भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इसे “राज्यों का संघ” कहा जाता है. यहाँ की सरकार का मुख्य उद्येश्य लोगों के कल्याण में वृद्धि करना है, सरकार लोगों के लिए बिजली, पानी सड़क, अस्पताल जैसी आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराती है. इसके लिए सरकार को संसाधनों की जरूरत होती है जिसके लिए सरकार कुछ तरीके अपनाती है. इस लेख में हम इन्ही तरीकों के बारे में बात करेंगे कि आखिर सरकार किन लोगों या स्रोतों से रुपये लेकर लोगों के लिए आधारभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराती है. आइये जनते हैं कि सरकार किन तरीकों से अपने लिए रुपयों का इंतजाम करती है;
1. नयी करेंसी छापकर: अगर सरकार को अधिक मुद्रा की जरूरत होती है तो वह रिज़र्व बैंक को आदेश देती है कि इतनी मात्रा में नयी करेंसी छापो और सरकार को उधार दो. इस प्रकार सरकार के पास जरुरत के हिसाब से रुपया आ जाता है. लेकिन यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि इस प्रकार से पैसा जुटाना देश के लिए ठीक नहीं है क्योंकि देश में मुद्रा स्फीति बढ़ जाती है अर्थात चीजें महँगी हो जातीं हैं.
नयी करेंसी छापने के लिए रिज़र्व बैंक को “मिनिमम रिज़र्व सिस्टम,1957” के आधार पर केवल 200 करोड़ की संपत्ति जिसमें 115 करोड़ का सोना और 85 करोड़ की विदेशी संपत्तियां रखनी अनिवार्य होतीं हैं. RBI, 200 करोड़ की संपत्ति रखकर जरूरत के हिसाब से कितनी भी बड़ी मात्रा में करेंसी छाप सकता है.
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2. घरेलू स्रोतों से उधार मांगना: इस कदम के अंदर भी सरकार, रिज़र्व बैंक से उधार मांगती है लेकिन नई करेंसी नहीं छापी जाती है. इसमें सरकार, रिज़र्व बैंक के पास पहले से मौजूद रुपया ही उधार मांगती है. इसके अलावा प्राइवेट बैंकों, सरकारी बैंकों से भी उधार लेती है.
सरकार, बाजारों से दीर्घकालिक और अल्पकालिक पूंजी जुटाने के लिए कई प्रकार के बॉन्ड (गिल्ट ऐज बांड्स, इंफ्रास्ट्रक्चर बांड्स इत्यादि) जारी करती है. इन बांड्स को जनता, प्राइवेट और सरकारी बैंकों और अन्य सरकारी दफ्तरों द्वारा खरीदा जाता है. इस तरीके से जुटाया गया उधार आंतरिक स्रोतों से लिया गया उधार कहलाता है.
3. अंतर्राष्ट्रीय स्रोतों से उधारी: इस स्रोत से सरकार, अपने मित्र देशों (अमेरिका, जापान, कनाडा, रूस इत्यादि), अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं जैसे विश्व बैंक समूह, अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IMF), एशियाई विकास बैंक (ADB), एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश बैंक (AIIB) से ऋण लेती है. इन स्रोतों से ऋण मुख्य रूप से आधारभूत संरचना के विकास (जैसे शिक्षा अभियान, नदी विकास, स्वच्छता मिशन, बिजली, सड़क इत्यादि) के लिए ऋण लेती है.
इस प्रकार के ऋण का सबसे बड़ा घाटा यह है कि सरकार को इस प्रकार के ऋणों को चुकाने के लिए डॉलर, पौण्ड और यूरो जैसी मुद्राओं में ऋण के साथ साथ मूलधन का भुगतान करना पड़ता है. जिससे देश का विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो जाता है. यहाँ पर यह ध्यान रहे कि भारत सरकार अपनी कुल आय का 18 से 19% हिस्सा केवल ऋण भुगतान के रूप में खर्च करना पड़ता है.
मार्च 2018 के अंत में, भारत के ऊपर विदेशी ऋण 529.7 अरब अमेरिकी डॉलर था, जो मार्च 2017 की तुलना में 58.4 अरब अमेरिकी डॉलर ज्यादा है. अर्थात भारत के विदेशी ऋण में पिछले एक साल में 12.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. अगर जीडीपी के रूप में कहा जाए तो मार्च 2018 के अंत में भारत के ऊपर उसकी जीडीपी के 20.5 प्रतिशत के बराबर विदेशी ऋण है.
अंतरराष्ट्रीय फ्लोट बांड्स; भारत सरकार, अंतरराष्ट्रीय फ्लोट बांड्स भी जारी करती है, जिससे बड़ी मात्रा में सरकार के पास विदेशी मुद्रा आती है. इस प्रकार के बांड्स से सरकार को यह फायदा होता है कि सरकार इन बांड्स पर ब्याज का भुगतान भारतीय रुपयों में देती है जिससे विदेशी मुद्रा बच जाती है.
इस प्रकार सारांश के तौर पर इतना कहा जाना ठीक है कि भारत सरकार अपने लोगों के कल्याण को बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करती है.