जानें डायनासोर की 3 प्रजातियों के पैरों के निशान भारत में कहां मिले हैं ?

Jan 24, 2023, 15:59 IST

हाल ही में हुई खोज में डायनासोर की तीन प्रजातियों के पैरों के निशान मिले हैं. आइये जानते हैं कि ये निशान कहां पाए गए हैं और साथ ही कुछ महत्वपूर्ण तथ्य.

Footprints of three species of dinosaurs
Footprints of three species of dinosaurs

डायनासोर लगभग 174 मिलियन वर्षों तक पृथ्वी पर रहे. ऐसा बताया जाता है कि डायनासोर ज्यादातर कुत्ते और घोड़े के आकार के जीवों के समूह से विकसित हुए, जो जमीन पर मौजूद सबसे विशाल जानवरों के रूप में विकसित हुए. कुछ मांस खाने वाले डायनासोर समय के साथ बदलते गए और पक्षियों में विकसित हुए. केवल गैर-एवियन (Non-avian) डायनासोर विलुप्त हो गए.

आइये जानते हैं कि डायनासोर की 3 प्रजातियों के पैरों के निशान कहां पाए गए हैं

हाल ही में एक बड़ी खोज में राजस्थान के जैसलमेर जिले के थार मरुस्थल में डायनासोर की 3 प्रजातियों के पैरों के निशान मिले हैं. यह राज्य के पश्चिमी भाग में विशाल सरीसृपों की उपस्थिति को प्रमाणित करता है, जो मेसोज़ोइक युग के दौरान टेथिस महासागर के समुद्र तट का निर्माण करते थे.

आखिर खोज क्या कहती है?

समुद्र तट के तलछट में बने पैरों के निशान बाद में स्थायी रूप से पत्थर जैसे हो जाते हैं. डायनासोर के पैरों के निशान वाली 3 प्रजातियां इस प्रकार हैं - यूब्रोंटेस सीएफ (Eubrontes cf), गिगेंटस (Giganteus), यूब्रोंट्स ग्लेन्रोसेंसिस (Eubrontes glenrosensis)और ग्रेलेटर टेनुइस (Grallator tenuis).

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यहीं आपको बता दें कि गिगेंटस और ग्लेन्रोसेंसिस प्रजातियों में 35 cm के पैरों के निशान हैं वहीं तीसरी प्रजाति के पदचिह्न 5.5 cm पाए गए थे. 200 मिलियन वर्ष पुराने थे इन पैरों के निशान. 

जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के सहायक प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह परिहार (Virendra Singh Parihar), हाल ही में खोज करने वाले जीवाश्म वैज्ञानिकों की टीम के सदस्य के अनुसार पैरों के निशान 200 मिलियन वर्ष पुराने थे. वे जैसलमेर के थायट गांव (Thaiat village) के पास पाए गए.

डायनासोर की प्रजाति को थेरोपोड (Theropod) प्रकार का माना जाता है, जिसमें खोखली हड्डियां और तीन अंकों वाली पैरों की विशिष्ट विशेषताएं होती हैं.

डॉ. परिहार के अनुसार प्रारंभिक जुरासिक काल से संबंधित सभी तीन प्रजातियाँ मांसाहारी थीं.

यूब्रोंटेस 12 से 15 मीटर लंबा और इसका वजन 500 किलोग्राम और 700 किलोग्राम के बीच होगा, जबकि ग्रेलेटर की ऊंचाई दो मीटर होने का अनुमान है, एक इंसान जितना, तीन मीटर तक की लंबाई के साथ.

भू-रासायनिक विश्लेषण और अपक्षय सूचकांकों की गणना से पता चला है कि पदचिन्हों के जमाव के दौरान भीतरी इलाकों की जलवायु मौसमी से लेकर अर्ध-शुष्क तक थी.

कच्छ और जैसलमेर घाटियों में फील्डवर्क से पाया गया कि प्रारंभिक जुरासिक काल के दौरान मुख्य अतिक्रमण के बाद, समुद्र का स्तर कई बार बदला है. तलछट और जीवाश्मों के निशान और पोस्ट-डिपॉजिटल संरचनाओं के स्थानिक और अस्थायी वितरण ने इस घटना का संकेत दिया.

ग्रेलेटर टेनुइस (Grallator tenuis) के फुटप्रिंट की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं:

बहुत संकीर्ण पैर की उंगलियां और लंबे पंजे शामिल थे जिसमें स्टेनोनीक्स (Stenonyx) के शुरुआती जुरासिक इकनोजेनस (Jurassic ichnogenus) के साथ काफी समानताएं थीं.

क्या आप जानते हैं कि 2014 में जयपुर में 'जुरासिक सिस्टम पर नौवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस' आयोजित होने के बाद स्लोवाकिया में कोमेनियस विश्वविद्यालय के Jan Schlogl और पोलैंड में वारसॉ विश्वविद्यालय के Grzegorz Pienkowski ने भारत में डायनासोर के पैरों के निशान की खोज की थी.

थार मरुस्थल के बारे में 

थार मरुस्थल, जिसे ग्रेट इंडियन डेजर्ट (Great Indian Desert) भी कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप पर लहरदार रेतीले पहाड़ों का शुष्क क्षेत्र है.

थार नाम थुल (Thul) से लिया गया है, जो इस क्षेत्र में रेत की लकीरों के लिये इस्तेमाल किए जाने वाला एक सामान्य शब्द है.

यह आंशिक रूप से राजस्थान राज्य, उत्तर-पश्चिमी भारत और आंशिक रूप से पंजाब और सिंध प्रांतों, पूर्वी पाकिस्तान में स्थित है.

थार रेगिस्तान एक शुष्क क्षेत्र है और लगभग 77,000 वर्ग मील (200,000 वर्ग किमी) क्षेत्र में फैला हुआ है.

यह पश्चिम में सिंचित सिंधु नदी के मैदान, उत्तर और उत्तर-पूर्व में पंजाब के मैदान, दक्षिण-पूर्व में अरावली रेंज और दक्षिण में कच्छ के रण से घिरा है.

इस पूरे क्षेत्र में ‘प्लाया’ (खारे पानी की झीलें) जिन्हें स्थानीय रूप से ‘धंड’ के रूप में जाना जाता है फैली हुई हैं.

यह मरुस्थल एक समृद्ध जैव विविधता का समर्थन करता है और इसमें मुख्य रूप से तेंदुए, एशियाई जंगली बिल्ली (Felis silvestris Ornata), चाउसिंघा (Tetracerus Quadricornis), चिंकारा (Gazella Bennettii), बंगाली रेगिस्तानी लोमड़ी (Vulpes Bengalensis), ब्लैकबक (Antelope) और सरीसृप की कई प्रजातियाँ निवास करती हैं.

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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