सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में बताया कि सेवा में खामी रहने पर विदेशी कंपनियां भी भारतीय उपभोक्ता अदालतों के प्रति जवाबदेह हैं. 19 सितंबर 2011 को दिए इस निर्णय के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (NCDRC: National Consumers Disputes Redressal Commission, एनसीडीआरसी) द्वारा लेबनान की अंतरराष्ट्रीय कूरियर कंपनी ट्रांस मेडिटेरनियन एयरवेज पर मुंबई की एक कंपनी यूनिवर्सल एक्सपोर्ट्स को 71615.75 डॉलर जुर्माना देने के निर्णय को सही ठहराया.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एचएल दत्तू की पीठ ने अपने निर्णय में बताया कि उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत उपभोक्ता की परिभाषा में आने वाले ग्राहक सेवा में खामी का मामला उपभोक्ता अदालतों और नियमित अदालतों में लेकर जा सकते हैं. पीठ ने लेबनान की अंतरराष्ट्रीय कूरियर कंपनी ट्रांस मेडिटेरनियन एयरवेज की एनसीडीआरसी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका ख़ारिज कर दी.
ज्ञातव्य हो कि राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (NCDRC: National Consumers Disputes Redressal Commission, एनसीडीआरसी) ने ट्रांस मेडिटेरनियन एयरवेज को यूनिवर्सल एक्सपोर्ट्स को 71615.75 डॉलर जुर्माना देने के अलावा एक लाख रुपये का अतिरिक्त जुर्माना देने का निर्देश दिया था. ट्रांस मेडिटेरनियन एयरवेज ने यूनिवर्सल एक्सपोर्ट्स द्वारा कपड़ों की एक खेप को अगस्त 1992 में स्पेन में गलत पते पर डिलीवर कर दी थी.
इसी संबंध में यूनिवर्सल एक्सपोर्ट्स ने ट्रांस मेडिटेरनियन एयरवेज पर मुकदमा दायर किया था, जिस पर राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग ने अपना निर्णय दिया था. सर्वोच्च न्यायालय में ट्रांस मेडिटेरनियन एयरवेज ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग के निर्णय के विरोध में याचिका दायर की थी और तर्क दिया कि वारसा और हेग संधि के तहत भारतीय उपभोक्ता अदालतों को अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ निर्णय करने का अधिकार नहीं है.
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