बिजली उपकरण बनाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भेल ने विभिन्न क्षमता की लिथियम आयन बैटरी के विनिर्माण के लिये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौता किया है.
समझौते के तहत कंपनी इस प्रौद्योगिकी के जरिये अंतरिक्ष स्तर के विभिन्न क्षमता के सेल (बैटरी) का विनिर्माण करेगी. यह कंपनी के कारोबार का दायरा बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा है. लिथियम आयन बैटरी विनिर्माण से जुड़ी प्रौद्योगिकी का विकास इसरो ने अपने विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में किया है.
समझौते पर भेल के निदेशक (इंजीनियरिंग, अनुसंधान एवं विकास) तथा विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के निदेशक एस सोमनाथ ने हस्ताक्षर किये. इस मौके पर अंतरिक्ष विभाग के सचिव तथा इसरो के चेयरमैन डा. के सिवन तथा भेल के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक अतुल सोबती समेत अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे.
समझौता के लाभ
ली-ऑयन बैटरी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से भेल ऐसी बैटरियों के विनिर्माण में सक्षम हो जाएगा जिससे देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की आवश्यकताएं पूरी की जा सकेंगी. राष्ट्रीय स्तर पर अन्य कार्यों के लिए भी ली-ऑयन बैटरियों के विनिर्माण के लिए यह तकनीक अपनायी जा सकेगी.
इसरो की ली-ऑयन बैटरी
इसरो की ओर से ली-ऑयन बैटरियों का उपयोग उनके अत्याधिक ऊर्जा घनत्व, विश्वसनीयता और लंबी अवधि तक चलने के गुणों कारण उपग्रह और अंतरिक्ष यानों के प्रक्षेपण के लिए ऊर्जा स्रोतों के रूप में किया जाता है. इसरो के तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र (वीएसएससी) ने अंतरिक्ष संबंधी कार्यों में इस्तेमाल होने वाली ली-ऑयन बैटरियों का निर्माण करने की प्रौद्योगिकी को सफलतापूर्वक विकसित किया है. इन बैटरियों का इस्तेमाल मौजूदा समय ऊर्जा स्रेात के रूप में विभिन्न उपग्रहों और अंतरिक्ष यानों के प्रक्षेपण के लिए किया जाता है.
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