भारत के सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने 21 नवंबर 2016 को केंद्र सरकार को उपभोक्ता अदालतों के प्रशासन हेतु निर्धारित मानदंडों वाले मॉडल नियमों की रूपरेखा तैयार करने का निर्देश दिया. यह काम आगामी चार महीनों में हो जाना चाहिए. इस निर्देश को तीन– जजों की खंडपीठ ने पारित किया. खंडपीठ में चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ एवं एल नागेश्वर राव थे. खंडपीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग समेत उपभोक्ता अदालतों के कामकाज पर चिंता जाहिर की. यदि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 को जीवित रखना है तो बुनियादी ढांचे का व्यवस्थित होना अनिवार्य है.
अपने निर्देश में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग, राज्य उपभोक्ता आयोगों और जिला उपभोक्ता मंचों की भूमिका, कार्यों एवं अधिकारों को स्पष्ट किया. अनुचित व्यापार प्रथाओँ से उपभोक्ता को बचाने का तंत्र मजबूत करने को सुनिश्चित करने के लिए ऐसा किया गया.
इसके अलावा, अदालत ने केंद्र और राज्य, दोनों ही सरकारों से कहा कि वे इस तंत्र को सुधारने के लिए तत्काल हस्तक्षेप करें. साथ ही दोनों सरकारों को इन अदालतों में खाली पड़े पदों को भरने के लिए भी कहा गया है.
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