जगन्नाथ रथ यात्रा 2021: रथ महोत्सव, इतिहास और महत्व

Jagannath Rath Yatra 2021: जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा आज COVID-19 प्रतिबंधों के बीच शुरू हुई और नौ दिनों तक चलेगी.  इस साल यह यात्रा श्रद्धालुओं की भागीदारी के बिना शुरू की गई है. आइए इस लेख के माध्यम से भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा, इतिहास, और महत्व के बारे में अध्ययन करते हैं. 

Jul 12, 2021, 12:37 IST
Jagannath Rath Yatra
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Jagannath Rath Yatra 2021: COVID-19 प्रतिबंधों के बीच ओडिशा के पुरी में दुनिया के सबसे बड़े रथ उत्सव की रस्में शुरू हुईं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सोमवार को 144वीं रथ यात्रा की शुरुआत के मौके पर सभी को बधाई दी.

ओडिशा में, पुरी में दो दिवसीय कर्फ्यू लगा दिया गया है और श्रद्धालुओं की भागीदारी के बिना रथ यात्रा समारोह शुरू होने के कारण सुरक्षा बढ़ा दी गई है. 

जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन देवी सुभद्रा और उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र या बलराम को समर्पित है. जगन्नाथ रथ यात्रा व्यापक रूप से मनाई जाती है और भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है जहाँ लाखों भक्त रथ यात्रा में भाग लेते हैं और भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन ओडिशा के पुरी में किया जाता है. इस यात्रा के साथ विभिन्न धार्मिक-पौराणिक मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

भगवान कृष्ण और बलराम के मामा कंस ने उन्हें मारने के लिए मथुरा आमंत्रित किया. कंस ने अक्रूर को रथ के साथ गोकुल भेजा. भगवान कृष्ण और बलराम रथ पर बैठे और मथुरा के लिए रवाना हो गए. भक्त प्रस्थान के इस दिन को रथ यात्रा के रूप में मनाते हैं.

एक अन्य मान्यता के अनुसार यह रथ यात्रा का उत्सव द्वारका में भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा के साथ जुड़ा हुआ है. एक बार, भगवान कृष्ण की पत्नियों ने माँ रोहिणी से कृष्ण और गोपी से संबंधित कुछ दिव्य कथाएँ सुनना चाहती थीं या रासलीला के बारे में जानना चाहती थीं. लेकिन माँ कहानी सुनाने को तैयार नहीं थी. एक लंबे अनुरोध के बाद, वह मान गई लेकिन इस शर्त पर कि सुभद्रा दरवाजे की रखवाली करेंगी ताकि कोई और इसको ना सुन ले या अंदर आजाए.

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जब कहानियाँ रोहिणी माँ द्वारा सुनाई जा रही थी, सुभद्रा भी कहानी में खो गई कि इसी बीच भगवान कृष्ण और बलराम द्वार पर पहुँचे और सुभद्रा ने उन्हें उनके बीच में खड़े होकर रोकने का प्रयास किया. उस समय ऋषि नारद पहुंचे और उन्होंने तीनों भाई-बहनों को एक साथ देख कर उन तीनों से अपना आशीर्वाद हमेशा के लिए देने की प्रार्थना की और दिव्य दर्शन देने का आग्रह किया. देवताओं ने नारद की इच्छा को मान लिया. अतः जगन्नाथ पुरी के मंदिर में इन तीनों (बलभद्र, सुभद्रा एवं कृष्ण जी) के इसी रूप में दर्शन होते हैं.

एक और अन्य मान्यता के अनुसार द्वारका में, भक्तों ने उस दिन का जश्न मनाया जब भगवान कृष्ण, बलराम के साथ, सुभद्रा को अपनी बहन के साथ रथ पर सवार होकर शहर की सुंदरता दिखाने के लिए ले गए.

भगवान् जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान मनाई जाने वाली परंपराएँ

- तीनों भगवान की मूर्तियों को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है. इन मूर्तियों को मंत्रों और शंखों के साथ सजावटी रथों में रखा जाता है.

- रथ यात्रा से पहले, देवताओं का अनुष्ठान स्नान समारोह होता है, जिसे स्नाना पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है.

