भारत को यूँ तो विश्व में एक ऐसे स्थान के रूप में देखा जाता है जहाँ अद्धितीय करतब करने वाले अनगिनत पाए जाते है। विशेष करतब कर दिखाने वाले विशेष लोगो की जननी यह धरती, अति विशिष्ट और असंभव दिखने वाले कार्यों को कर दिखाने वाले साधारण लोगों के लिए भी उतनी ही प्रसिद्ध है। इन्हीं असाधारण कार्यो को संभव कर दिखाने वाले साधारण लोगो में एक नाम जादव मोलाई पियांग का भी आता है |
भारत मे पूर्वोत्तर के मुख्य द्धार कहे जाने वाले असम के जोरहट मे ब्रह्रपुत्र के किनारे पर बसे गांव मे से एक मे जन्मे जादव ने प्रकृति की गोद मे रहकर प्रकृति प्रेम का अदभुत पाठ सीखा जिसने उन्हे पशु-पक्षी तक के दर्द से रूबरू करके मानवतावादी बना दिया। जादव का बचपन जंगलो के निकट व्यतीत होने से उन्हे पशु-पक्षी एवं जीव-जन्तुओ से अदभुत प्रेम था। वर्तमान परिप्रेक्ष्य के आर्थिक युग मे वनों की घटती अवस्था ने वातावरण को अन्य जीवों के लिए प्रतिकूल कर दिया है, इसका अनुभव जादव ने अपनी किशोरावस्था मे ही कर लिया था। अपने आस-पास मे पक्षियों की घटती संख्या को देखकर उन्होने वन विभाग के अधिकारियों से थोड़ी मदद की अपील की और कुछ वृक्ष उगा देने की आग्रह की पर वहां से उन्हे निराशा ही प्राप्त हुई। यहाँ तक कि वन विभाग के लोगों ने कहा कि इस बंजर भूमि पर पेड़ नही उगाए जा सकते, हाँ तुम चाहो तो बांस लगाने का प्रयास कर सकते हो।
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जादव की बाल हठ ने इस बात को पूरी शिद्दत से पकड़ लिया और कुछ समय पश्चात् ब्रह्रपुत्र के एक बंजर द्वीप पर बहुत सारे सांपो को मरा देख कर जादव दृढ़ निश्चय के साथ बिना किसी मदद के ‘तबे एकला चलो रे’ की तर्ज पर आगे एक अविश्वसनीय कार्य के लिए आगे बढे जो तकरीबन असंभव ही था। जादव ने अपने इस निश्चय की शुरुआत ब्रह्रपुत्र के एक-एक वीरान टापू पर बीस बांस के पौधे लगाकर की। लगातार तीस वर्षो तक जादव प्रतिदिन सुबह एक पौधा लगाते रहे और जब उन्हे लगा कि इनको पानी देना भी संभव नही होगा तो इसके लिए एक मिट्टी के घड़े मे पानी वृक्षों के पास टांग दिया करते ताकि बारीक छिद्रो से थोड़ा-थोड़ा पानी पौधो को प्राप्त होता रहे। 1980 मे वन विभाग की वृक्षारोपण परियोजना ने काम प्रारंभ किया जो पांच वर्षों मे पूर्ण हो गई और सभी लोग विदा हो गए लेकिन एक इंसान अपने दृढ़ निश्चिय के साथ अब भी वहीँ लगा रहा और आज 1350 एकड़ से भी ज्यादा का जंगल अर्थात लगभग 550 हेक्टेयर वनक्षेत्र विकसित करने वाले व्यक्ति जादव मोलाई पियोग अपने आप मे एक जीवित किंवदंती की तरह है। कमाल की बात यह है कि मुलाई जंगल न्यूयॉर्क के नेशनल पार्क से भी बड़ा है|
इनका प्रारंभिक समय बांस के पौधो के साथ प्रारंभ हुआ और तकरीबन 300 एकड़ सिर्फ बांस का ही जंगल विकसित है। आज जादव के द्धारा विकसित यह वन क्षेत्र मोलाई फारेस्ट के नाम से प्रचलित है और बहुप्रकार के जीवों और पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है। जादव के चट्टानी मानसिकता को भारत सरकार द्धारा पदम श्री से सम्मानित किया गया तथा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय एव भारतीय वन प्रबंधन विभाग ने भी इनका सम्मान किया है।
आज जादव अपने ही उगाए जंगल मे अपने परिवार के साथ एक कुटिया मे रहते है और गायों का दूध बेचकर जीवन-यापन करते है। प्राचीन काल मे ऋषि महर्षियो की कथा से भरपूर इस भारत भूमि ने इस युग मे एक ऐसे व्यक्ति को जन्म दिया है जिसका योगदान पूरे विश्व के लिए एक मिशाल है क्योकि इस अर्थयुग मे भी मोलाई जंगल से उत्पादित ऑक्सीजन की मात्रा सम्पूर्ण विश्व के लिए लाभदायक है |
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