भारतीय अनुसंधानकर्ताओं ने कोविड – 19 के जीनोम अनुक्रमण पर काम शुरू किया

Apr 9, 2020, 14:27 IST

नोवल कोरोना वायरस वायरस का एक नया रूप है. इस अध्ययन से वायरस के विकास को समझने में मदद मिलने के साथ ही यह भी जानकारी मिलेगी कि, यह वायरस कितना विविध है और यह कितनी तेजी से विकसित हो सकता है और इस वायरस के भावी पहलू क्या हो सकते हैं.

Indian Researchers start working on genome sequencing of COVID 19 in Hindi
Indian Researchers start working on genome sequencing of COVID 19 in Hindi

जीनोमिक्स और एकीकृत जीवविज्ञान संस्थान (IGIB), नई दिल्ली और कोशिकीय और आणविक जीवविज्ञान केंद्र (CCMB), हैदराबाद के शोधकर्ताओं ने नोवल कोरोना वायरस के जीनोम अनुक्रमण पर अनुसंधान कार्य करना शुरू कर दिया है. ये दोनों ही संस्थान वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान केंद्र (ICSR) के सहयोगी संस्थान हैं.

यह एक नया वायरस है और इस अनुसंधान का उद्देश्य इस वायरस के विभिन्न पहलुओं के बारे में सटीक जानकारी हासिल करना है. यह अध्ययन वायरस के विकास को समझने के साथ यह समझने में भी मदद करेगा कि यह वायरस कितनी तेजी से फ़ैल सकता है. जिन रोगियों में कोविड – 19 का परीक्षण सकारात्मक पाया गया है, उनसे नमूने प्राप्त करके इस वायरस के  अनुक्रमण पर अनुसंधान किया जा सकता है. 

उद्देश्य:

नोवल कोरोना वायरस वायरस का एक नया रूप है. इस अध्ययन से वायरस के विकास को समझने में मदद मिलने के साथ ही यह भी जानकारी मिलेगी कि, यह वायरस कितना विविध है और यह कितनी तेजी से विकसित हो सकता है और इस वायरस के भावी पहलू क्या हो सकते हैं. 

आखिर यह जीनोम अनुक्रमण की विधि क्या है?

जीनोम अनुक्रमण विधि ही किसी भी जीव के जीनोम के पूर्ण डीएनए अनुक्रमण को निर्धारित करती है. इस अनुसंधान में सही परिणाम पाने के लिए, बहुत बड़ी संख्या में नमूनों के अध्ययन की आवश्यकता होती है. पर्याप्त डाटा के बिना, दिए गए निष्कर्ष गलत या अपूर्ण हो सकते हैं.

जीनोम अनुक्रमण विधि: मुख्य विशेषताएं 

• जीनोम अनुक्रमण पर अनुसंधान कार्य करने के लिए बड़ी संख्या में नमूनों की आवश्यकता होती है, इसलिए जिन रोगियों के परीक्षण सकारात्मक पाए गए हैं, उनके नवीनतम नमूने अनुक्रमण केंद्रों को भेजे गए हैं.

• प्रत्येक संस्थान के तीन से चार लोग जीनोम अनुक्रमण पर अनुसंधान का काम कर रहे हैं.

• अगले 3-4 हफ्तों में, शोधकर्ता 200-300 आइसोलेट्स प्राप्त करने में सक्षम होंगे. यह जानकारी वायरस के व्यवहार के बारे में कुछ निष्कर्ष निकालने में मदद करेगी.

• व्यवहार का निर्धारण करने के लिए, राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (NIV) से भी एक वायरस देने का अनुरोध किया गया है जिसे अलग स्थान से हासिल किया गया हो.

• यह पूरा अनुसंधान इस वायरस के वंश क्रम को निर्धारित करने में मदद करेगा.

• विभिन्न संस्थानों ने अपनी परीक्षण क्षमता भी बढ़ा दी है और बड़े पैमाने पर लोगों की जांच की जा रही है. इससे सकारात्मक मामलों की पहचान करने में मदद मिलेगी.

 

 

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