Coal Crisis: पिछले कुछ समय से कोयले की किल्लत ने सरकार को परेशान कर रखा है. देश में इस समय कोयले का संकट (Coal Crisis) जारी है. जिन बिजली घरों में पहले 17-17 दिन का कोयले का स्टॉक हुआ करता था, वहां अब महज 4-5 दिन का स्टॉक ही बचा है. जबकि, आधे से ज्यादा पावर प्लांट में तो एक या दो दिन का स्टॉक ही है. कोयले की कमी की वजह से बिजली सेक्टर पर बड़ी आफत आ सकती है और देश को भारी ऊर्जा संकट से जूझना पड़ सकता है.
हाल के कुछ वर्षों में ऐसा कोयला संकट नहीं देखा गया था. देश को इस संकट की स्थिति से सामान्य हालत में आने में छह महीने से भी अधिक का समय लग सकता है. भारत में कोयले का संकट (Coal Crisis) बढ़ गया है. पीछे से सप्लाई कम होने के चलते गोदाम खाली पड़े हैं. भारत में बिजली उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल कोयले का ही होता है और ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार कोयले पर आधारित बिजली उत्पादन केंद्रों में कोयले का स्टॉक बहुत कम हो चुका है.
देश में 70 प्रतिशत बिजली उत्पादन केंद्र कोयले पर आधारित है. ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक, इसके पीछे बड़ी वजह कोयले के उत्पादन और उसके आयात में आ रही दिक्कतें हैं. मानसून की वजह से कोयला उत्पादन में कमी आई है. इसकी कीमतें बढ़ी हैं और ट्रांसपोर्टेशन में काफी रुकावटें आई हैं. ये ऐसी समस्याएं हैं जिसकी वजह से आने वाले समय में देश के अंदर बिजली संकट पैदा हो सकता है.
कोरोना भी वजह
ऊर्जा मंत्रालय ने बताया है कि बिजली संकट के पीछे एक वजह कोरोना काल भी है. दरअसल, इस दौरान बिजली का बहुत ज्यादा इस्तेमाल हुआ है और अब भी पहले के मुकाबले बिजली की मांग काफी बढ़ी हुई है.
बिजली की कुल खपत
ऊर्जा मंत्रालय के एक आंकड़े के मुताबिक 2019 में अगस्त-सितंबर महीने में बिजली की कुल खपत 10 हजार 660 करोड़ यूनिट प्रति महीना थी. यह आंकड़ा 2021 में बढ़कर 12 हजार 420 करोड़ यूनिट प्रति महीने तक पहुंच गया है. बिजली की इसी जरूरत को पूरा करने के लिए कोयले की खपत बढ़ी है.
300 अरब टन का कोयला भंडार
2021 के अगस्त-सितंबर महीने में कोयले की खपत 2019 के मुकाबले 18 प्रतिशत तक बढ़ी है. भारत के पास 300 अरब टन का कोयला भंडार है. लेकिन फिर भी बड़ी मात्रा में कोयले का आयात इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों से करता है.
कोयला की कीमतों में बढ़ोतरी
इंडोनेशिया में मार्च 2021 में कोयला की कीमत 60 डॉलर प्रति टन थी जो अब बढ़कर 200 डॉलर प्रति टन हो गई है. इस वजह से कोयले का आयात कम हुआ है. ऐसी कई वजहें हैं जिससे थर्मल पावर प्लांट्स की बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए कोयला नहीं पहुंच पा रहा है. इस वजह से प्लांट के कोयला भंडार समय के साथ-साथ कम होता गया.
कोयले की कमी इस वजह से हुई
कोरोना महामारी की दूसरी लहर लगभग खत्म होने और लॉकडाउन-पाबंदी आदि हटने के बाद आर्थिक गतिविधियां तेजी से चल पड़ी हैं. पहले कंपनियां बंद थीं जो अब धड़ल्ले से चल रही हैं. कंपनियों का प्रोडक्शन बढ़ा है. इस वजह से कल-कारखानों में कोयले की खपत बेतहाशा बढ़ी है.
बड़ी वजह ये है कि देश में कोयले के दाम कम हैं जबकि बाहर से मंगाए जा रहे कोयले की कीमतें ज्यादा हैं. इस वजह से खरीदार आयातकों से कोयला नहीं खरीद रहे. सरकारी कोयला खदान कंपनी कोल इंडिया ने इसकी बड़ी वजह बताई है. कोल इंडिया के अनुसार विदेशी कोयले के दाम और ढुलाई के खर्च में बड़ी बढ़ोतरी देखी जा रही है.
क्या हो सकता है असर?
भारत के कोयला भंडार में आई कमी से यह चिंता खड़ी हुई है. इससे न केवल इकोनॉमी प्रभावित होगी, बल्कि बिजली के दाम भी बढ़ सकते हैं. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार, उपभोक्ता को बिजली की कीमतों में बढ़ोतरी का सामना कुछ महीने बाद करना पड़ सकता है. बिजली वितरण कंपनियों को दाम बढ़ाने के लिए रेगुलेटर से मंजूरी मिल सकती है.
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