स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) ने 5 अप्रैल 2016 को ट्रेंड्स इन वर्ल्ड मिलिट्री एक्सपेंडीचर 2015 रिपोर्ट जारी कर दी.
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 में अमेरिका सबसे बड़ा खर्च करने वाला देश बना रहा, भारत सैन्य खर्चों के मामले में विश्व रैंकिगं में एक स्थान उपर उठकर छठे स्थान पर पहुंच गया.
ट्रेंड्स इन वर्ल्ड मिलिट्री एक्सपेंडीचर 2015 की विशेषताएं
• वर्ष 2015 में विश्व सैन्य खर्चा करीब 1.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलरों का रहा. वर्ष 2014 की तुलना में वास्तव में 1 फीसदी का इजाफा हुआ. वर्ष 2011 के बाद से सैन्य क्षेत्र में किए जाने वाले खर्च में यह पहली बढ़ोतरी थी.
• यह बढ़ोतरी एशिया और ओशियाना, मध्य एवं पूर्वी यूरोप और कुछ मध्य पूर्वी देशों में लगातार विकास को दर्शाती है.
• इसी समय अफ्रीका और लैटिन अमेरिका और कैरेबिया में खर्चों में कमी दर्ज की गई है. इसलिए सैन्य क्षेत्र में किए जाने वाले खर्च की वैश्विक तस्वीर मिली– जुली है.
• 2015 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने सैन्य क्षेत्र में 2.4 फीसदी की कमी की और 596 बिलियन अमेरिकी डॉलर ही इस क्षेत्र में खर्च किए. बावजूद इसके इस क्षेत्र में वह दुनिया का सबसे बड़ा खर्च करने वाला देश बना रहा.
• अन्य शीर्ष खर्च करने वाले देशों में चीन है, जिसने 7.4 फीसदी की बढ़ोतरी करते हुए 215 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए. सउदी अरब जिसने 5.7 फीसदी की बढ़ोतरी करते हुए 87.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए और इसी वजह से यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा खर्च करने वाला देश बन गया.
• तेल की उच्च कीमतें और नए तेल की खोजों और निकाले जाने के काम ने पिछले कुछ दशकों से दुनिया के कई देशों में सैन्य खर्च में बढ़ोतरी में योगदान किया है.
• हालांकि 2014 में तेल की कीमतों में शुरु हुई कमी ने इस प्रवृत्ति को कई तेल राजस्व– निर्भर देशों में उलटना शुरु किया. वर्ष 2016 में इसमें और कमी आने की संभावना है.
• वर्ष 2015 में सबसे नाटकीय स्तर पर तेल राजस्व– संबंधी कटौती में शामिल है, वेनेजुएला (-64%) और अंगोला (-42%).
• बहरीन, ब्रुनेई, चाड, एक्वाडोर, कजाकिस्तान, ओमान और दक्षिण सूडान में भी कमी दर्ज की गई.
• रुस का खर्च उसके बजट में अनुमानित खर्च से कम था और सउदी अरब के खर्च में कमी आई होगी लेकिन यमन में सैन्य हस्तक्षेप में उस पर अतिरिक्त 5.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बोझ पड़ा.
• उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी एवं मध्य यूरोप में 2009 से सैन्य क्षेत्र में किए जाने वाले खर्च में कमी आ रही थी. यह मुख्य रूप से वैश्विक आर्थिक मंदी का नतीजा था. साथ ही अफगानिस्तान और इराक से अमेरिकी और संबद्ध सैनिक टुकड़ियों को वापस बुलाए जाना भी कमी की वजह रहीं.
• वर्ष 2015 में इस कमी के खत्म होने के संकेत थे. उदाहरण के लिए अमेरिकी सेना का खर्च 2015 में 2.4 फीसदी कम हो गया था, हाल के वर्षों में कम होने की बहुत ही धीमी दर.
• एशिया और ओशियाना में सैन्य खर्च 2015 में 5.4 पीसदी बढ़ गया और इसमें चीन का बहुत प्रभाव रहा.
• चीन और अन्य देशों के बीच बढ़ते तनाव ने इंडोनेशिया, फिलिपिन्स और वियतनाम द्वारा किए जाने वाले खर्च में काफी बढ़ोतरी करवाई और इसने जापानी सैन्य खर्च में काफी समय से हो रही गिरावट को उलटने की शुरुआत कर दी.
भारत के संदर्भ में रिपोर्ट
• सैन्य खर्च के लिए भारत 2015 में ग्लोबल रैंकिंग्स में एक स्थान उपर उठकर छठे स्थान पर पहुंच गया.
• वर्ष 2015 में सबसे अधिक खर्च करने वाले 15 देशों में से विश्व सैन्य खर्च में भारत की हिस्सेदारी 3.1% की है.
• वर्ष 2015 में भारत का सैन्य खर्च 51.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर या राष्ट्रीय जीडीपी का 2.5% था. वर्ष 2014 की तुलना में इसमें 0.4% की बढ़ोतरी हुई थी.
• आंशिक रूप से कई बड़ी जारी एवं नियोजित खरीद कार्यक्रमों के लिए भारत की योजना वर्ष 2016 में सैन्य खर्च में 8% (वास्तविक रूप में) की बढ़ोतरी करने की है.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के बारे में
• स्टॉकहोम स्थित यह संगठन विश्व में सैन्य खर्चों में होने वाली बढ़ोतरी पर नजर रखता है.
• यह सैन्य खर्च के क्षेत्र में उपबल्ध सबसे व्यापक, तर्कसंगत और विस्तृत डाटा संसाधन रखता है.
• जब सैन्य खर्च को हथियारों पर किए गए खर्च के संदर्भ में दर्शाया जाता है तो यह आर्म्स स्पेंडिंग जैसे शब्दों के प्रयोग को नकारता है.
• यह मिलिट्री एक्सपेंडीचर (सैन्य खर्च) का व्यापक अर्थों में प्रयोग करता है और वर्तमान सैन्य बलों एवं गतिविधियों पर सरकार के सभी खर्च को इसके दायर में रखता है.
• इसमें यह वेतन और लाभ, परिचालन खर्च, हथियार और उपकरण की खरीद, सैन्य निर्माण, अनुसंधान और विकास एवं केंद्रीय प्रशासन, कमांड और समर्थन को शामिल करता है.

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