भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने सुरक्षा के लिए हम्पी में विजया विटाला मंदिर परिसर में प्रसिद्ध पत्थर के रथ के चारों ओर लकड़ी के बैरिकेड् लगा दिए हैं. यह यूनेस्को (UNESCO) की विश्व धरोहर स्थल भी है. ऐसा विट्ठल मंदिर परिसर में पत्थर के रथ की सुरक्षा के लिये कदम उठाए गए हैं.
ऐसा कई बार देखा गया है कि पर्यटक इन स्मारकों के बहुत करीब पहुंच जाते हैं और कुछ इन्हें छू भी लेते हैं या छूने की कोशिश करते हैं. स्मारक को क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए, ASI ने इस विरासत संरचना के चारों ओर बैरिकेड्स लगा दिए हैं.
पत्थर के रथ के अलावा, हम्पी में, उग्रा नरसिम्हा (Ugra Narasimha) और सासिव कालू गणेश (Saasive Kalu Ganesha) सहित कई अन्य स्मारक अगले चरण में बंद होने की उम्मीद है. पिछले दो वर्षों में, अधिकारियों के अनुसार हम्पी ने कई प्रकार की घटनाओं को देखा है. ASI, हम्पी सर्कल के अधिकारियों ने कहा कि अनियंत्रित पर्यटकों के संरक्षित स्मारकों के बहुत करीब होने की कई शिकायतें थीं.
कई बार, पर्यटक विरासत के ढाँचों पर बैठकर या झुककर तस्वीरें लेने पर सुरक्षाकर्मियों के साथ झगड़ा करते थे. बैरिकेड् मानव हस्तक्षेप को कम करने और भविष्य के लिए इन संरचनाओं को संरक्षित करने के लिए लगाए गए हैं, “अधिकारीयों के अनुसार.
अधिकारी ने कहा कि बैरिकेड्स पार करने वालों पर नियमानुसार जुर्माना लगाया जाएगा. अधिकारी ने यह भी कहा कि “केंद्रीय ASI ने लगभग छह महीने पहले हम्पी में महत्वपूर्ण स्मारकों को बंद करने के लिए परियोजना को मंजूरी दी थी. लेकिन लॉकडाउन के कारण काम हाल ही में शुरू हुआ."
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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) क्या है?
पुरातात्त्विक अनुसंधान और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत एक प्रमुख संगठन है.
हम्पी रथ के बारे में
यह भारत में तीन प्रसिद्ध पत्थर रथों में से है,अन्य दो कोणार्क (ओडिशा) और महाबलीपुरम (तमिलनाडु) में हैं. 16वीं शताब्दी में इसका निर्माण विजयनगर शासक राजा कृष्णदेवराय के आदेश पर किया गया था. यह मंदिर भगवान विष्णु के आधिकारिक वाहन गरुड़ को समर्पित है.
डिजाइन: द्रविड़ शैली में निर्मित, रथ पर नक्काशी की गई है जिसमें पौराणिक युद्ध के दृश्य दिखाए गए हैं. दो विशालकाय पहियों पर खड़े होकर दो हाथी रथ को खींचते हुए दिखाई देते हैं. यह पत्थर का रथ इकट्ठे किए गए कई छोटे पत्थरों से बना हुआ है. विजयनगर साम्राज्य के अंत में सेना के आक्रमण से पत्थर का रथ आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गया था.
हम्पी के बारे में
इसमें मुख्य रूप से विजयनगर साम्राज्य की राजधानी के अवशेष शामिल हैं. यह मध्य कर्नाटक में तुंगभद्रा बेसिन में स्थित है. 1336 में इसकी स्थापना हरिहर और बुक्का ने की थी.
विठ्ठल मंदिर जो कि हम्पी में मौजूद है विजय नगर साम्राज्य की कलात्मक शैली का एक अच्छा उदाहरण है. यहाँ पर पत्थर से निर्मित देवी लक्ष्मी, नरसिंह तथा गणेश की मूर्तियाँ काफी विशाल और अपनी भव्यता के कारण प्रसिद्ध हैं. यहाँ स्थित जैन मंदिरों में कृष्ण मंदिर, पट्टाभिराम मंदिर, हजारा राम चंद्र और चंद्र शेखर मंदिर प्रमुख हैं.
हम्पी के मंदिरों को उनकी बड़ी विमाओं, पुष्प अलंकरण, स्पष्ट नक्काशी, विशाल खम्भों, भव्य मंडपों और मूर्ति कला और पारंपरिक चित्र निरुपण के लिये जाना जाता है.
यह यूनेस्को (1986) द्वारा विश्व विरासत स्थल के रूप में वर्गीकृत, एक "विश्व का सबसे बड़ा ओपन-एयर संग्रहालय" भी है.
विजयनगर शहर के स्मारक को विद्या नारायण संत के सम्मान में विद्या सागर के नाम से भी जाना जाता है. इनको वर्ष 1336-1570 ईस्वी के बीच हरिहर-I से लेकर सदाशिव राय इत्यादि राजाओं ने बनवाया था.
तुलुव वंश (Tuluva Dynasty) के महान शासक कृष्णदेव राय ने यहाँ पर सबसे अधिक इमारतें बनवाई थीं.
तालीकोटा की लड़ाई (Battle of Talikota) (1565 CE) के कारण इसका बड़े पैमाने पर विनाश हुआ. तालीकोटा की लड़ाई, विजयनगर के हिंदू राजा और बीजापुर, बीदर, अहमदनगर, और गोलकोंडा के चार मुस्लिम सुल्तानों की सेनाओं के बीच दक्षिण भारत के दक्कन क्षेत्र में हुई थी.
