अनुसूचित जाति और जनजाति पर बढ़ते अत्याचार और अदालत में मामलों की धीमी सुनवाई पर गंभीर रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे विशेष अदालतें गठित करें. केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों को अनुसूचित जाति/जनजाति संबंधी मामलों की सुनवाई हेतु विशेष अदालत गठित करने का निर्देश दिया गया. कई राज्यों ने ऐसी विशेष अदालत के गठन पर अपनी सहमति भी जताई.
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री मुकुल वासनिक ने 27 मार्च 2011 को बताया कि अनुसूचित जाति/जनजाति समुदायों के मामलों की सुनवाई की दर काफी धीमी है और पूरे देश में लगभग 81 प्रतिशत से ज्यादा मामले अदालतों में लंबित हैं. नेशनल क्राइम ब्यूरो (NCB: National Crime Bureau) के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1995 से वर्ष 2009 के बीच अनुसूचित जनजाति पर अत्याचार के 80489 मामले पाए गए. जिनमें 1911 हत्या और 7537 बलात्कार के मामले थे.
बजट सत्र 2011 के दौरान संसद में पेश एक रिपोर्ट के अनुसार केवल वर्ष 2008 में अनुसूचित जाति/जनजाति समुदायों से संबंधित 30913 मामले दर्ज किए गए. जिन राज्यों में अनुसूचित जाति/जनजाति समुदायों पर सबसे ज्यादा अत्याचार के मामले सामने आए, उनमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड और उड़ीसा शामिल हैं.
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