भारत में एक कहावत प्रचलित है, जिसमें कहा जाता है कि अस्पताल, कोर्ट और पुलिस स्टेशन के चक्कर से जितना बचा जाए, उतना बेहतर है। क्योंकि, इन तीनों जगह पर ही जाना किसी भी इंसान के लिए कष्टदायक होता है। भारत दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है।
ऐसे में देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग घटनाएं भी देखने को मिलती हैं, जिनमें कोर्ट और पुलिस का हस्तक्षेप होता है। इस बीच हमारे सामने जमानत जैसा शब्द आता है, जिसके तहत किसी भी आरोपी को कुछ समय के लिए कोर्ट से राहत दी जाती है। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि आखिर जमानत कितने प्रकार की होती है, यदि नहीं जानते हैं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे।
अग्रिम जमानत
अग्रिम जमानत को हम अंग्रेजी में एंटीसिपेटरी बेल के नाम से भी जानते हैं। यह उन आरोपियों को दी जाती है, जिन पर कुछ आरोप लगे हैं और पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार करने की आशंका होती है। ऐसे में आरोपी अदालत में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है।
अंतरिम जमानत
अंतरिम जमानत उस आरोपी को दी जाती है, जिस पर किसी मामले को लेकर कोई आरोप लगा है। ऐसे में आरोपी को कोर्ट द्वारा एक निश्चित समय के लिए जमानत दी जाती है, जिसके बाद आरोपी को फिर से हिरासत में पहुंचना होता है।
साधारण जमानत
साधारण जमानत पर प्रत्येक भारतीय नागरिक का अधिकार है। ऐसे में यदि किसी व्यक्ति को किसी आरोप में हिरासत में लिया गया है, तो वह न्यायालय के समक्ष साधारण जमानत के लिए आवेदन कर सकता है। वहीं, सीआरपीसी की धारा 437 के तहत न्यायालय चाहे, तो वह आरोपी को साधारण जमानत दे सकता है।
थाने से जमानत
भारत में थाने से भी जमानत मिलने का प्रावधान है। ऐसे में थाने के पास न्यायालय के अतिरिक्त आरोपी को जमान देने का अधिकार होता है। हालांकि, यह सिर्फ कुछ मामलों में होता है, जैसेः गाली-गलोच, मारपीट व धमकी आदि। इस प्रकार थाने से केवल छोटे मामलों में ही जमानत दी जाती है। आपको यह भी बता दें कि थाने द्वारा आरोपी को 24 घंटे के भीतर न्यायालय में भी पेश करने का प्रावधान है।
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