13वें वित्त आयोग की रिपोर्ट
"केद्र सरकार ने 13वें वित्त आयोग की अधिकांश संस्तुतियों को हूबहू मान लिया जिससे अब राज्यों को केंद्र से अधिक पैसा प्राप्त होगा। वित्त आयोग ने राजकोषीय घाटा कम करने का भी आह्वान किया। "
13वें वित्त आयोग की रिपोर्ट दिसंबर 2009 में ही राष्ट्रपति को सौंपी जा चुकी थी। 26 फरवरी 2010 को इसे लोकसभा के पटल पर सरकार ने पेश किया और इसकी अधिकांश संस्तुतियों को हूबहू केद्र सरकार ने स्वीकार कर लिया। वित्त आयोग ने इस बार अपनी रिपोर्ट में विशेष दरियादिली दिखाते हुए राज्यों पर विशेष कृपा बरसायी है और सिफारिश की है कि केद्र को 30.5 फीसदी की बजाय 32 फीसदी कर राशि राज्यों की झोली में डालना चाहिए। स्थानीय निकायों को अक्सर यह शिकायत रहती है कि ठीक तरीके से वित्तीय अधिकार नहीं दिये गये हैं जिसकी वजह से वह विकास कार्र्यों को सुचारू रूप से कर सकने में सक्षम नहीं हैं।
इसे देखते हुए वित्त आयोग ने यह सिफारिश की है कि स्थानीय निकायों को अगले पांच वर्र्षों तक विभाजन योग्य राशि का 2.5 फीसदी हिस्सा मिलना चाहिए।
वित्त आयोग इतने पर ही नहीं रूका है और उसने सिफारिश की है कि केेंद्र से कुल राजस्व से राज्यों को मिलने वाला हिस्सा भी 38 फीसदी से बढ़कर 39.5 फीसदी होना चाहिए।
राज्यों पर मेहरबानी का सिलसिला जारी रखते हुए वित्त आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि राज्यों के लिए अनुदान राशि बढ़ाई जाये। लेकिन साथ ही एक शर्त भी लगाई गई है कि इस अनुदान राशि का अधिकांश हिस्सा प्राथमिक शिक्षा व पर्यावरण जैसी कल्याणकारी योजनाओं में खर्च किया जाए।
राजकोषीय घाटा कम करने का आह्वान
वित्त आयोग ने राजकोषीय घाटे को लेकर भी अपनी टिप्पणी की है। वित्त आयोग के अनुसार केद्र के ऋणभार में कमी लाते हुए 2014-15 तक इसे सकल घरेलू उत्पाद के 45 फीसदी तक सीमित कर दिया जाना चाहिए। इसी समय सीमा तक राज्यों का ऋण भार सकल घरेलू उत्पाद के 25 फीसदी से कम करने का सुझाव दिया है। आयोग के पैमाने के अनुसार सरकार का कुल ऋण भार सकल घरेलू उत्पाद के 68 फीसदी तक सीमित रहना चाहिए। 2014-15 तक इसके लिए 60-65 फीसदी के लक्ष्य की सिफारिश आयोग ने की है। आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि 2013-14 तक राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 3 फीसदी हो जाना चाहिए। हालांकि राज्यों के राजकोषीय घाटे को लेकर आयोग ने उदार रवैया अपनाया है।
वित्त आयोग केद्र से राज्यों को वित्तीय हस्तांतरण के लिए दिशा-निर्देश सुझाने के लिए वित्त आयोग का गठन किया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 280 में यह व्यवस्था है कि राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक पांच वर्ष के बाद या आवश्यकता पडऩे पर उससे पूर्व एक वित्त आयोग का गठन किया जाएगा, जिसमें अध्यक्ष के अलावा चार अन्य सदस्य होंगे। भारत की संचित निधि में से राज्यों को दिए जाने वाले अनुदानों के लिए सिद्धांत भी इसमें दिये जाते हैं।
अभी तक भारत में कुल 13 आयोगों का गठन किया जा चुका है। पहले वित्त आयोग का गठन 1951 में के. सी. नियोगी की अध्यक्षता में किया गया था।
वित्त आयोग की मुख्य सिफारिशें
- विभाज्य केद्रीय करों की शुद्ध निवल प्राप्तियों में राज्यों का हिस्सा 32 फीसदी हो।
- केद्र की सकल राजस्व प्राप्तियों में राज्यों को दिया जाने वाला हिस्सा अधिकतम 39.5 फीसदी रखा जाए।
- राजकोषीय दायित्व के लिए नया खाका तैयार करने की आवश्यकता।
- केद्र और राज्यों का कुल ऋण 68 फीसदी के दायरे में ही रखने की सिफारिश।
- वैश्विक मंदी के दौरान दिये गये प्रोत्साहन पैकेज वापस लेने की सलाह।
- राज्यों को सहायतानुदान के रूप में सिफारिश अवधि (2010-15) के लिए 3,18,581 करोड़ रुपये की कुल राशि की सिफारिश।
- राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक निधि को राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया निधि में तथा आपदा राहत निधि को संबंधित राज्यों की आपदा अनुक्रिया निधि में मिला दिया जाए।
- वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) के क्रियान्वयन के कारण राज्यों को होने वाले राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए 50,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किये जाने की सिफारिश। यह एक प्रमुख सिफारिश है जिसे केेंद्र सरकार ने मानने से इंकार कर दिया।
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