भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भारत की अग्रणी मौद्रिक संस्था है। आरबीआई नए करेंसी नोट छापता है और उन्हें पूरे देश में वाणिज्यिक बैंकों के माध्यम से प्रसारित करता है। RBI देश की अर्थव्यवस्था में धन आपूर्ति को नियंत्रित करता है।
यदि देश में अधिक पैसा है, तो यह नीति दर जैसे नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर), बैंक दर और रेपो दर को बढ़ा देता है और धन की आपूर्ति को कम कर देता है।
भारत का सर्वोच्च मौद्रिक प्राधिकरण यानि RBI एक रुपये को छोड़कर सभी मूल्यवर्ग के करेंसी नोट छापता है, क्योंकि एक रुपये का नोट वित्त मंत्रालय द्वारा मुद्रित किया जाता है और वित्त सचिव द्वारा हस्ताक्षरित होता है।
हालांकि, वित्त मंत्रालय आरबीआई के माध्यम से ही अर्थव्यवस्था में एक रुपये के नोट और सिक्के प्रसारित करता है।
भारत में सिक्के कहां ढाले जाते हैं?
भारत में 4 स्थान हैं, जहां सिक्के ढाले जाते हैं;
-मुंबई
-अलीपुर (कोलकाता)
-सैफाबाद, चेरलापल्ली (हैदराबाद)
-नोएडा (यूपी)
नोट: बॉम्बे और कलकत्ता टकसाल की स्थापना 1829 में अंग्रेजों द्वारा की गई थी, जबकि हैदराबाद टकसाल की स्थापना 1903 में हैदराबाद के निजाम द्वारा की गई थी, जिसे 1950 में भारत सरकार ने अपने अधिकार में ले लिया और वर्ष 1953 से सिक्कों का निर्माण शुरू किया।
भारत सरकार के लिए.आखिरी टकसाल भारत सरकार द्वारा 1986 में उत्तर प्रदेश के नोएडा में स्थापित की गई थी, तब से यहां सिक्के ढाले जाते हैं। यह बताना जरूरी है कि ऊपर बताए गए तीनों टकसाल अपने ढाले हुए सिक्कों पर एक निशान बनाते हैं, जिससे उनके ढालने की जगह की पहचान करने में मदद मिलती है।
निशान से पता चलती है सिक्का ढालने की जगह
हर सिक्के पर एक निशान बना होता है, जो उसके मूल स्थान को बताता है। अगर सिक्के पर तारीख के नीचे 'स्टार' दिया गया है तो इस निशान का मतलब है कि सिक्का हैदराबाद में ढाला गया है ।
नोएडा में ढाले गए सिक्कों में सिक्कों के पिछले भाग पर 'ठोस बिंदु' होता है। मुंबई में ढाले गए सिक्कों पर 'हीरे के आकार' का निशान होता है, जबकि कलकत्ता टकसाल के सिक्कों पर कोई निशान नहीं होता है।
अब लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल यह आता है कि आखिर वित्त मंत्रालय साल दर साल सिक्कों का आकार क्यों छोटा कर रहा है और सिक्कों में इस्तेमाल होने वाली धातु भी क्यों बदल रही है।
जब भारत सरकार के पास अधिक सिक्के ढालने के लिए अधिक मशीनरी नहीं थी, तब भारत के सिक्के कई विदेशी टकसालों में निकाले जाते थे और भारत में आयात किये जाते थे। भारत ने 1857-58, 1943, 1985, 1997-2002 के दौरान सिक्कों का आयात किया।
इस समय तक सिक्के 'क्यूप्रो निकेल' के बने होते थे, लेकिन 2002 के बाद जब कॉपर निकेल की कीमतें बढ़ीं, तो सिक्के बनाने की लागत भी बढ़ गई, जिसके कारण सरकार को सिक्का बनाने के लिए "फेरिटिक स्टेनलेस स्टील" का उपयोग करना पड़ा और वर्तमान में सिक्के इसी स्टील से बनाए जा रहे हैं।
"फ़ेरिटिक स्टेनलेस स्टील" में 17% क्रोमियम और 83% लोहा होता है।
सिक्के का आकार छोटा क्यों किया गया
दरअसल, किसी भी सिक्के के दो मूल्य होते हैं; एक को सिक्के का "अंकित मूल्य" कहा जाता है और दूसरे मूल्य को इसका "धातु मूल्य" कहा जाता है।
सिक्के का अंकित मूल्य: इस मूल्य का अर्थ है ''सिक्के पर लिखी रकम''। अगर किसी सिक्के पर 1 रुपया लिखा है, तो उसे उसका अंकित मूल्य कहा जाएगा।
सिक्के का धातु मूल्य: इसका मतलब सिक्के के निर्माण में प्रयुक्त धातु का मौद्रिक मूल्य है। यदि किसी सिक्के को पिघलाकर उसकी धातु को बाजार में 5 रुपये में बेचा जाए, तो 5 रुपये सिक्के का धातु मूल्य कहा जाएगा।
उदाहरण से समझें
मान लिजिए कि किसी सिक्के का अंकित मूल्य एक रुपये है, लेकिन उसका धातु मूल्य दो रूपये है। ऐसे में कोई भी व्यक्ति धातु को गलाकर उसे दो रुपये में बाजार में बेच सकता है। वहीं, यदि ऐसा बड़ा पैमाने पर हुआ, तो बाजार में सिक्कों की कमी होगी, जिससे सरकार पर बोझ पड़ेगा।
अब मान लिजिए कि किसी सिक्के का अंंकित मूल्य दो रुपये है, लेकिन उसका धातु मूल्य एक रुपये है। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति सिक्के गलाकर उसे बाजार में बेचता है, तो उसे एक रुपये का नुकसान होगा। ऐसे में वह सिक्के को नहीं गलाएगा। अब आप आसानी से समझ सकते हैं कि सरकार सिक्के क्यों छोटे कर रही है।”
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