हत्या दोषी को उम्रकैद से कम सजा देना गैरकानूनी: सुप्रीम कोर्ट

Mar 27, 2018, 14:19 IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बार जब आरोपी आईपीसी की धारा-302 यानी हत्या में दोषी ठहराया जाता है उसके बाद या तो फांसी की सजा हो सकती है या फिर उम्रकैद की. उम्रकैद से कम सजा देना अवैध और कानून के दायरे से बाहर है.

Judges have no discretion to award lesser punishment to murder convict: SC
Judges have no discretion to award lesser punishment to murder convict: SC

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक निर्णय में कहा कि हत्या मामले में उम्रकैद की सजा से कम सजा देना गैर कानूनी है और कानून के दायरे से बाहर है. सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल की सजा को उम्रकैद में बदले जाने के हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए उक्त टिप्पणी की.

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि कैसे सेशन कोर्ट ने हत्या मामले में आरोपी को दोषी ठहराने के बाद सिर्फ 10 साल कैद की सजा सुनाई. एक बार जब आरोपी आईपीसी की धारा-302 यानी हत्या में दोषी ठहराया जाता है उसके बाद या तो फांसी की सजा हो सकती है या फिर उम्रकैद की. उम्रकैद से कम सजा देना अवैध और कानून के दायरे से बाहर की बात है.

क्या था मामला?
यह मामला गुजरात के मेहसाणा का है जहां दिलीप नामक शख्स की हत्या के मामले में भरत कुमार नामक शख्स को निचली अदालत ने दोषी करार दिया. मेहसाणा के अडिशनल सेशन जज ने भरत कुमार नामक शख्स को हत्या मामले में दोषी करार देते हुए 10 साल कैद की सजा सुनाई. गुजरात सरकार ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी और सजा बढ़ाने की अपील की. गुजरात हाई कोर्ट ने 8 अक्टूबर 2015 को दोषी भरत कुमार की सजा हत्या मामले में उम्रकैद कर दी. हाई कोर्ट के फैसले को आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा टिप्पणी दी तथा हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया.

 


भारतीय दंड संहिता (IPC) और धारा-302

भारतीय दण्ड संहिता (IPC) भारत में किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा और दण्ड का प्राविधान करती है. यह जम्मू एवं कश्मीर और भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. जम्मू एवं कश्मीर में इसके स्थान पर आरपीसी लागू होती है. भारतीय दण्ड संहिता ब्रिटिश काल में सन् 1862 में लागू हुई. इसके बाद इसमे समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं.

धारा-302 हत्या के आरोप में लगाई जाती है. अदालत द्वारा दोषी साबित होने के बाद जो व्यक्ति किसी व्यक्ति की हत्या करता है,  उसे मृत्यु दंड या आजीवन कारावास और साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जा सकता है. यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है. यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है.

 

Gorky Bakshi is a content writer with 9 years of experience in education in digital and print media. He is a post-graduate in Mass Communication
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