भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने 6 अप्रैल 2015 को केंद्र सरकार को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम-2000 की पुनः जाँच के आदेश दिया है.इसे बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों से संबंधित मामलों के लिए और अधिक कठोर बनाने की सिफारिश की है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी किशोर यह कहकर बच नहीं सकता कि वह अपराध की जघन्यता समझने के लिए अल्पायु है.यह सन्देश दिया जाना जरुरी है कि अपराध का शिकार हुए व्यक्ति का जीवन भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है.
कोर्ट ने कहा कि किशोरों द्वारा किये जाने वाले अपराधों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के एक बयान के अनुसार पिछले दशक में किशोरों द्वारा बलात्कारों की संख्या में 300 प्रतिशत का इजाफा हुआ है जबकि किशोर अपराध में 78 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
इस सिलसिले में अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी को सम्बंधित विभागों से संपर्क कर यह जानने के लिए कहा गया कि क्या मौजूदा कानूनों में किसी तरह के फेरबदल अथवा जांच से प्रभावी बदलाव संभव हैं.
यह फैसला जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस पीसी पंत की अध्यक्षता वाली पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए सुनाया, जिसमें आरोपी को हत्या करने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी है.
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