सर्वोच्च न्यायालय ने सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ित लोगों की मदद करने वाले लोगों को पुलिस या किसी अन्य अधिकारी द्वारा बेवजह परेशान किए जाने से बचाने के लिए 30 मार्च 2016 को इस संदर्भ में केंद्र के दिशानिर्देशों को मंजूरी दी.
न्यायाधीश वी गोपाला गौड़ा और न्यायाधीश अरूण मिश्रा की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि वह इन दिशानिर्देशों का व्यापक प्रचार करे ताकि मुसीबत के समय दूसरों की मदद करने वाले नेक लोगों को कोई अधिकारी प्रताड़ित न कर पाए.
ये दिशानिर्देश पूर्व न्यायाधीश के एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति की सिफारिशों पर आधारित थे. समिति में सड़क परिवहन मंत्रालय के पूर्व सचिव एस सुंदर और पूर्व प्रमुख वैज्ञानिक निशी मित्तल भी शामिल थीं. इस समिति ने जो सिफारिशें की थीं, उसमें राज्य सड़क सुरक्षा परिषदें गठित करने, अंधियारे स्थानों की पहचान का प्रोटोकॉल विकसित करने, उन्हें हटाने और उठाए जाने वाले कदमों के प्रभाव की निगरानी आदि शामिल थे.
इससे पहले मार्च 2016 की शुरूआत में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि वह सड़क सुरक्षा पर एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में बनी समिति की सिफारिशों पर एक आदेश पारित करेगा. इन सिफारिशों में कहा गया था कि सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों की जिंदगी बचाने वाले लोगों को पुलिस या अन्य अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किए जाने से डरने की जरूरत नहीं है.
सर्वोच्च न्यायालय ने सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा उठाए जा रहे कदमों की निगरानी के लिए वर्ष 2014 में तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की थी. समिति ने शराब पीकर या तेज गति में वाहन चलाने, लाल बत्ती पार करने और हेल्मेट या सीट बेल्ट के नियम तोड़ने के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भी सुझाव दिया.
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