नेपाल के गढ़ीमाई मंदिर के ट्रस्ट ने 28 जुलाई 2015 को लाखों पशुओं को दी जाने वाली बलि पर लगे प्रतिबन्ध की घोषणा की.
इस मंदिर में हर पांचवें वर्ष आयोजित होने वाली एक विशेष पूजा में लाखों पशुओं की बलि दी जाती है.
यह विश्व का सबसे बड़ा पशुबलि मेला है. मंदिर ट्रस्ट ने लोगों से भी अपील की है कि वे पूजा में पशु लेकर न आएं.
गढ़ीमाई मंदिर में अगली पूजा वर्ष 2019 में होनी है.
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इस त्योहार के लिए भारत से नेपाल जाने वाले पशुओं पर रोक लगाने का आदेश दिया था. भारत और नेपाल के पशु अधिकार संगठन लंबे समय से बलि पर रोक लगाने की मांग कर रहे थे.
वर्ष 2014 में ह्यूमन सोसाइटी इंटरनैशनल- इंडिया और एनीमल वेलफेयर नेटवर्क नेपाल (ईडब्ल्यूएनएन) ने गढ़ीमाई मंदिर में होने वाली इस बलि के विरोध में एक वैश्विक अभियान चलाया था. इसे विश्व के कई देशों का सम्रथन मिला था.
विदित हो पीपल्स फॉर एनीमल्स (पीएफए) की ट्रस्टी गौरी मुखर्जी ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट में इस पूजा के लिए भारत से नेपाल जाने वाले पशुओं पर रोक लगाने की अपील की थी.
माना जाता है कि वर्ष 2009 में बरियापुर नामक ग्राम में इस पूजा को आयोजित किया गया था जिसमें 5 लाख से ज्यादा बैलों, बकरियों, मुर्गों और दूसरे जानवरों की बलि दी गई थी, लेकिन 2014 में इस संख्या में कमी आई थी.
यह परंपरा लगभग 400 वर्ष पुरानी है. एसी मान्यता है कि बुरियापुर में एक कैदी के स्वप्न में गढ़ीमाई आई थीं उन्होंने उस कैदी से इस मंदिर को स्थापित करने का आदेश दिया, जब वह व्यक्ति उठा तो उसकी बेड़ियाँ खुली हुईं थी उसने जेल से निकल कर मंदिर का निर्माण किया और अपनी आज़ादी के लिए ईश्वर को धन्यवाद कहने के लिए जानवरों की बलि दी, तब से यह प्रथा चली आ रही है.
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