भारत में न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट के बीच क्या अंतर होता है?

Jul 31, 2018, 16:44 IST

क्या मजिस्ट्रेट, न्यायाधीश के समान होता है, इनकी नियुक्ति कौन करता है, इनका अधिकार किन क्षेत्रों तक सिमित होता है, भारत में न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट के बीच क्या अंतर होता है इत्यादि के बारे में आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं.

What is the difference between Judge and Magistrate?
What is the difference between Judge and Magistrate?

न्यायपालिका संविधान का अंग है जो नागरिकों के हितों की रक्षा करता है. यह अंतिम प्राधिकरण है जो कानूनी मामलों और संवैधानिक व्यवस्था की व्याख्या करता है. यह नागरिकों, राज्यों और अन्य पार्टियों के बीच विवादों पर कानून लागू करने और निर्णय लेने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. न्यायालय अधिकारों की रक्षा के लिए देश में कानून को बनाए रखते हैं. न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय और अन्य अधीनस्थ अदालतों के प्रमुख होते हैं.

न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट्स के समान नहीं होते हैं, इनकी शक्तियां न्यायाधीश से अपेक्षाकृत कम होती हैं. एक मजिस्ट्रेट का अधिकार क्षेत्र आमतौर पर एक जिला या एक शहर ही होता है. आइये इस लेख के माध्यम से न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट के बीच क्या अंतर होता है के बारे में अध्ययन करते हैं.

आइये सबसे पहले अध्ययन करते हैं मजिस्ट्रेट के बारे में

मजिस्ट्रेट कम से कम एक सिविल अधिकारी होता है, जो किसी विशेष क्षेत्र, यानी जिला या शहर में कानून का प्रबंधन करता है. 'मजिस्ट्रेट' शब्द मध्य अंग्रेजी 'मैजिस्ट्रेट' से लिया गया है, जिसका अर्थ है "कानूनों के प्रशासन के प्रभारी सिविल अधिकारी." यह वह व्यक्ति है जो सिविल या क्रिमिनल मामलों को सुनता है और निर्णय देता है. ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि जिला मजिस्ट्रेट या कलेक्टर जिले का मुख्य कार्यकारी, प्रशासनिक और राजस्व अधिकारी होता है. वह जिले में कार्य कर रहीं विभिन्न सरकारी एजेंसियों के मध्य आवश्यक समन्वय की स्थापना करता है.

मजिस्ट्रेट का इतिहास

वारेनहेस्टिंग्स ने 1772 में जिला मजिस्ट्रेट पद का सृजन किया था. जिला मजिस्ट्रेट का मुख्य कार्य सामान्य प्रशासन का निरीक्षण करना, भूमि राजस्व वसूलना और जिले में कानून-व्यवस्था को बनाए रखना. वह राजस्व संगठनों का प्रमुख होता था. वह भूमि के पंजीकरण, जोते गाए खेतों के विभाजन ,विवादों के निपटारे, दिवालिया, जागीरों के प्रबंधन, कृषकों को ऋण देने और सूखा राहत के लिए भी जिम्मेदार था. जिले के अन्य सभी पदाधिकारी उसके अधीनस्थ होते थे और अपने-अपने विभागों की प्रत्येक गतिविधि की जानकारी उसे उपलब्ध कराते थे. जिला मजिस्ट्रेट के कार्य भी इनको सौंपे जाते थे. जिला मजिस्ट्रेट होने के नाते वह पुलिस और जिले के अधीनस्थ न्यायालयों का निरीक्षण भी करता था.

मजिस्ट्रेट कितने प्रकार के होते हैं?

Who is a Magistrate in India

Source: www.indiaeducation.net.com

1. न्यायिक मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate): उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद, राज्य सरकार प्रत्येक जिले में प्रथम और दूसरी श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की संख्या को सूचित कर सकती है. न्यायिक मजिस्ट्रेट मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होता है और सत्र न्यायाधीश द्वारा शासित किया जाता है. क्या आप जानते हैं कि प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट को अधिकतम 3 साल के लिए कारावास की सजा उत्तीर्ण करने या 5000 रुपये तक जुर्माना देने की अनुमति होती है या फिर दोनों. द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट को निम्नतम स्तर की अदालत के रूप में जाना जाता है और अधिकतम 1 वर्ष या 3000 जुर्माना या दोनों की सजा देने का अधिकार होता है.

2. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate): एक प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट को हर जिले में उच्च न्यायालय द्वारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त किया जाता है. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सत्र न्यायाधीश द्वारा अधीनस्थ और नियंत्रित होता है. उनके पास कारावास की सजा या जुर्माना लगाने की शक्ति सात साल से अधिक नहीं होती है.

3. मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (Metropolitan Magistrate): हम आप को बता दें कि दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों को महानगरीय क्षेत्रों के रूप में माना जाता है और ऐसे क्षेत्रों के लिए नियुक्त मजिस्ट्रेट को मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कहा जाता है. मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट सत्र न्यायाधीश को रिपोर्ट करता है और मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होता है.

