सुप्रीम कोर्ट ने 2 नवम्बर 2016 को जाली दस्तावेजों के आधार पर स्वयं को स्वतंत्रता सेनानी कहने वाले लोगों को मानवीय आधार पर पेंशन दिए जाने की घोषणा की. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने इनके द्वारा जाली दस्तावेजों को प्राप्त करने की जांच के आदेश भी दिए.
अगस्त 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीश ए. बी. पालकर की अध्यक्षता में समिति बनाई तथा बड़ी संख्या में जाली दस्तावेजों के आधार पर स्वयं को स्वतंत्रता सेनानी कहने वाले लोगों की जांच के आदेश दिए.
कोर्ट के अनुसार इन लोगों की जांच करने के उपरांत दोषी पाए जाने वाले लोगों पर कड़ी कारवाई की जाएगी तथा इनपर धोखाधड़ी का मामला भी चलाया जा सकता है. कोर्ट ने पालकर समिति को 354 लोगों के दस्तावेजों की जांच कर के महाराष्ट्र सरकार के पास रिपोर्ट जमा कराये जाने के लिए निर्देश दिया.
समिति ने 354 में से 298 लोगों के आवेदनों को ख़ारिज कर दिया गया. इन लोगों के आवेदन रद्द किये जाने के बाद उन्होंने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर करके पेंशन सम्बन्धी लाभ दिए जाने का आग्रह किया. मुंबई उच्च न्यायालय ने यह याचिका रद्द कर दी थी.
इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया जहां जस्टिस कुरियन जोसफ तथा आर एफ नरीमन की बेंच ने स्वतंत्रता सेनानी होने का दावा करने वाले लोगों के हित में फैसला सुनाया.
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