भारत में सौर उर्जा: एक उम्मीद और एक जरुरत
भारत ने हाल के दिनों में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अपने को स्थापित करने तथा इस तरफ मजबूती के साथ पहल करने की दिशा में बहुत प्रगति की है. इस सम्बन्ध में यह आलेख काफी महत्वपूर्ण होगा.
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के दिनों में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत को सक्रिय करने की दिशा में बहुत प्रगति की है.
2015 में पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान मोदी और उनके बाद फ़्रांस के राष्ट्रपति फ्रांकोइस होलैंड ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के मुख्यालय का भारत में शुभारम्भ किया.
वर्तमान भारत सरकार द्वारा 2022 तक 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है. वस्तुतः यह एक महत्वाकांक्षी परियोजना है क्योंकि हमारे देश की मौजूदा सौर क्षमता केवल 6.9 गीगावॉट है.
संचयी सौर परियोजना क्षमता के मामले में पारंपरिक सौर उर्जा में अग्रणी स्थान रखने वाले राज्य राजस्थान और गुजरात को पीछे छोड़ते हुए आंध्र प्रदेश शीर्ष पर है.
सौर उर्जा में निरंतर वृद्धि, केंद्र के सौर एजेंडे में शामिल है. यह एजेंडा जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन में प्रस्तुत किये गए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (आईएनडीसी) के अनुसार 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से 40 प्रतिशत संचयी विद्युत क्षमता हासिल करने के उद्देश्य के अनुरूप है.
सौर ऊर्जा क्यों ?
ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से भारत को अपने सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए.
•सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि भारत की सौर ऊर्जा की कीमतों से थर्मल (कोयला) ऊर्जा की गिरती कीमतों को निर्धारित किया जा सकता है.
•राजस्थान के भद्रा में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए लगभग 2.90 रुपये प्रति यूनिट की लागत के अनुमान की वजह से 51 बोलीयां (बिड्स)प्राप्त हुई हैं .
•भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन की कीमत यहाँ की सबसे बड़ी बिजली उत्पादन इकाई, एनटीपीसी लिमिटेड की कोयला इंधन परियोजनाओं द्वारा उत्पन्न बिजली की औसत दर प्रति यूनिट 3.20 रुपये से कम है.
•भारत का सौर-ऊर्जा निगम (एसईसीआई), जो दो पार्कों में 750 मेगावाट (मेगावाट) सौर ऊर्जा क्षमता के लिए बोली प्रक्रिया चला रहा है, ने 8,750 मेगावाट की कुल बोली प्राप्त की है. इन बोली लगाने वाले राष्ट्रों में से कुछ पहली बार इस बोली में शामिल हुए हैं,जैसे अरब के अल्फानार आदि.
•2010-11 में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में पहले से ही 10.95-12.76 रुपये किलोवाट प्रति घंटे (केडब्ल्यूएच) की दर से टैरिफ में गिरावट देखी गई है. पिछले हफ्ते आंध्र प्रदेश के कडपा में 250 मेगावाट की क्षमता वाले प्रोजेक्ट की नीलामी में फ्रांस की सोलयार्डिड एसए ने बोली लगाई थी.
•मध्य प्रदेश के रीवा में 750 मेगावाट की एक परियोजना के लिए दर 3.30 रुपये प्रति यूनिट था.
•सौर ऊर्जा की लागत में तेजी से कटौती के साथ निजी क्षेत्र की औसत बोली 2014 में 6.8 /प्रति किलोवाट से घटकर 2015 में 5.6 रुपये प्रति किलोवाट हो गई (आईसीआरए). राजस्थान में एक सौर पार्क के लिए 2016 में न्यूनतम बोली 4.34 / किलोवाट थी. यहां तक कि 30 प्रतिशत सब्सिडी के हिसाब से भी, यह 5.64 / किलोवाट रुपये के बराबर है. यह थर्मल पावर की लागत 2013-14 (योजना आयोग) में 5.93 / किलोवाट से कम है.
भारत की सौर ऊर्जा क्षमता
•2012 के बाद से भारत की सौर ऊर्जा क्षमता में एक संचयी वृद्धि देखी गई है जो कि प्रतिवर्ष लगभग दोगुनी होती गयी है.
•सौर ऊर्जा क्षमता के विकास हेतु सरकार ने सौर पार्कों और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विकास के लिए इसे 20 गीगा वाट (जीडब्ल्यू या 1,000 मेगा वाट) से बढ़ाकर 40 गीगावॉट की क्षमता तक बढ़ाने पर सहमति जताई है.
•2019-20 तक कम से कम 8,100 करोड़ रुपये के अनुमानित लागत के केंद्रीय वित्तीय सहायता से 50 सौर पार्क बनाने की योजना है.
•भारत के पास विशाल सौर ऊर्जा की क्षमता है. हमारे देश में प्रति वर्ष 5000 खरब किलोवाट उर्जा उत्पादित होती है और इसके अधिकांश भाग प्रति वर्ग मीटर 4-7 किलोवाट प्राप्त करते हैं.
•इसलिए भारत में सौर उर्जा की पर्याप्त स्केलिबिलिटी सुनिश्चित करने के लिए सौर विकिरण के ताप और बिजली में रूपांतरण हेतु दो तकनीकी मार्ग - सौर तापीय और सौर फोटोवोल्टाइक्स का इस्तेमाल किया जा सकता है.
भारत सरकार द्वारा सौर उर्जा क्षेत्र में की जाने वाली प्रमुख पहल
•जून 2017 से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 400 करोड़ रूपये के रूफटॉप सौर परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु विश्व बैंक से 625 मिलियन अमरीकी डॉलर का ऋण लेकर ग्रिड से जुड़े रूफटॉप सौर पीवी परियोजनाओं के लिए निजी डेवलपर्स को उधार के रूप में वित्तीय सहायता देने की शुरुआत की है.
