केंद्र सरकार ने 3 जुलाई 2014 को भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) के तहत चार नए टीकों का आरंभ किया. इनमें रोटावायरस, रुबेल्ला और पोलियो (इंजेक्शन) के साथ व्यस्को में जापानी इन्सेफेलाइटिस का टीका भी शामिल है. व्यस्को में जापानी इन्सेफेलाइटिस का टीका उन जिलों में दिया जाएगा जहां इस बीमारी से सबसे अधिक प्रभावित लोग हैं (9 राज्यों के 179 स्थानीय जिले).
इन टीकों की शुरुआत करने का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक स्थिति से हटकर समाज के सभी वर्गों तक इनके लाभ को पहुंचाना है. अभी तक ये निजी चिकित्सकों के जरिए ही उपलब्ध थे और इन्हें वही इस्तेमाल कर सकते थे जिनमें इन्हें खरीदने की हैसियत थी.
नए टीकों को शामिल करने की घोषणा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) की सिफारिशों को स्वीकर करने के बाद की. एनटीएजीआई, टीकाकरण पर देश की सबसे प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार निकाय है जिसने कई वैज्ञानिक अध्ययनों और व्यापक विचार विमर्श के बाद इन टीकों को शामिल करने की सिफारिश की थी.
इन टीकों का महत्व और प्रभाव
- ये टीके सामूहिक रुप से वर्ष 2015 तक भारत के शिशु मृत्यु दर को दो–तिहाई कम करने के लिए मिलेनियम डेवलपमेंट गोल 4 को पूरा करने और वैश्विक पोलियो उन्मूलन लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करेगें.
- हाल ही में शामिल किया गया पेंटावालेंट वैक्सीन कम–से–कम एक लाख शिशुओं की मौत, कामकाजी व्यस्कों की मौत और हर वर्ष अस्पताल में भर्ती होने वाले दस लाख लोगों को अस्पताल जाने से रोकने में मदद करेगा.
इन नए टीकों को शामिल करने के बाद, भारत का यूआईपी अब 13 जानलेवा बीमारियों के खिलाफ सालाना 27 मिलियन बच्चों को मुफ्त में टीका मुहैया कराएगा.
रोटावायरस वैक्सीन भारत का स्वदेशी टीका है जो पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत केंद्रीय विज्ञान मंत्रालय और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने मिलकर तैयार किया है. इस टीके को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा.
सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी)
सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम भारत सरकार का एक टीकाकरण कार्यक्रम है जिसकी शुरुआत वर्ष 1985 में हुई थी. वर्ष 1992 में यह बाल जीवन और सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम का हिस्सा बन गया औऱ वर्ष 2005 से यह राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के प्रमुख क्षेत्रों में से एक है.
कार्यक्रम का विकास
वर्ष 1978 :विस्तारित प्रतिरक्षण कार्यक्रम (ईपीआई) और इसकी पहुंच सिमित थी–अधिकतर शहरों में
वर्ष 1985:सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी)
- 6 वीपीटी के कारण होने वाली मृत्यु और रुग्णता में कमी लाना
- स्वदेशी टीका उत्पादन क्षमता बढ़ी
- कोल्ड चेन स्थापित हुआ.
- चरणबद्ध कार्यान्वयन–वर्ष 1989–90 तक सभी जिलों को कवर किया गया.
- निगरानी और मूल्यांकन प्रणाली लागू की गई.
वर्ष 1986: टीकाकरण पर प्रौद्योगिकी मिशन
- पीएमओ को 20 सूत्री कार्यक्रम के तहत निगरानी
- शिशुओं में कवरेज (0–12 माह) पर नजर रखी.
वर्ष 1992: बाल जीवन और सुरक्षित मातृत्व (सीएसएसएम)
- इसमें यूआईपी और सुरक्षित मातृत्व दोनों कार्यक्रम शामिल हैं.
वर्ष 1997: प्रजनन बाल स्वास्थ्य (आरसीएच–1)
वर्ष 2005: राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम)
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