गुरु पूर्णिमा बनाने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है. पुरे भारत में 9 जुलाई को यह पर्व मनाया जा रहा है. सारे भक्त इस दिन को अपने गुरु के लिए समर्पित करते है और उनकी पूजा अर्चना करते है. गुरु से आशीर्वाद लेने जाते है और भक्त अपनी सामर्थ्या अनुसार दक्षिणा देकर गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है. गुरु अपने शिष्यों को अच्छी राह पे चलने की प्रेणना देता है और जीवन का सत्य और अन्य कठिनाइयों का सामना करना सिखाता है.
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शास्त्रों के अनुसार, गुरु बिन ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है, आत्मा भी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकती है. गुरु को भगवान् से ऊपर का दर्जा दिया गया है. गुरु की वंदना इस मन्त्र से की जाती है.
गुर्रुब्रह्मï गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात् परमब्रह्मï तस्मै श्री गुरवे नम:।।
इस श्लोक का अर्थ ही है ‘गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है. गुरु ही साक्षात परब्रह्म है. ऐसे गुरु को हम प्रणाम करते हैं’.
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गुरु पूर्णिमा इसी दिन क्यों मनाते हैं?
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गुरु पूर्णिमा आषाड़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है. यह वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है. इस दिन वेद व्यास (कृष्ण द्वैपायन व्यास) महाभारत एवं श्रीमद् भागवत् शास्त्र के रचयिता का जन्मदिन होता है. इसीलिए इस दिन गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है. इन्होने चारों वेदों की रचना की थी और संस्कृत के प्रखंड विद्वान् थे. इसी कारण से उनका नाम वेद व्यास पड़ा था. आदिगुरू नाम से भी इनको संबोधित किया जाता है. इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है .
तमसो मा ज्योर्तिगमय
मृत्र्योमा अमृतं गमय
पूर्णिमा से अच्छा गुरु के लिए कोई और दिन हो ही नहीं सकता है. गुरु और पूर्णत्व दोनों एक दुसरे के पर्याय हैं. पूर्णिमा की रात को चंद्रमा सर्व्क्लाओं से परिपूर्ण हो जाता है और अपनी शीतलता को सम्पूर्ण प्रत्वी पर भिखेर्ता है उसी प्रकार से गुरु अपने शिष्यों को अपने ज्ञान के प्रकाश से भर देता है और उसके जीवन से अंधकार को दूर करता हैं.
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गुरु का अर्थ क्या हैं और वर्षा ऋतु में ही क्यों गुरु पूर्णिमा मनाई जाती हैं?
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शास्त्रों के अनुसार गु का अर्थ है अंधकार या मूल अज्ञान और रू का अर्थ है उसका निरोधक. अर्थात अंधकार को दूर कर प्रकाश की और लेजाने वाले को गुरु कहते है. गुरु पूर्णिमा को वर्षा ऋतु के आरंभ में इसलिए मनाया जाता है क्योंकि अगले चार महीने या चतुर्मास मौसम के हिसाब से सही होते है, परिव्राजक और साधू-संत एक ही स्थान पर रहकर गुरु के ज्ञान को प्राप्त करते है. भक्त गुरु चरणों में ज्ञान, गौरव, शक्ति आदि की प्राप्ति करते है.
इसलिए इस दिन अपने माता-पिता और अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेना चाहिए और गुरु के सामान माता-पिता की पूजा करनी चाहिए और गुरु दर्शन कर उनकी महिमा का आनंद लेना चाहिए.
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