•जापान, चीन, जर्मनी और यूके जैसे देशों में बहुत सारे प्रयोग किये गए हैं. इन प्रयोगों से पता चला है कि फसलों के फोटो-संश्लेषण पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना किसानों के क्षेत्रों में सौर पैनल लगाए जा सकते हैं.
•इस तरह की पहल भारत सरकार की 2022 तक "सौर क्षेत्रों की पैदावार" से आने वाली अतिरिक्त आय” के जरिये किसानों की आय दोहरीकरण के लक्ष्य में अभूतपूर्व योगदान दे सकती हैं.
•ऐसे पहलों के निष्पादन में सार्वजनिक भागीदारी और राजनीतिक इच्छा दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. मराठावाड़ा और बुंदेलखंड जैसे कम सिंचाई और फसल के उत्पादन वाले क्षेत्र,सोलर पावर परियोजनाओं के विकास हेतु उपयुक्त क्षेत्र हैं. यहाँ सहकारी समितियों की मदद से किसानों के खेतों में सौर उर्जा प्लांट लगाए जा सकते हैं.
•ऐसे पहलों के लिए आवश्यक पूंजीगत लागत को नाबार्ड तथा अन्य एजेंसियों एवं सोसल कॉर्पोरेट रिस्पोंसिबिलिटी एवं जीटीजेड जैसी अंतरराष्ट्रीय विकास संगठनों से प्राप्त किया जा सकता है.
•बड़े पैमाने पर 100 जीडब्ल्यू क्षमता वाले ग्रिड से जुड़े लक्ष्य को प्राप्त करने में केंद्र, राज्यों, कॉर्पोरेट संस्थाओं और नागरिक समाज के बीच एक समन्वित दृष्टिकोण ही भरपूर मदद कर सकता है.
सौर उर्जा क्षेत्र की चुनौतियां
1. सौर उर्जा निर्माण की अतिरिक्त क्षमता के बावजूद भारत में सिलिकॉन वेफर्स के लिए कोई विनिर्माण सुविधा नहीं है. भारतीय सौर सेल निर्माताओं को वैश्विक स्रोतों से अपनी पीवी इकाइयों के लिए सिलिकॉन वेफर्स आयात करना पड़ता है, जिनमें से अधिकांश चीन से आयात किये जाते हैं.
2. टैरिफ में तेजी से गिरावट आई है और यह लोगों के अन्दर घबराहट पैदा करने के लिए काफी है. इससे पहले कुछ डेवलपर्स द्वारा उच्च टैरिफ लगाया जाना और बोली के दौरान कम टैरिफ लगाना कुछ परियोजनाओं की व्यवहार्यता पर एक प्रश्न चिह्न खड़ा करता है. तमिलनाडु और राजस्थान जैसे राज्यों में पहले के उच्च टैरिफ का हवाला देते हुए सीईआरसी सहित अधिकारियों ने चिंता व्यक्त की है कि क्या उनके यूनिटों से उत्पन्न बिजली वितरण का कंपनियों द्वारा मांग की जाएगी.
3.केडीआर रेटिंग के अनुसार, , यूडीएवाई योजना के तहत सरकार की प्रतिबद्धताओं के कारण, डिस्कोम्स की वित्तीय स्थिति पहले से ही संकटग्रस्त है और यह अक्षय परियोजनाओं के कार्यान्वयन को प्रभावित कर सकता है.
निष्कर्ष
भारत जर्मनी जैसे देशों से सीख ले सकता है, जिसने सौर ऊर्जा उत्पादन में सराहनीय विकास किया है.2014 तक जर्मनी ने 38 जीडब्ल्यू, चीन ने 28 जीडब्ल्यू और जापान ने 23 जीडब्ल्यू की सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित की.
लेकिन जब हम इन देशों की दस लाख आबादी के साथ इन नंबरों की गणना करते हैं, तो यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि जर्मनी की 469 मेगावाट / मिलियन जनसंख्या जापान के 181 मेगावाट / मिलियन और चीन की 20 एमडब्ल्यू / मिलियन जनसंख्या की तुलना में भारत सिर्फ 2.32 मिलियन/ मेगावाट के न्यूनतम आंकड़े पर है. संयोगवश 2014 में 178 गीगावॉट के कुल सौर स्थापनाओं के साथ जर्मनी कुल वैश्विक सौर स्थापनाओं में से 21 प्रतिशत का हिस्सेदार हैं.
अगर भारत सौर ऊर्जा के क्षेत्र में एक क्रांति लाने की इच्छा रखता है तो उसे जिस कीमत पर सरकारें अपने ग्रिड के लिए सौर ऊर्जा खरीदना चाहती हैं, वह थर्मल की सीमांत लागत होना चाहिए जो कि कम से कम 10-15% हो. एक बार ऐसा हो जाने से 100 जीडब्ल्यू के लक्ष्य तक पहुँचने की दिशा में तेजी से विकास किया जा सकता है.
सौर ऊर्जा का उत्पादन 2022 तक किसानों की आय दोहरीकरण के सरकार के सपने को साकार करने में भी मदद करेगा. इसके तहत किसान स्वयं के क्षेत्रों पर सौर ऊर्जा का उत्पादन करके और ग्रिड में भोजन करके आय अर्जित करते हैं.अतः यह असंख्य तरीकों से देश के लिए लाभदायक सिद्ध होगा. अतः उम्मीद है सरकार अपने सौर ऊर्जा से संबंधित वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने में अवश्य सफल होगी.
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