म्यांमार ने 30 वर्ष में अपनी पहली जनगणना 30 मार्च 2014 को शुरू की. जनगणना में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि (यूएनपीएफ) और उसके दानदाताओं ने सहायता की, जिन्होंने 65 मिलियन यूएस डॉलर का योगदान किया. यह योगदान सर्वेक्षण के तकनीकी पहलुओं पर फोकस करने और राजनीतिक चिंताओं को नजरअंदाज करने के लिए किया गया.
योजना के अनुसार, जनगणना 12 दिनों तक 100000 शिक्षकों द्वारा संचालित की जानी है. इस प्रक्रिया के दौरान प्रतिनिधियों को बच्चों के जन्म और रोजगार की दरों से संबंधित जानकारी के साथ-साथ प्रवास संबंधी आंकड़ों को भी एकत्रित करने हैं.
आशा की जा रही है कि जनगणना से प्राप्त आँकड़े सरकार द्वारा अपने नागरिकों के लिए उचित नीतियाँ बनाने में मदद करेंगे.
तीन दशकों के बाद अपनी पहली जनगणना आयोजित करने में बर्मा की सहायता करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने दावा किया कि जनगणना में चिर-उत्पीड़ित रोहिंग्या मुस्लिम जनसंख्या की गणना नहीं की जा रही है. एजेंसी के अनुसार, हिंसा-ग्रस्त राखिणे राज्य में जनगणना-कर्मचारी ऐसे किसी व्यक्ति की गणना नहीं करते, जो अपनी नृजातीय पहचान रोहिंग्या बताता है.
देश के इस जनगणना-कार्य का कुछ नृजातीय समुदाय बहिष्कार कर रहे हैं, जिन्होंने कहा है कि विरोध के प्रतीक के रूप में वे गलत जानकारी देंगे.
म्यांमार या बर्मा लगभग 60 मिलियन की जनसंख्या के साथ मुख्य रूप से एक बौद्ध देश है और लगभग आधी शताब्दी के सैनिक शासन से हाल ही में उभरा है. वहाँ पिछली जनगणना 1983 में आयोजित की गई थी.

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