भारत की 10 प्रमुख मार्शल आर्ट्स, यहां देखें लिस्ट

भारत विविध संस्कृतियों और जातियों का देश है। इसके साथ ही यह अपनी मार्शल आर्ट के लिए प्रसिद्ध है, जो प्राचीन काल से विकसित हुई है। आजकल इन कला रूपों का उपयोग अनुष्ठानों, समारोहों, खेलों में, शारीरिक फिटनेस के साधनों व आत्मरक्षा के लिए किया जाता है, लेकिन पहले इसका प्रयोग युद्ध के लिए किया जाता था। कई कलाएं नृत्य, योग आदि से संबंधित हैं।

Apr 21, 2024, 14:23 IST
भारत की प्रमुख मार्शल आर्ट्स
भारत की प्रमुख मार्शल आर्ट्स

भारत विविध संस्कृतियों और जातियों का देश है और इसलिए यह अपनी मार्शल आर्ट के लिए प्रसिद्ध है, जो प्राचीन काल से विकसित हुई है। आजकल इन कला रूपों का उपयोग अनुष्ठानों, समारोहों, खेलों में, शारीरिक फिटनेस के साधनों व आत्मरक्षा के लिए किया जाता है, लेकिन पहले इसका प्रयोग युद्ध के लिए किया जाता था। ये कई कलाएं नृत्य, योग आदि से संबंधित हैं। इस लेख में हम भारत की 10 प्रमुख मार्शल आर्ट्स की सूची देखेंगे। 

प्रसिद्ध और प्रचलित मार्शल आर्ट की चर्चा नीचे की गई है:

-कलरीपयट्टू (भारत की सबसे पुरानी मार्शल आर्ट)

उत्पत्ति: केरल राज्य में चौथी शताब्दी ई. में

कलरीपयट्टू की तकनीक और पहलू: उझिचिल या गिंगली तेल से मालिश, ओट्टा, माइपयट्टू या शरीर व्यायाम, पुलियांकम या तलवार लड़ाई, वेरुमकई या नंगे हाथों से लड़ाई आदि।

इसके बारे में:

- कलारी एक मलयालम शब्द है, जिसका अर्थ है स्कूल/व्यायामशाला/प्रशिक्षण कक्ष, जहां मार्शल आर्ट का अभ्यास या शिक्षा दी जाती है।

-कलरीपयट्टू को एक मार्शल आर्ट के रूप में ऋषि परशुराम द्वारा पेश किया गया था, जिन्होंने मंदिरों का निर्माण किया था।

-इस कला का प्रयोग आज निहत्थे आत्मरक्षा के साधन तथा शारीरिक फिटनेस प्राप्त करने के एक तरीके के रूप में किया जाता है। पारंपरिक अनुष्ठानों और समारोहों में भी इसका उपयोग किया जाता है।

-इसमें नकली द्वंद (सशस्त्र और निहत्थे युद्ध) और शारीरिक अभ्यास शामिल हैं। यह महत्वपूर्ण पहलू लड़ाई की शैली है और इसमें किसी प्रकार का ढोल या गाना नहीं बजाया जाता है।

-इसका महत्वपूर्ण अंग फुटवर्क है, जिसमें किक, स्ट्राइक और हथियार आधारित अभ्यास शामिल हैं।

-फिल्म अशोका एंड द मिथ से भी इसकी लोकप्रियता बढ़ती है।

- महिलाएं भी इस कला का अभ्यास करती थीं, जिसे उन्नियार्चा कहा जाता था; एक महान नायिका ने इस मार्शल आर्ट का उपयोग करके कई लड़ाइयां जीती थीं।

-सिलंबम (एक प्रकार की स्टाफ फेंसिंग)

उत्पत्ति: तमिलनाडु में, एक आधुनिक और वैज्ञानिक मार्शल आर्ट।

सिलंबम की तकनीकें: पैर की तीव्र गति, शरीर के विभिन्न स्तरों पर बल, गति और सटीकता की महारत और विकास प्राप्त करने के लिए जोर, कट, चॉप, स्वीप का उपयोग। सांप के वार, बंदर के वार, बाज के वार आदि।

इसके बारे में:

-तमिलनाडु में पांड्या, चोल और चेर शासकों द्वारा सिलंबम को बढ़ावा दिया गया और सिलंबम की छड़ें, मोती, तलवारें और कवच की बिक्री का संदर्भ तमिल साहित्य ' सिलपद्दिगरम ' में देखा जा सकता है।

-यह कला मलेशिया तक भी पहुंची, जहां यह आत्मरक्षा तकनीक के अलावा एक प्रसिद्ध खेल भी है।

-नकली लड़ाई और आत्मरक्षा के लिए लंबी-छड़ी तकनीक का प्रयोग किया जाता है। वस्तुतः, भगवान मुरुगा (तमिल पौराणिक कथाओं में) और ऋषि अगस्त्य को सिलंबम के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। वैदिक युग में भी युवाओं को प्रशिक्षण एक अनुष्ठान के रूप में तथा आपातकालीन स्थिति के लिए दिया जाता था।

-थांग-ता और सरित सरक

उत्पत्ति: इस कला का निर्माण मणिपुर के मैतेई लोगों द्वारा किया गया था।

इसके बारे में:

-थांग का तात्पर्य 'तलवार' से है, जबकि ता का तात्पर्य 'भाला' से है और यह एक सशस्त्र मार्शल आर्ट है, जबकि सरित सरक एक निहत्थे कला रूप है, जिसमें हाथ से हाथ का मुकाबला किया जाता है।

