभा सचिव ने राज्यपाल के आदेश को पढ़ कर सुनाया.

•    प्रोटेम स्पीकर ने जानकारी दी कि अध्यक्ष पद के लिए सिर्फ हृदयनाथ दीक्षित की ओर से सात पर्चे दाखिल हुए हैं.

•    घोषणा की गयी कि हृदयनाथ दीक्षित के खिलाफ कोई नामांकन पत्र दाखिल न होने से उन्हें सर्वसम्मति से विधानसभा अध्यक्ष चुना जाता है.

•    इसके साथ ही प्रोटेम अध्यक्ष ने नेता सदन और नेता प्रतिपक्ष से हृदयनाथ दीक्षित को ढूंढ कर लाने और उन्हें अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाने को कहा.

छिपने की परंपरा


उत्तर प्रदेश विधानसभा की परम्परा रही है कि जिस नेता को विधानसभा का अध्यक्ष चुना जाता है, वह घोषणा के दौरान विधान भवन के किसी कमरे में छिप पर बैठ जाता है. सदन नेता तथा प्रतिपक्ष नेता उसे खोज कर सदन में लाते हैं और अध्यक्ष की कुर्सी सौंपते हैं. हालांकि हृदयनाथ दीक्षित ने इस परम्परा को तोड़ा. वह सदन में ही पीछे की सीट पर बैठे थे जहां से मुख्यमंत्री, संसदीय कार्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष उन्हें हाथ से पकड़ कर अध्यक्ष की पीठ तक ले गए और कुर्सी पर बैठाया.

पद संभालने के बाद हृदयनाथ दीक्षित ने कहा अध्यक्ष को यह परम्परा ब्रिटिश काल की है. वह इसकी निंदा नहीं करते लेकिन आज के समय में उस परपाटी को आगे बढ़ाना उचित भी नहीं है.

परंपरा का इतिहास


नव निर्वाचित विधानसभा अध्यक्ष हृदयनाथ दीक्षित ने इस परम्परा के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि यह परंपरा ब्रिटिश कार्यकाल में स्पीकर का कार्य उस समय के राजा और रानी को संदेश देना होता था. उस समय छह स्पीकरों की हत्या हो गई थी. इन हत्याओं के बाद जब नया स्पीकर चुना गया, तो वह डर के मारे अपने गांव में जाकर छिप गया था और उसे खोज कर अध्यक्ष के पद पर बैठाया गया था. उस समय राजा और स्पीकर के बीच द्वंद्व रहता था लेकिन अब ऐसा नहीं है इसलिए उस परम्परा को कायम रखना हास्यास्पद है.

Gorky Bakshi is a content writer with 9 years of experience in education in digital and print media. He is a post-graduate in Mass Communication
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