शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा हाल ही में केरल के एर्नाकुलम में मौजूद इलिथोडु जंगलों में मकड़ी की एक नई प्रजाति की खोज की गई है. कोच्चि के सेक्रेड हार्ट कॉलेज के जंतु वैज्ञानिकों द्वारा एर्नाकुलम के इलिथोडु जंगलों में पहली इन हैब्रोस्टेम मकड़ियों के एक समूह को देखा गया.
टीम ने यह भी पाया कि इस प्रजाति से संबंधित मकड़ी हैब्रोस्टेम (प्रजातियों की श्रेणी का एक वर्गीकरण) विज्ञान के लिए एक नई प्रजाति है.
प्रमुख बिंदु
• वैज्ञानिकों द्वारा खोजी गई मकड़ी की यह प्रजाति आम तौर पर यूरेशिया और अफ्रीका के जंगलों में पाई जाती है. यह मकड़ियाँ ‘हैब्रोसेस्टेम जीनस’ से जुड़ी एक नई प्रजाति है.
• अध्ययन में पाया गया कि यूरोपीय हैब्रोस्टेम मकड़ियों की तुलना में इलिथोडु में पाई गई मकड़ियाँ पूरी तरह से एक नई प्रजाति है क्योंकि उनके पास अलग-अलग प्रजनन अंग हैं.
• एक ही स्थान पर खोजकर्ताओं को भिन्न प्रकार की मकड़ियां देखने को मिलीं. इनमें छह सफेद तथा ऑफ-व्हाइट धब्बों वाली मकड़ी थीं जो लाल-भूरे और काले रंग की हैं.
• वैज्ञानिकों ने पाया कि इन मकड़ियों के अगले दोनों पैरों के नीचे एक लंबी रीढ़ होती है. इसलिये इसका वैज्ञानिक नाम ‘हैब्रोसेस्टेम लॉन्गिस्पिनम’ (Habrocestum longispinum ) रखा गया है.
• इस रीढ़ की लम्बाई लगभग 2 मिलीमीटर होती है. इन्हें अधिकतर शुष्क, वनीय एवं छायादार जगहों पर रहना पसंद होता है.
• इस शोध को हाल ही में जर्नल ऑफ़ नेचुरल हिस्ट्री में प्रकाशित किया गया था.
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खोजकर्ताओं का विश्लेषण
• वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि अनियमित पर्यटन गतिविधियां इसी प्रकार जारी रही तथा जलवायु परिवर्तन के कारण इस प्रकार के छोटे जीव-जंतुओं के अस्तित्व के लिए खतरा हो सकता है.
• अध्ययन में पाया गया कि ये मकड़ियाँ यूरेशिया अफ्रीका के अलावा भारत में भी पाई जाती है.
• इस खोज से महाद्वीपीय बहाव सिद्धांत को भी समर्थन मिलता है, जो बताता है कि दुनिया के महाद्वीप एक बड़े सन्निहित भूभाग थे जहाँ ये जीव कई लाखों साल पहले पनपे थे.
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