ऑस्ट्रेलियाई लेखक रिचर्ड फ़्लैनागन (Richard Flanagan) को वर्ष 2014 का मैन बुकर पुरस्कार (Man Booker Prize) प्रदान किया गया. रिचर्ड फ़्लैनागन को यह पुरस्कार उनके उपन्यास ‘द नैरो रोड टू द डीप नॉर्थ' के लिए दिया गया. उन्हें यह पुरस्कार लंदन के गिल्डहाल में एक समारोह में डचेस ऑफ कॉर्नवाल में 14 अक्टूबर 2014 को प्रदान किया गया.
‘द नैरो रोड टू द डीप नॉर्थ' रिचर्ड फ्लैनागन का छठा उपन्यास है, जिसकी कथा वस्तु द्वितीय विश्वयुद्ध में थाइलैंड- बर्मा डेथ रेलवे के निर्माण के दौरान के कालखंड के घटनाक्रमों को समेटे हुए है.
ब्रिटेन का सबसे मशहूर साहित्य पुरस्कार जीतने वाले रिचर्ड फ्लैनागन तीसरे ऑस्ट्रेलियाई लेखक हैं. इससे पहले वर्ष 1982 में थॉमस कीनेली और पीटर कैरी को दो बार वर्ष 1988 और वर्ष 2001 में यह पुरस्कार मिल चुका है.
पुरस्कार के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए अन्य लेखकों में भारतीय मूल के ब्रितानी लेखक नील मुखर्जी जिनका उपन्यास ‘द लाइव्स आफ अदर्स’ और हॉवर्ड जेकबसन भी शामिल थे.
मैन बुकर पुरस्कार
मैन बुकर पुरस्कार की स्थापना वर्ष 1969 में इंगलैंड की बुकर मैकोनल कंपनी द्वारा की गई थी. इस पुरस्कार के तहत विजेता को 60 हज़ार पाउण्ड की राशि दी जाती है.
मैन बुकर पुरस्कार फ़ॉर फ़िक्शन (अंग्रेजी: Man Booker Prize for Fiction) जिसे लघु रूप में मैन बुकर पुरस्कार या बुकर पुरस्कार भी कहा जाता है, राष्ट्रमंडल या आयरलैंड के नागरिक द्वारा लिखे गए मौलिक अंग्रेजी उपन्यास के लिए प्रति वर्ष दिया जाता है.
इस पुरस्कार के लिए पहले उपन्यासों की एक लंबी सूची तैयार की जाती है और फिर पुरस्कार वाले दिन की शाम के भोज में पुरस्कार विजेता की घोषणा की जाती है. पहला बुकर पुरस्कार अलबानिया के उपन्यासकार इस्माइल कादरे को दिया गया था.
वर्ष 2008 का पुरस्कार भारतीय लेखक अरविन्द अडिग को दिया गया. अरविन्द अडिग को मिलाकर कुल 5 बार यह पुरस्कार भारतीय मूल के लेखकों को मिला है (अन्य लेखक - वी एस नाइपॉल, अरुंधति राय, सलमान रशदी और किरन देसाई) और कुल 9 पुरस्कार विजेता उपन्यास ऐसे हैं जिनका कथानक भारत या भारतीयों से प्रेरित है.
वर्ष 2013 के मैन बुकर पुरस्कार में भारत
भारतीय-अमेरिकी लेखिका झुंपा लाहिरी की द लोलैंड को भी पुरस्कार के लिए चयनित पुस्तकों की अंतिम दौड़ में जगह मिली.
वर्ष 2013 के निर्णायकों ने भारतीय मूल की अमेरिकी लेखिका झुंपा लाहिड़ी की रचना ‘‘द लोलैंड’’ की भी प्रशंसा की. ‘‘द लोलैंड’’ 1960 के दशक के आखिर में कोलकाता में पले बढ़े दो भाईयों की कहानी है. इनका जन्म लंदन में हुआ था.
मैन बुकर पुरस्कार और मैन बुकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार में अंतर
यह पुरस्कार मैन बुकर पुरस्कार, मैन बुकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से अलग है. मैन बुकर पुरस्कार प्रत्येक वर्ष किसी एक कथा (Fiction) हेतु दिया जाता है जबकि मैन बुकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जिसने विश्व स्तर पर उपन्यास के क्षेत्र में उपलब्धियां प्राप्त की हों. इस पुरस्कार को प्रत्येक दूसरे वर्ष दिया जाता है.
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