BrahMos missile: आत्मनिर्भर भारत की एक और मिसाल पेश करते हुए इंडियन नेवी ने स्वदेशी सीकर और बूस्टर के साथ ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल का अरब सागर में सफल परीक्षण किया.
नेवी के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने कहा, "भारतीय नौसेना ने DRDO द्वारा डिजाइन किए गए स्वदेशी सीकर और बूस्टर से लैस ब्रह्मोस मिसाइल से एक सटीक टारगेट को अटैक किया गया. उन्होंने आगे कहा कि यह टेस्ट, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को मजबूत करता है."
The missile test was carried out from a Kolkata-class guided missile destroyer warship. BrahMos Aerospace is continuously working on increasing indigenous content in the missile: Indian navy officials pic.twitter.com/6lh15V1WA9
— ANI (@ANI) March 5, 2023
ब्रह्मोस मिसाइल टेस्टिंग हाइलाइट्स:
यह टेस्टिंग कोलकाता कैटेगरी के निर्देशित मिसाइल विध्वंसक युद्धपोत से किया गया. मिसाइल के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ब्रह्मोस एयरोस्पेस लगातार काम कर रहा है.
इस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को पनडुब्बी, जहाज आदि से लांच किया जा सकता है. देश के समुद्रीय सीमा की रक्षा के उद्देश्य से इस टेस्ट को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के युद्धपोत रोधी संस्करण की पिछली टेस्टिंग अप्रैल 2022 में की गयी थी. गौरतलब है कि, ब्रह्मोस मिसाइल के कई वर्जन उपलब्ध हैं. ब्रह्मोस के एयर-लॉन्च, लैंड-लॉन्च, शिप-लॉन्च, सबमरीन-लॉन्च वर्जन की टेस्टिंग की जा चुकी है.
ब्रह्मोस मिसाइल की पहली टेस्टिंग:
ब्रह्मोस की पहली टेस्टिंग वर्ष 2001 में की गयी थी. ब्रह्मोस मिसाइल के विभिन्न संस्करण का विकास तेजी से किया जा रहा है. इन मिसाइल को लैंड, युद्धपोतों, पनडुब्बियों और लड़ाकू विमानों से लांच किया जा सकता है. 2001 के बाद से अब तक कई बार ब्रह्मोस मिसाइलों को अपग्रेड किया जा चुका है.
ब्रह्मोस मिसाइलों का विकास भारत और रूस एक साथ मिलकर कर रहे है जिसके लिए एक संयुक्त उपक्रम ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की गयी है. इसकी गति 2.8 मैक है जो ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना अधिक है.
ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्यात:
ब्रह्मोस मिसाइलों के निर्माण और उपयोग के अतिरिक्त भारत इसका निर्यात भी शुरू कर दिया है. पिछले वर्ष जून में ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड ने इन मिसाइलों के निर्यात के लिए फिलीपींस से लगभग 37.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर का एक करार किया था.
ब्रह्मोस मिसाइलों की ताकत और मारक क्षमता को देखते हुए फिलीपींस के अलावा अन्य दूसरे देश भी इसकी खरीद में रूचि दिखा रहे है.
ब्रह्मोस नाम कैसे मिला?
इस मिसाइल सिस्टम का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है. ब्रह्मोस रूस के NPOM और भारत के DRDO का एक संयुक्त उद्यम है.
ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड के बारें में:
ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड भारत और रूस का एक संयुक्त एयरोस्पेस और रक्षा निगम है, जो मुख्य रूप से ब्रह्मोस क्रूज मिसाइलों के निर्माण से जुड़ा हुआ है.
इसकी स्थापना वर्ष 1998 में की गयी थी. यह भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और रूस के NPOM का एक संयुक्त उद्यम है. इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है.
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