विधि आयोग ने ‘परिवार कानून में सुधार’ हेतु परामर्श पत्र जारी किया

Sep 3, 2018, 17:30 IST

परिवार कानून में सुधार’ पर अपने परामर्श पत्र में विधि आयोग ने कहा कि यदि व्यस्क होने की उम्र को सार्वभौमिक मान्यता है तो इस उम्र में अपना जीवनसाथी चुनने में भी सक्षम समझा जाना चाहिए.

Law commission suggests make 18 legal age for marriage for men
Law commission suggests make 18 legal age for marriage for men

विधि आयोग ने 31 अगस्त 2018 को सुझाव दिया कि महिलाओं और पुरुषों के लिए शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र समान होनी चाहिए. विधि आयोग ने कहा कि वयस्कों के बीच शादी की अलग अलग उम्र की व्यवस्था को समाप्त किया जाना चाहिए.

भारतीय कानून के तहत, शादी के लिए महिलाओं की उम्र 18 वर्ष और पुरुषों की शादी की कानूनी उम्र 21 वर्ष निर्धारित है. ‘परिवार कानून में सुधार’ पर अपने परामर्श पत्र में विधि आयोग ने कहा, ‘‘यदि व्यस्क होने की सार्वभौमिक उम्र को मान्यता है जो सभी नागरिकों को अपनी सरकारें चुनने का अधिकार देती है तो निश्चित रूप से, उन्हें अपना जीवनसाथी चुनने में सक्षम समझा जाना चाहिए.’’

विधि आयोग का परामर्श

•    व्यस्क होने की उम्र (18 साल) को भारतीय बालिग अधिनियम 1875 के तहत महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए शादी की कानूनी उम्र के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए.

•    पत्र में कहा गया, ‘‘पति और पत्नी के लिए उम्र में अंतर का कोई कानूनी आधार नहीं है, क्योंकि शादी कर रहे दोनों लोग हर तरह से बराबर हैं और उनकी साझेदारी बराबर वालों के बीच वाली होनी चाहिए.’’

•    सांस्कृतिक विविधता से इस हद तक समझौता नहीं किया जा सकता है कि समानता के प्रति हमारा आग्रह क्षेत्रीय अखंडता के लिये ही खतरा बन जाए.

•    किसी मज़बूत लोकतंत्र में अंतर नहीं होना चाहिए. 'धर्मनिरपेक्षता' शब्द का अर्थ केवल तभी चरितार्थ होता है जब यह किसी भी प्रकार के अंतर की अभिव्यक्ति को आश्वस्त करता है.

•    आयोग ने नजरिया साझा किया कि महिलाओं और पुरुषों की विवाह उम्र में अंतर बनाए रखना इस दकियानूसी बात में योगदान देता है कि पत्नियां अपने पति से छोटी होनी चाहिए.

समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के विचार


•    विधि आयोग ने पत्र में कहा कि इस समय समान नागरिक संहिता की ‘न तो जरूरत है और ना ही वांछित’.

•    समान नागरिक संहिता पर पूर्ण रिपोर्ट देने की बजाए विधि आयोग ने परामर्श पत्र को तरजीह दी क्योंकि समग्र रिपोर्ट पेश करने के लिहाज से उसके पास समय का अभाव था.

•    परामर्श पत्र में कहा गया कि समान नागरिक संहिता एक व्यापक मुद्दा है और उसके संभावित नतीजे अभी भारत में परखे नहीं गए हैं. इसलिये दो वर्षों के दौरान किए गए विस्तृत शोध और तमाम परिचर्चाओं के बाद आयोग ने भारत में पारिवारिक कानून में सुधार को लेकर यह परामर्श पत्र प्रस्तुत किया है.’’

•     आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी एस चौहान ने पूर्व में कहा था कि समान संहिता की अनुशंसा करने के बजाए, आयोग पर्सनल लॉ में ‘चरणबद्ध’ तरीके से बदलाव की अनुशंसा कर सकता है.

•    समान नागरिक संहिता समस्या का समाधान नहीं है बल्कि सभी व्यक्तिगत कानूनी प्रक्रियाओं को संहिताबद्ध करने की आवश्यकता है ताकि उनके पूर्वाग्रह और रूढ़िवादी तथ्य प्रकाश में आ सकें और संविधान के मौलिक अधिकारों पर इनके नकारात्मक प्रभाव का परीक्षण किया जा सके.

Gorky Bakshi is a content writer with 9 years of experience in education in digital and print media. He is a post-graduate in Mass Communication
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