एक शब्द जो भारतीय जलवायु का उचित वर्णन कर सकता है वह है ‘मॉनसून’। मॉनसून अरबी शब्द 'मौसीम' से लिया गया जिसका अर्थ होता है मौसम। ये मॉनसूनी हवायें हवायें छः महीने समुंद्र से स्थल की ओर और छः महीने स्थल से समुंद्र की ओर चला करती हैं। मॉनसून जलवायु दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया की विशेषता है और इसके अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों पर प्रभाव डालता है।
“जल ही जीवन है”
भारत की 64 प्रतिशत जनसंख्या तो मूलतः कृषि पर ही आश्रित है और 65 फीसदी भारतीय कृषि मॉनसून पर निर्भर है। कृषि, भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ होने के कारण मॉनसून यहां की कृषि व अर्थव्यवस्था दोनों को समानरूप से प्रभावित करता है। वास्तव में, मॉनसून अक्ष है जिसके आसपास भारत अर्थव्यवस्था घूमती है। इसलिए, हम कह सकते हैं मॉनसून भारतीय अर्थव्यवस्था को आकार देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर मॉनसून का प्रभाव
1. भारतीय कृषि पर प्रभाव: भारतीय किसानो के लिए सोने की तुलना में पानी अधिक मूल्यवान है क्योंकि कम से कम 50 प्रतिशत कृषि को पानी, वर्षा द्वारा ही प्राप्त होता है। यदि मॉनसून अनुकूल है तो कृषि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है या यदि अनुकूल नहीं है तो वस्तुओं की मांग में बढ़ोतरी होगी और लोगों के अन्य वर्गों की सेवाएं कम हो जाती हैं। उद्योग के उत्पादों में कमी आ सकती है क्योंकि उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति नहीं हो पायेगी।
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2. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर प्रभाव: मॉनसून का देश के कृषि जीडीपी पर सीधा प्रभाव पड़ता है। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है क्योंकि 60% से अधिक भारतीय आबादी कृषि में संलग्न है और भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में करीब 20.5% का योगदान होता है। अगर मॉनसून असफल रहता है तो देश के विकास और अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। सामान्य से ऊपर मॉनसून रहने पर कृषि उत्पादन और किसानों की आय दोनों में बढ़ोतरी होती है, जिससे ग्रामीण बाज़ारों में उत्पादों की मांग को बढ़ावा मिलता है।
3. व्यापार के संतुलन पर प्रभाव: व्यापार का संतुलन मॉनसून के अप्रत्याशित और निष्पक्ष परिवर्तनों पर भी निर्भर है क्योंकि अगर मॉनसून अनुकूल है तो व्यापार भी संतुलित होगा और अगर मॉनसून नहीं है तो व्यापार संतुलित नहीं होगा। मॉनसून की विफलता प्रतिकूल रूप से भारत के विदेशी व्यापार के संतुलन को प्रभावित करती है।
एक खराब मॉनसून न केवल तेज़ी से बढ़ते उपभोक्ता वस्तुओं की मांग को कमज़ोर करता है, बल्कि आवश्यक खाद्य वस्तुओं के आयात को भी बढ़ावा देता है और सरकार को कृषि ऋण छूट जैसे उपाय करने के लिये भी मज़बूर करता है, जिससे सरकार पर वित्त का दबाव बढ़ जाता है।
जिससे राष्ट्रीय आय में गिरावट के चलते सरकार का राजस्व तेजी से गिरावट आ सकती है। इसलिए, हम कह सकते हैं कि राज्य का राजस्व और आय हर साल मॉनसून पर निर्भर करती है।
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4. खाद्य आपूर्ति पर प्रभाव: यदि मॉनसून अनुकूल नहीं रहा तो कृषि उत्पादन कम होगी तो आपूर्ति संबंधी समस्या पैदा होगी और खाद्य मुद्रास्फीति को भी बढ़ा देगा।
5. जल विद्युत क्षेत्र और सिंचाई सुविधाओं पर प्रभाव: भारतीय विद्युत परियोजना अधिकांश बारहमासी नदियों पर स्थापित है। यदि मॉनसून अनुकूल नहीं रहता है तो नदियों की पानी के स्तर कम हो जायेंगे जिससे बिजली उत्पादन के साथ-साथ सिंचाई सुविधाओं पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।
6. ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: भारत के ग्रामीण पृष्ठभूमि कृषि और उससे सम्बंधित गतिविधियों के आसपास ही घूमती रहती है। 20011 की जनगणना के अनुसार, 72.2% आबादी लगभग 638,000 गांवों में रहती है और शेष 27.8% आबादी लगभग 5,100 से अधिक शहरों और 380 शहरी समूहों में रहते हैं। इसलिए मॉनसून अनुकूल नहीं होता है तो फसलों को नुकसान पहुच सकता है जिससे कृषि उत्पादन प्रभावित हो सकता है और ग्रामीण आपूर्ति संबंधी समस्या पैदा हो सकती है।
इसलिए, हम कह सकते हैं की मॉनसून का भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डालता है क्योंकि 60% से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर करती है। दुसरे शब्दों में यु कहे की जिस प्रकार जीवन के अस्तित्व के लिए रक्त की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार मॉनसून भी भारतीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा है।
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