विज्ञान पत्रिका दि लैंसेट में 18 मई 2016 को प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक चीन और भारत विश्व भर के एक-तिहाई मानसिक मरीजों का घर हैं. लेकिन इनमें से महज कुछ ही लोगों को चिकित्सीय मदद मिल पाती है.
यह अध्ययन ‘चीन-भारत मेंटल हेल्थ अलायन्स सीरीज’ के शुभारम्भ के उपलक्ष्य में जारी की गयी.
इससे संबंधित मुख्य तथ्य:
• इस रिसर्च के मुताबिक सबसे अधिक आबादी वाले इन दो देशों में मानसिक रोगियों की संख्या अच्छी आमदनी वाले सारे देशों के कुल मानसिक मरीजों से ज्यादा है.
• खासकर भारत में यह बोझ आने वाले दशकों में काफी बढ़ता जाएगा. अनुमान के मुताबिक यहां मनोरोगियों की तादाद 2025 तक एक चौथाई और बढ़ जाएगी.
• चीन में जन्मदर को रोकने के लिए महज एक बच्चे की सख्त नीति है. इसका स्वाभाविक असर चीन में तेजी से बढ़ती मानसिक बीमारी की रोकथाम पर भी पड़ने की उम्मीद जताई गई है.
• चीन में महज 6 प्रतिशत मानसिक मरीजों का उपचार हो पाता है.
• चीन के ग्रामीण इलाकों में मानसिक स्वास्थकर्मियों का भारी अभाव है. ठीक इसी तरह भारत मंय भी मानसिक मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाएं मिल पाना मुश्किल है.
• दोनों ही देशों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं के बजट का 1 प्रतिशत से भी कम खर्च किया जाता है.
• अमेरिका में यह 6 प्रतिशत है और जर्मनी और फ्रांस में यह 10 प्रतिशत या उससे भी ज्यादा है.
• दोनों ही देशों में योग या चीनी चिकित्सकीय पद्धति तथा पारंपरिक तरीकों को बढ़ावा देकर मानसिक स्वास्थ की चुनौतियों से निपट सकते है.
चीन-भारत मेंटल हेल्थ अलायन्स सीरीज के बारे में:
• चीन-भारत मेंटल हेल्थ अलायन्स सीरीज में भारत और चीन के विशेषज्ञों के अलावा बाकी देश के विशेषज्ञ भी शामिल है.
• इसका मकसद दोनों देशों के मेंटल हेल्थ से सम्बंधित शोधकर्ताओं के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देना है.
• विक्रम पटेल (भारत) और माइकल आर फिलिप्स इस सीरीज के अध्यक्ष है.

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