4. कार्यकारी मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate): राज्य सरकार के निर्णय के अनुसार एक जिले में कार्यकारी मजिस्ट्रेट नियुक्त किया जाता है. इन कार्यकारी मजिस्ट्रेटों में से एक को जिला मजिस्ट्रेट और एक को अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया जाता है.

आइये अब न्यायाधीश के बारे में अध्ययन करते हैं

न्यायाधीश का सामान्य अर्थ है जो निर्णय लेता है. यानी न्यायाधीश एक ऐसा व्यक्ति है जो अदालत की कार्यवाही का पालन करता है, या तो अकेले, या फिर न्यायाधीशों के पैनल के साथ. कानून में, एक न्यायाधीश को न्यायिक अधिकारी के रूप में वर्णित किया गया है जो अदालत की कार्यवाही का प्रबंधन करता है और मामले के विभिन्न तथ्यों और विवरणों पर विचार करके कानूनी मामलों पर सुनवाई और निर्णय लेने के लिए चुना जाता है.

Who is a Judge

Source: www.livemint.com

उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश को हटाने की क्या प्रक्रिया है?

अधिकार क्षेत्र के आधार पर, न्यायाधीशों की शक्ति, कार्य और नियुक्ति विधि अलग-अलग होती है.क्या आप जानते हैं कि न्यायाधीश चुनाव पक्षों के बीच एक मध्यस्थ की भूमिका भी निभाता है और अभियोजन पक्ष, रक्षा वकीलों और अन्य मामलों के तर्कों द्वारा प्रस्तुत गवाहों, तथ्यों और साक्ष्य को ध्यान में रखकर निर्णय सुनाता है.

भारत के राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं और राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश और संबंधित राज्य के गवर्नर के साथ चर्चा के बाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं.

राज्य के उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद राज्यपाल द्वारा जिला न्यायाधीशों को नियुक्त की जाती है. प्रत्येक सत्र विभाग के लिए उच्च न्यायालय द्वारा सत्र न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है और कानूनी  आधार पर उनको मौत की सजा सुनाने की भी शक्ति दी गई है.

अब मजिस्ट्रेट और न्यायाधीश के बीच क्या अंतर होता है के बारे में अध्ययन करते हैं:

- एक न्यायाधीश को मध्यस्थ व्यक्ति के रूप में वर्णित किया जा सकता है, यानी वह व्यक्ति जो अदालत में किसी मामले पर फैसला देता है. इसके विपरीत, मजिस्ट्रेट एक क्षेत्रीय न्यायिक अधिकारी होता है जिसे किसी विशेष क्षेत्र या क्षेत्र में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए संबंधित राज्य की उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा निर्वाचित किया जाता है.

- एक मजिस्ट्रेट छोटे और मामूली मामलों पर फैसले देता है. दरअसल, मजिस्ट्रेट आपराधिक मामलों में प्रारंभिक फैसले देता है. इसके विपरीत, न्यायाधीश गंभीर और जटिल मामलों में फैसले सुनाता है, जिसमें कानून और व्यक्तिगत निर्णय की क्षमता का ज्ञान होना अत्यधिक आवश्यक है.

- एक न्यायाधीश के मुकाबले मजिस्ट्रेट के पास सीमित अधिकार क्षेत्र होते है.

- न्यायिक मजिस्ट्रेट और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किए जाते हैं जबकि राज्यपाल जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त करता है. इसके विपरीत, राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को नियुक्त करते हैं जबकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भारत के मुख्य न्यायाधीश और विशेष राज्य के गवर्नर के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है.

- एक न्यायाधीश के विपरीत, एक मजिस्ट्रेट में केवल सीमित कानून प्रवर्तन और प्रशासनिक शक्तियां होती हैं.

- न्यायाधीश हमेशा एक कानून की डिग्री के साथ एक अधिकारी होता है. लेकिन मजिस्ट्रेट को हर देश में एक कानून की डिग्री की आवश्यकता नहीं है. यानी मजिस्ट्रेट के पास कानूनी डिग्री हो भी सकती है और नहीं भी लेकिन न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए कानूनी डिग्री का होना अनिवार्य है, साथ ही साथ किसी अदालत में वकालत की प्रैक्टिस भी जरुरी है.

- मजिस्ट्रेट के पास जुर्माना और एक विशेष अवधि के लिए कारावास की सजा देने की शक्ति है. लेकिन न्यायाधीशों को अजीवन कारावास और यहां तक कि गंभीर अपराधों में मौत की सजा को पारित करने का भी अधिकार होता है.

तो अब आप समझ गए होंगे कि न्यायाधीश अदालत में एक निश्चित मामले पर निर्णय दे सकता है. अर्थात सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा किया गया फैसला अंतिम होता है और इसके लिए कोई अपील नहीं की जा सकती है. दूसरी तरफ मजिस्ट्रेट एक प्रबंधक की तरह होता है जो विशेष क्षेत्र के कानून और व्यवस्था की देखभाल करता है.

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Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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