कोच्चि आर्कोनोलोजिस्ट ने 3 अप्रैल 2015 को पश्चिमी घाट पर दुर्लभ मकड़ियों की खोज की. एराक्नोलॉजिस्टस शोधकर्ताओं ने पश्चिमी घाट पर हंट्समैन और जंपिग मकड़ियों को देखा.
यह मकड़ियां स्पारासिडे और सॉल्टिसडे वर्ग से संबंधित हैं. शोध टीम में डा. मैथ्यू एम.जे., फादर जोबी मेलामल और प्रदीप कुमार एम.एस. शामिल थे. इनका नेतृत्व एराक्नोलॉजी डिवीज़न के निदेशक डॉ पी.ए. सेबस्टियन ने किया.
शोधकर्ताओं ने हंट्समैन मकड़ी को पोनमुडीं में देखा जबकि जंपिग मकड़ी को मलयाटूर और भूथाथन्केट्टू आरक्षित वन में पाया गया. हंट्समैन मकड़ी अपनी गति और शिकार के तरीके के लिए जानी जाती है. कभी-कभी वे घात में छिपकर शिकार को अचंभे में डाल देती हैं.
इन मकड़ियों में से कुछ को अपनी प्रजाति की मादा मकड़ी द्वारा छोड़े गये रसायन का पता लगने पर सब्स्ट्रेट जनित ध्वनि बनाते पाया गया है.
नर मकड़ी अपने शरीर को सतह से अच्छी तरह जोड़े रखती है और शरीर से सतह तक कंपन संचारित करने के लिए अपने पैरों का उपयोग करती है. कंपन की विशेष आवृत्ति और ध्वनि की तर्ज से मादा मकड़ियां सचेत होती हैं और संभोग करने में रुचि होने पर वे नर मकड़ी तक पहुंचती हैं.
जंपिग मकड़ियां टिड्डे की तरह शिकार करती हैं और एक स्थान से दूसरे स्थान पर कूदती रहती हैं. नर मकड़ी के मैथुन विषयक अंग पर एक अनोखी श्वेताभ क्षेत्र की उपस्थिति के कारण उसे स्टेनेल्यूरिस एल्बस नाम दिया गया है. यह खोज इसलिए भी अद्वितीय है क्योंकि इन मकड़ियों में संभोग के प्लग की उपस्थिति दर्ज की गई है जो अभी तक लगभग 5800 जंपिग मकड़ियों पर शोध के बाद केवल 17 में पाये गये हैं.
एराक्नोलॉजी मकड़ियों और संबंधित जानवरों जैसे बिच्छू, स्यूडोस्कॉर्पियन और हारवेस्टमैन का वैज्ञानिक अध्ययन है जिन्हें एराक्निड्स कहा जाता है.
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