औरंगज़ेब की कट्टर धार्मिक नीतियों के मुगल साम्राज्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़े. औरंगजेब के शासन काल मे साम्राज्य के विरुद्ध अनेक विद्रोह हुये.
सतनामियों का विद्रोह
सतनामी, जो वास्तव मे हिंदू थे, ने 1672 मे औरंगज़ेब के खिलाफ विद्रोह कर दिया जिसका नेतृत्व बीरभान कर रहा था। सतनामी दिल्ली के आस-पास के इलाको में रहते थे. सतनामी औरंगतज़ेब के खिलाफ वीरता से लड़े लेकिन जल्द ही मुगलो की शाही सेना ने उन्हे परास्त कर दिया और मौत के घाट उतार दिया.
जाटों का विद्रोह
जाटो ने भी अपने स्थानीय ज़मीदार गोकाला के नेतृत्व मे औरंगज़ेब के खिलाफ विद्रोह किया था. उन्हें पूरी तरह से कभी नही दबाया जा सका. जाट लगातार मुगल शासन के विरुद्ध लगातार संघर्ष करते रहे तथा औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद भरतपुर में अपना एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करने मे सफल रहे.
मराठो का विद्रोह
मराठा, दक्षिण की एक मेहनतकश जाति थी. बीजापुर और गौलकुंडा के शासन मे उनका बहुत महत्व था. बीजापुर के मुस्लिम शासक इब्राहिम आदिल शाह के शासनकाल में मराठे प्रमुख पदों पर तैनात थे. शिवाजी के नेतृत्व में वह दक्षिण की सबसे महत्वपूर्ण शक्ति बन गये थे. शिवाजी ने मुगलों पर बार-बार हमले किये और आखिरकाल दक्षिण में अपना प्रभाव क्षैत्र स्थापित करने में सफल हो गये.
सिखों का विद्रोह
सिखों ने भी अपनी एक सेना बनायी और अपने दसवें व अंतिम गुरू, गुरू गोविंद सिंह के नेतृत्व मे मुगल साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर दिया.
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