- रथ यात्रा के दिन तक, देवताओं को अलग रखा जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ठंडे जल से स्नान करके वे बीमार हो गए हैं और इसलिए किसी को भी दर्शन नही देते हैं. इस घटना को अनासारा के नाम से जाना जाता है.

- रथ यात्रा के पहले दिन छेरा पहरा की रस्म निभाई जाती है, जिसके अंतर्गत पुरी के गजपति महाराज के द्वारा यात्रा मार्ग एवं रथों को सोने की झाड़ू से स्वच्छ किया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि, प्रभु के सामने हर व्यक्ति समान है. इसलिए एक राजा साफ़-सफ़ाई वाले का भी कार्य करता है. यहीं आपको बता दें कि यह रस्म यात्रा के दौरान दो बार होती है.एकबार जब यात्रा को गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है और दूसरी बार जब यात्रा को वापस जगन्नाथ मंदिर में लाया जाता है तब. इसी रस्म में राजा मंदिर से देवताओं को लाते हैं और उन्हें रथ पर बिठाया जाता है.

भक्त इन बड़े रथों को मुख्य मार्ग पर तीन किलोमीटर, देवताओं के ‘वाटिका गृह,' उनकी मौसी, गुंडीचा के घर तक खींचते हैं. देवता एक सप्ताह तक उनके साथ रहते हैं.

ऐसा माना जाता है कि इस समय के दौरान, देवी लक्ष्मी अपने आप को पीछे छोड़ दिए जाने के कारण अपने पति से क्रोधित हो जाती हैं, और क्रोध में भगवान जगन्नाथ के रथ को नष्ट कर देती हैं. इस अनुष्ठान को हेरा पंचमी के रूप में जाना जाता है, जिसमें 'हेरा,’ का अर्थ ढूँढना या खोजना है.

इसके बाद तीनों भाई-बहन अपनी मौसी के घर से बाहर निकलते हैं और 'बाहुदा यात्रा' यानी वापसी यात्रा पर निकल पड़ते हैं. उनके आगमन की प्रतीक्षा में उनके  भक्त भगवान का श्रीमंदिर में स्वागत करते हैं. देवता अपने भक्तों द्वारा लाए सभी चढ़ावे ग्रहण करने के बाद सोने से लदा हुआ रूप धारण करते हैं. यह लघु दर्शन उनके घर वापसी का प्रतीक होता है.

हालाँकि, भगवान जगन्नाथ को अभी भी अपने गृह में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती है. ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी अभी भी अपने भगवान से क्रोधित हैं. इसलिए वे द्वार बंद कर देती हैं और उन्हें अंदर नहीं आने देती हैं. भगवन जगन्नाथ उन्हें समझाने का प्रयास करते हैं और उनसे क्षमा माँगते हैं. निरंतर आग्रह करने के बाद देवी उन्हें अपने गृह में प्रवेश करने की अनुमति दे देती हैं.

नीलाद्रि बीज के साथ यात्रा का समापन होता है जो देवताओं के गर्भगृह में लौटने का प्रतीक है.

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व

भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु के अवतारों में से एक माना जाता है. हर साल, भक्तों द्वारा रथ यात्रा मनाई जाती है. ऐसा कहा जाता है कि जो कोई भक्त सच्चे मन से और पूरी श्रद्धा के साथ इस यात्रा में शामिल होते हैं तो उन्हें मरणोपरान्त मोक्ष प्राप्त होता है. वे इस जीवन-मरण के चक्र से बाहर निकल जाते हैं. यह उन पापों को भी नष्ट कर देता है जो शायद जानबूझकर या अनजाने में किए गए हों. इस यात्रा में शामिल होने के लिए दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं.

रथ यात्रा के समय के दौरान वातावरण बहुत शुद्ध और सुंदर होता है. रथ के साथ भक्त ढोल बजाते हैं, मन्त्रों का उच्चारण करते रहते हैं. जगन्नाथ रथ यात्रा गुंडिचा यात्रा, रथ महोत्सव, इत्यादि यात्रा के रूप में भी प्रसिद्ध है.

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Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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