विश्व बैंक ने भारत की समाज कल्याण तथा गरीबी विरोधी योजनाओं पर पहली बार परिवर्तनशील भारत में सामाजिक सुरक्षा (Social Protection for a Changing India) नामक सर्वेक्षण रिपोर्ट 18 मई 2011 को जारी किया. रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2004-05 में भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System) के तहत जो अनाज जारी किया गया उसका लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा लक्षित परिवारों तक नहीं पहुंचा.
भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी, GDP) का 2 प्रतिशत से अधिक हिस्सा सामाजिक संरक्षण कार्यक्रमों पर खर्च करता है, जो अन्य विकासशील देशों की तुलना में बहुत अधिक है. कुछ हिस्सों में इसका प्रदर्शन अच्छा भी रहा, लेकिन गरीबी उन्मूलन तथा आजीविका में सुधार के संदर्भ में इसका कुल मिलाकर रिटर्न पूरी क्षमता वाला नहीं है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीब राज्यों को केंद्रीय बजट में बड़ा हिस्सा मिलता है, लेकिन वे प्रति गरीब ग्रामीण परिवार पर तुलनात्मक रूप से कम खर्च करते हैं. इसका कारण कर्मचारियों, तकनीकी उपकरणों की कमी तथा कार्यान्वयन में दिक्कतों को माना गया. परिवर्तनशील भारत में सामाजिक सुरक्षा (Social Protection for a Changing India) नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में भ्रष्टाचार और इसकी प्रशासनिक व्यवस्था लचर होने के कारण गरीबी उन्मूलन में कारगर नहीं है. विश्व बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री जॉन ब्लामक्विस्ट ने इस संदर्भ में कुछ राज्यों में खाद्य कूपन तथा स्मार्ट कार्ड के उपयोग को जवाबदेही बढ़ाने वाला बताया और कहा कि नकदी हस्तांतरण का विचार भी अच्छा हो सकता है.
रिपोर्ट में महात्मा गांधी नरेगा (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee scheme, MNREGA) की इस बात के लिए प्रशंसा की गई कि इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं को बहुत अच्छा हिस्सा मिला है. महात्मा गांधी नरेगा में अनुसूचित जाति को 31 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 25 प्रतिशत व महिलाओं को 50 प्रतिशत हिस्सा दिया गया.
विदित हो कि योजना आयोग के आग्रह पर विश्व बैंक ने यह सर्वेक्षण वर्ष 2004 में शुरू की थी.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation