केंद्र सरकार ने एचएसबीसी बैंक जेनेवा में स्थित 627 भारतीय खाताधारकों की सूची तीन सीलबंद लिफाफे में सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ को 29 अक्टूबर 2014 को सौंपी.
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र द्वारा पेश की गई सूची के तीनों सीलबंद लिफाफे को बिना खोले एसआईटी को देने का निर्देश दिया. पीठ अपने निर्देश में कहा, कि ‘इसे सिर्फ विशेष जांच दल (एसआईटी) के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष द्वारा ही खोला जाएगा.’ इस मामले की अगली सुनवाई 3 दिसंबर 2014 को होनी है.
पीठ ने केंद्र को विदेशी राष्ट्रों के साथ विभिन्न संधियों के संबंध में अपनी बात एसआईटी के समक्ष रखने की अनुमति दी. पीठ ने कहा कि एसआईटी के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज हैं. वे कोई सामान्य लोग नहीं हैं और वे विभिन्न मुद्दों पर फैसला ले सकते हैं. पीठ ने इस लिस्ट को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई से भी साझा करने का निर्देश दिया.
सरकार की ओर से जमा कराए गए पहले लिफाफे में विदेशी सरकार से संधि का जिक्र है. दूसरे में सभी खाताधारकों के नाम और खातों का उल्लेख है. तीसरे लिफाफे में विशेष जांच दल (एसआईटी) की स्टेटस रिपोर्ट बताई गई है.
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि आयकर कानून के तहत इन खातों की जांच पूरी करने की समय सीमा मार्च 2015 है. यही सूची जून 2014 में भी एसआईटी को सौंपी गई थी.
अटॉर्नी जनरल (एजी) मुकुल रोहतगी ने पीठ के समक्ष दस्तावेज पेश करते हुए बताया कि यह ब्योरा (नाम) वर्ष 2006 के हैं, जो फ्रांस सरकार ने जुलाई 2011 में भारत सरकार को सौंपे थे. ये डेटा एचएसबीसी बैंक जेनेवा से चुराए गए थे, जो बाद में फ्रांस सरकार तक पहुंचे थे और वहां से द्विपक्षीय अनुबंध के तहत भारत सरकार को प्राप्त हुए. मुकुल रोहतगी ने पीठ को यह भी बताया कि सूची में शामिल कुछ लोगों ने स्वीकार किया है कि उनके विदेशी बैंक में खाते हैं और उन्होंने कर चुकाया है.
विदित हो कि काला धन मामले में केंद्र सरकार ने सर्वप्रथम सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दाखिल कर तीन नामों- गोवा की खनन कारोबारी राधा सतीश टिम्बलू, डाबर ग्रुप के चेयरमैन प्रदीप बर्मन और राजकोट के बुलियन कारोबारी पंकज चिमन लाल लोढिया का खुलासा 27 अक्टूबर 2014 को किया.
पृष्ठभूमि
सीबीडीटी ने वर्ष 2009-10 और 2010 -11 की अवधि में ही 18750 करोड़ रुपये की छिपी हुई आय का पता लगाया. जबकि डायरेक्टरेट ऑफ टांसफर प्राइसिंग ने 66085 करोड़ की मिस प्राइसिंग चिन्हित की थी. इनमें से ज्यादातर मामलों में जांच की आखिरी कड़ी तक नहीं पहुंचा जा सका. पिछले कुछ सालों में जर्मन टैक्स अथॉरिटी से करीब 18 मामलों की सूचना के आधार पर केवल 39.66 करोड़ की अघोषित संपत्ति की पहचान की जा सकी. करीब 24.26 करोड़ की कर डिमांड में 11.75 करोड़ की रिकवरी की गई. फ्रांस से मिली सूचना के आधार पर 219 अघोषित संपत्तियों की पहचान की गई. इसमें 565 करोड़ रुपए की संपत्ति का आकलन किया गया. यह सारे खुलासे सीबीडीटी की रिपोर्ट में दर्ज हैं.
विशेष जांच दल
काला धन की जांच हेतु केंद्र सरकार ने 27 मई 2014 को विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया. एसआईटी के अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमबी शाह और उपाध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरिजित पसायत है.
विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन से संबंधित पृष्ठभूमि
सर्वोच्च न्यायालय में काला धन का मामला वकील राम जेठमलानी ने एक जनहित याचिका के जरिये वर्ष 2011 में उठाया. इस मामले में सर्वोच्च अदालत ने काले धन की जांच के लिए केंद्र सरकार को एसआइटी गठित करने का आदेश 4 जुलाई 2011 को दिया था, लेकिन संप्रग सरकार ने एसआइटी गठन के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर किया. सर्वोच्च न्यायालय ने 1 मई 2014 को एसआइटी गठन का विरोध करने वाली संप्रग सरकार की पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए पुनः अपने पूर्वर्ती आदेश पर मुहर लगा दी एवं केंद्र सरकार को 28 मई 2014 तक काला धन की जांच हेतु विशेष जांच दल के गठन से संबंधित अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया.
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