आइये अब विट्ठल मंदिर के बारे में जानते हैं
देवराय द्वितीय के शासन के दौरान 15वीं शताब्दी में इसका निर्माण हुआ था. देवराय द्वितीय विजयनगर साम्राज्य के शासकों में से एक थे. यह मंदिर विट्ठल को समर्पित है और इसे विजया विट्ठल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.
विट्ठल भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं. यह मंदिर द्रविड़ शैली जो कि दक्षिण भारतीय मंदिर की वास्तुकला है से निर्मित है.
विजयनगर साम्राज्य के बारे में अन्य तथ्य
- दक्षिण में जब मुहम्मद तुगलक अपनी शक्ति खो रहा था तब राजकुमार हरिहर और बूक्का ने 1336 में कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की.
- उन्होंने तुरंत ही उत्तर दिशा में कृष्णा नदी तथा दक्षिण में कावेरी नदी के बीच इस पूरे क्षेत्र पर अपना राज्य स्थापित कर लिया था.
- कई शक्तियों के बीच टकराव हुआ जब विजयनगर साम्राज्य की ताकत बढ़ रही थी और उन्होंने बहमनी साम्राज्य के साथ भी बार-बार लड़ाइयां लड़ी.
- चार महत्त्वपूर्ण राजवंशों जिनका विजयनगर साम्राज्य पर शासन था वे इस प्रकार हैं: संगम, सुलुव, तुलुव और अराविदु.
- विजयनगर साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध राजा कृष्ण देव राय थे. इनके कार्यकाल में साम्राज्य भव्यता के शिखर पर पहुंच गया था. जो भी लड़ाई उन्होंने लड़ी थी वे उन सबमें सफल रहे थे. उन्होंने ओडिशा के राजा को पराजित किया था और विजयवाड़ा तथा राज महेन्द्री को जोड़ा.
- उन्होंने पश्चिमी देशों के साथ व्यापार को प्रोत्साहन दिया, पुर्तगालियों के साथ भी उनके अच्छे संबंध थे. उन दिनों पुर्तगालियों का व्यापार भारत के पश्चिमी तट पर व्यापारिक केन्द्रों के रूप में स्थापित हो चुका था.
- वे महान योद्धा के साथ-साथ कला के पारखी और अधिगम्यता के महान संरक्षक रहे. तेलगु साहित्य भी उनके कार्यकाल में काफी प्रिसद्ध हुआ और फैला. अमुक्तमलयद (Amuktamalyada) के नाम से जाने जाने वाले शासन कला के ग्रंथ की रचना उन्होंने तेलुगु में की थी.
- एक उपनगरीय बस्ती की भी स्थापना इनके द्वारा की गई जिसे नागालपुरम कहा जाता था. उनको दक्षिण भारतीय मंदिरों में प्रभावशाली गोपुरम जोड़ने का भी श्रेय दिया जाता है.
- कृष्ण देव राय की मृत्यु के साथ विजयनगर साम्राज्य का पतन 1529 में शुरू हुआ.
- 1565 में पूर्ण रूप से यह साम्राज्य खत्म हो गया जब आदिलशाही, निजामशाही, कुतुब शाही और बरीद शाही के संयुक्त प्रयासों द्वारा तालीकोटा में रामराय को पराजित किया. इसके बाद यह साम्राज्य छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया.
द्रविड़ वास्तुकला: उत्तर और दक्षिण भारत में छठी शताब्दी ई. तक भारत में मंदिर वास्तुकला शैली लगभग एक समान थी. परन्तु छठी शताब्दी ई. के बाद प्रत्येक क्षेत्र का अलग-अलग दिशाओं में विकास हुआ. तीन प्रकार की शैलियों- नागर, द्रविड़ और बेसर शैली का प्रयोग आगे चलकर किया गया.
नागर शैली के बारे में
- नगर से 'नागर' शब्द बना है. सबसे पहले नगर में निर्माण होने के कारण इसे नगर शैली के नाम से जाना जाता है. यह शैली संरचनात्मक मंदिर स्थापत्य की एक शैली है जो हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक के क्षेत्रों में प्रचलित थी.
- उत्तर भारत में इसे लगभग 8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच शासक वंशों ने पर्याप्त संरक्षण दिया. इस शैली में समतल छत से उठती हुई शिखर की प्रधानता पाई जाती है. इसे अनुप्रस्थिका एवं उत्थापन समन्वय भी कहा जाता है. आधार से शिखर तक इस शैली से निर्मित मंदिर चतुष्कोणीय होते हैं.
- इस शैली में बने मंदिरों को ओडिशा में ‘कलिंग’, गुजरात में ‘लाट’ और हिमालयी क्षेत्र में ‘पर्वतीय’ कहा गया है.
द्रविड़ शैली के बारे में
- द्रविड़ शैली के मंदिर कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक पाए जाते हैं. इस शैली की शुरुआत 8वीं शताब्दी में हुई और सुदूर दक्षिण भारत में लगभग 18वीं शताब्दी तक बनी रही.
- जो मंदिर इस शैली से निर्मित होते हैं वह बहुमंजिला होते हैं. द्रविड़ शैली को जन्म पल्लवों ने दिया. इसने उँचाइयाँ चोल काल में हासिल की. मूर्तिकला और चित्रकला का संगम इस शैली के साथ चोल काल के दौरान हो गया था.
उदाहरण:
नागर शैली: कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो), मध्य प्रदेश (Kandariya Mahadeva Temple (Khajuraho), Madhya Pradesh)
द्रविड़ शैली: बृहदेश्वर मंदिर और महाबलीपुरम मंदिर, तमिलनाडु(Brihadeshwara Temple and Mahabalipuram Temple, Tamil Nadu)
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