भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 3 जुलाई 2014 को विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 2004 के स्वचालित मार्ग के तहत एक भारतीय कंपनी द्वारा विदेश में प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई) की सीमा बहाल की.
इस निर्णय के साथ अब एक भारतीय कंपनी अपने सभी संयुक्त उपक्रम और / या विदेश में पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक (WOSs) में वित्तीय प्रतिबद्धता का कार्य कर सकती हैं या निवल मूल्य का 400 प्रतिशत तक निवेश कर सकती हैं.
हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक ने फैसला किया कि किसी भी वित्तीय प्रतिबद्धता का एक वित्तीय वर्ष में एक बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक या इसके समकक्ष हेतु रिजर्व बैंक की पूर्व अनुमति की आवश्यकता होगी.
यह नियम तब भी लागू होगा जब एक भारतीय कंपनी के कुल प्रतिबद्धता पात्र की सीमा एक निश्चित सीमा के भीतर गिर जाती है.
इससे पहले अगस्त 2013 में, भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रबल मैक्रो आर्थिक स्थिति पर विचार करके सभी भारतीय कंपनियों के लिए विदेश में प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई) की सीमा 400 प्रतिशत से कम करके कंपनी के निवल मूल्य का 100 प्रतिशत तक कर दिया.
यह निर्णय एक समय में रुपये की तुलना में डॉलर की कीमत 68.80 रुपये को नियंत्रित करने के क्रम में लिया गया.
हालांकि, यह प्रतिबंध ऑयल इंडिया और ओएनजीसी विदेश जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों पर लागू नहीं था.
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई)
ओडीआई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के विपरीत है यानी विदेश में भारतीय प्रत्यक्ष निवेश.
ओडीआई इसके साथ मेजबान के लाभ को बढ़ाता है. ये हैं: भारत और मेजबान देशों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देता है; प्रौद्योगिकी और कौशल के हस्तांतरण में मदद करता है; अनुसंधान एवं विकास के परिणामों के साझेदारी को सक्षम बनाता है; वैश्विक बाजार में पहुँच प्रदान करता है; ब्रांड छवि को बढ़ावा देने के लिए सक्षम बनाता है; भारत और मेजबान देश में उपलब्ध कच्ची सामग्री के उपयोग से रोजगार उत्पन्न करता है.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation