सुप्रीम कोर्ट ने 26 फ़रवरी 2015 को दिए गए अपने फैसले में इस बात की पुष्टि की है कि यदि कोई व्यक्ति स्वयं को हिंदू धर्म में अपना रूपांतरण करता है तो उसे अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जा सकता है.परन्तु उसके जाति के लोग उसे अपना लें और वह यह साबित कर दे की दूसरा धर्म अपनाने से पहले उसके पूर्वज अनुसूचित जाति के थे. दीपक मिश्रा और वी गोपाल गोवाड़ा की पीठ (उच्चतम न्यायालय) ने यह फैसला केरल निवासी केपी मनु की याचिका की सुनवाई में लिया.
उच्चतम न्यायालय ने इसके लिए तीन शर्त बताईं हैं –
•व्यक्ति उस जाति का होना चाहिए जिसका उल्लेख अनुसूचित जति आदेश 1950 में किया गया हो.
•व्यक्ति का दोबारा धर्मांतरण उसी धर्म में हो जो उसके माता-पिता और पुरखों का था.
•व्यक्ति के समुदाय ने उसे स्वीकार किया है इसका भी प्रमाण होना चाहिए.
पृष्ठभूमि
•मनु का जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ था. उनके दादा ने हिंदू धर्म छोड़ कर ईसाई धर्म अपना लिया था. मनु 24 वर्ष की उम्र में हिंदू धर्म में लौट आए थे. उन्हें हिंदू पुलया जाति का अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र दिया गया था.
•समीक्षा समिति ने भी उसे हिंदू मानने से इनकार कर दिया क्योंकि उसके पूर्वज ईसाई थे और उसने स्वयं ईसाई महिला से शादी की थी.
•राज्य सरकार ने मनु के नियोक्ता को उसे सेवा से बरखास्त करने और उससे तनख्वाह के रूप में दी गयी 15 लाख रुपये की रकम वसूलने का आदेश दिया था.
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