भारत में कब और क्यों हुआ था भूदान आंदोलन, यहां जानें इतिहास

Jul 2, 2025, 17:52 IST

भारत के इतिहास में कई महत्त्वपूर्ण आंदोलन हुए हैं, जिनमें से एक भूदान आंदोलन (Bhoodan Andolan) है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि यह भारत में कब और क्यों हुआ था। क्या है इसके पीछे की वजह, जानने के लिए यह लेख पढ़ें। 

भूदान आंदोलन का इतिहास
भूदान आंदोलन का इतिहास

भारत का इतिहास उठाकर देखें, तो हमें कई महत्त्वपूर्ण आंदोलन देखने को मिलते हैं, जिनसे भारत में कई सामाजिक परिवर्तन हुए। इन आंदोलनों में से एक भूदान आंदोलन(Bhoodan Andolan) भी है, जिसे भूमि दान आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। आंदोलन की शुरुआत साल 1951 में आचार्य विनोबा भावे द्वारा की गई थी, जो कि एक स्वैच्छिक भूमि सुधार आंदोलन था। इस लेख के माध्यम से हम इसकी पूरी पृष्ठभूमि के बारे में जानेंगे। 

क्या थी आंदोलन की पृष्ठभूमि

भूदान आंदोलन महात्मा गांधी के आदर्शों से प्रेरित था। गांधीजी का मानना था कि भारत में अमीरों को अपनी संपत्ति का न्यासी यानि कि ट्रस्टी बनकर उसका उपयोग समाज कल्याण के लिए करना चाहिए।

कैसे हुई आंदोलन की शुरुआत

आंदोलन की शुरुआत 1951 में हुई थी, जब आचार्य विनोबा भावे तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव में यात्रा कर रहे थे। ऐसे में उन्होंने देखा कि भूमिहीन किसानों का एक समूह जमींदारों से अपनी संपत्ति की मांग कर रहा है। ऐसे में कुछ हरिजनों द्वारा अपनी आजीविका के लिए विनोब भावे से 80 एकड़ जमीन की मांग की गई है। हालांकि, उस समय एक जमींदार वेम्बो मुत्था रेड्डी द्वारा अपनी इच्छा से 250 एकड़ जमीन दान कर दी गई, जिससे आचार्य प्रभावित हुए और उन्होंने आंदोलन शुरू किया।

क्या था आंदोलन का उद्देश्य

किसानों को मिले जमीन- इस आंदोलन का उद्देश्य था कि भूमिहीन किसानों को कृषि के लिए जमीन मिल सके, जिनसे उनका जीवनयापन चल सके।

-सामाजिक न्यायः आंदोलन के तहत समाज में भूमि का समान वितरण हो और असमानता को कम करना उद्देश्य था। साथ ही, भूमि संबंधी किसी भी प्रकार का विवाद या हिंसा न हो, बल्कि उनका शांतीपूर्ण तरीके से समाधान हो सके।

त्याग और परोपकार की भावना को बढ़ानाः भूसंपत्ति मालिकों में त्याग और परोपकार की भावना को बढ़ावा देना भी इसका उद्देश्य था।

हजारों किलोमीटर की पैदलयात्रा

आचार्य विनोबा भावे ने आंदोलन को सफल बनाने के लिए पूरे देश में हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा की। इस दौरान उन्होंने भू-स्वामियों को समझाया कि भूमि ईश्वर की देन है, ऐसे में इस पर सभी का समान अधिकार है।

इसको देखते हुए सभी को अपनी जमीन का कम से कम छठा हिस्सा दान करना चाहिए। आगे चलकर भूदान आंदोलन ग्राम आंदोलन में बदल गया, जिसके तहत कुछ गांवों ने अपनी जमीन ग्राम सभा या ग्राम समुदाय को दान की, जिससे सामूहिक प्रबंधन और उपयोग हो सके। पहला ग्रामदान गांव ओडिशा में मंगरोठ गांव था।

40 लाख एकड़ से अधिक भूमि प्राप्त

भूदान आंदोलन के तहत करीब 40 लाख एकड़ जमीन जमीन प्राप्त हुई थी। इससे इस आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली थी। हालांकि, इसमें से पूरी भूमि का वितरण नहीं सका था। 

आंदोलन में क्या रही चुनौतियां

आंदोलन के दौरान विभिन्न चुनौतियां भी आई। उदाहरण के तौर पर देखें, तो कुछ भू-स्वामियों ने अपनी अनुपजाऊ भूमि का दान किया, जो कि कृषि के लिए उपयोगी नहीं थी। वहीं, कुछ लोगों द्वारा ऐसी भूमि का दान किया गया, जिस पर कानूनी दांव-पेंच फंसे हुए थे। कुछ मामलों में यह भी देखा गया कि भूदान की बात सिर्फ कागजों पर रह गई थी, जो कि प्रेरणा की कमी की वजह से था। 

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Kishan Kumar
Kishan Kumar

Senior content writer

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