-इसका अभ्यास तीन अलग-अलग तरीकों से किया जाता है: पहला, तांत्रिक प्रथाओं से जुड़ा अनुष्ठानिक स्वरूप, दूसरा, तलवार और तलवार नृत्य का मंत्रमुग्ध कर देने वाला प्रदर्शन और तीसरा, लड़ाई की वास्तविक तकनीक।

-थोडा

उत्पत्ति: हिमाचल प्रदेश

तकनीक: लकड़ी के धनुष, तीर का उपयोग किया जाता है।

इसके बारे में:

-ठोडा नाम उस लकड़ी के गोल टुकड़े से लिया गया है, जो तीर की मारक क्षमता को न्यूनतम रखने के लिए तीर के अग्र भाग में लगाया जाता है।

-यह मार्शल आर्ट, खेल और संस्कृति का मिश्रण है।

-यह हर साल बैसाखी के दौरान होता है।

-यह मार्शल आर्ट खिलाड़ी के तीरंदाजी कौशल पर निर्भर करता है और इसका इतिहास महाभारत के समय से माना जाता है, जब कुल्लू और मनाली की घाटियों में धनुष और बाण का उपयोग किया जाता था।

-गतका

उत्पत्ति: पंजाब

इसके बारे में:

-गतका पंजाब के सिखों द्वारा किया जाने वाला एक हथियार आधारित मार्शल आर्ट है।

-गतका का अर्थ है, जिसकी स्वतंत्रता अनुग्रह से संबंधित है। 

-इस कला में कृपाण, तलवार और कटार जैसे हथियारों का प्रयोग किया जाता है।

-इसे राज्य में विभिन्न अवसरों, मेलों सहित समारोहों में प्रदर्शित किया जाता है।

-लाठी

उत्पत्ति: मुख्य रूप से पंजाब और बंगाल में प्रचलित।

इसके बारे में:

-लाठी मार्शल आर्ट में इस्तेमाल किये जाने वाले सबसे पुराने हथियारों में से एक है।

-लाठी से तात्पर्य मुख्यतः बेंत से बनी एक 'छड़ी' से है, जो सामान्यतः 6 से 8 फीट लम्बी होती है तथा कभी-कभी धातु की नोक वाली होती है।

-इनबुआन कुश्ती

उत्पत्ति: मिजोरम, ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति 1750 ई. में डंटलैंड गांव में हुई थी।

इसके बारे में:

-इस कला में बहुत सख्त नियम हैं, जो घेरे से बाहर निकलने, लात मारने और घुटने मोड़ने पर रोक लगाते हैं।

-इसमें पहलवानों द्वारा कमर में पहनी जाने वाली बेल्ट को पकड़ना भी शामिल है।

-कुट्टू वरिसाई

उत्पत्ति: मुख्य रूप से दक्षिण भारत में प्रचलित तथा श्रीलंका और मलेशिया के उत्तर-पूर्वी भाग में भी लोकप्रिय।

तकनीक: इस कला में ग्रैपलिंग, स्ट्राइकिन और लॉकिंग तकनीकों का उपयोग किया जाता है।

इसके बारे में:

-इस कला का उल्लेख सर्वप्रथम पहली या दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के संगम साहित्य में मिलता है।

-कुट्टू वरिसाई का अर्थ है 'खाली हाथ से लड़ाई'।

-इसमें सांप, चील, बाघ, हाथी और बंदर जैसे पशु आधारित सेटों का भी उपयोग किया गया है।

-मुस्ती युद्ध

उत्पत्ति: वाराणसी

तकनीक: किक, घूंसे, घुटने और कोहनी के प्रहार इस मार्शल आर्ट में प्रयुक्त तकनीकें हैं।

इसके बारे में:

-यह एक निहत्थे मार्शल आर्ट है।

-1960 से यह एक लोकप्रिय कला है।

-इसमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों पहलुओं का विकास शामिल है।

-इस कला में लड़ाइयों का नाम हिंदू भगवान के नाम पर रखा गया है और उन्हें चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है। पहली विधि को जम्बुवंती के नाम से जाना जाता है , जिसमें प्रतिद्वंद्वी को पकड़कर समर्पण करने के लिए मजबूर किया जाता है। दूसरा है हनुमंती , जो तकनीकी श्रेष्ठता के लिए है। तीसरी विद्या भीमसेनी से संबंधित है, जो विशुद्ध शक्ति पर केंद्रित है और चौथी विद्या जरासन्धि कहलाती है, जो अंग और जोड़ तोड़ने पर केंद्रित है।

-परी-खंडा

उत्पत्ति: बिहार, राजपूतों द्वारा निर्मित।

इसके बारे में:

-'परी' का अर्थ ढाल है, जबकि 'खंडा' का अर्थ तलवार है। इसलिए इस कला में ढाल और तलवार दोनों का प्रयोग किया जाता है।

-इसमें तलवार और ढाल का उपयोग करके लड़ाई शामिल है।

-इसके चरण और तकनीक का प्रयोग बिहार के छऊ नृत्य में किया जाता है।

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Kishan Kumar
Kishan Kumar

Senior content writer

A seasoned journalist with over 7 years of extensive experience across both print and digital media, skilled in crafting engaging and informative multimedia content for diverse audiences. His expertise lies in transforming complex ideas into clear, compelling narratives that resonate with readers across various platforms. At Jagran Josh, Kishan works as a Senior Content Writer (Multimedia Producer) in the GK section. He can be reached at Kishan.kumar@jagrannewmedia.com
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