करोड़ी व्यवस्था

इतिहासकारों द्वारा राजा टोडरमल भारत में पहले सांख्यिकीविद के रूप में चिन्हित किये जाते हैं.

Aug 27, 2014, 10:08 IST

इतिहासकारों द्वारा राजा टोडरमल भारत में पहले सांख्यिकीविद के रूप में चिन्हित किये जाते हैं. राजा टोडरमल मुग़ल सम्राट अकबर के दरबार में वित्त मंत्री के पद पर विराजमान थे. वह मुग़ल सम्राट अकबर के शासन प्रणाली के अन्तर्गत राजस्व प्रशासन में भूमि सुधार, भूमि मापन और दहशाला प्रणाली, करोड़ी प्रणाली की स्थापना के लिए जाने जाते थे. 

राजस्व प्रशासन के दृष्टिकोण से मुगल साम्राज्य सूबा और प्रान्त में विभाजित थे. जो पुनः सरकार या जिला में विभाजित थे. इसके अलावा सरकार परगना और उप-जिला में विभाजित था. परगना या उप-जिला के अंतर्गत अधिक संख्या में गांव सम्मिलित थे. अकबर की राजस्व व्यवस्थ पूरी तरह से शेरशाह शूरी की राजस्व प्रशासन, पर निर्भर थी. शेरशाह ने अपने राजस्व व्यवस्था के अंतर्गत प्रति बीघा उत्पादन को भूमिकर के लिए निर्धारित किया था. इसे उसने राइ कहा. अकबर ने अपने राजस्व व्यवस्था के अंतर्गत महत्वपूर्ण संसोधन किया और भूमि को उनके उपज के आधार पर चार भागों में विभाजित कर दिया. जिस भूमि में प्रति वर्ष उत्पादन होता था उसे पोलज और जिस भूमि में एक वर्ष के अंतर पर खेती होती थी उसे परती भूमि कहा जाता था.

शेरशाह की भूमि कर व्यवस्था तीन प्रकार के उत्पादनों पर निर्भर थी. अर्थात अधिक उत्पदान वाली भूमि. मध्य उत्पादन वाली भूमि और सबसे कम उत्पदान वाली भूमि. इन्हें क्रमश उत्तम,माध्यम, और निम्न श्रेणी की भूमि कहा गया.

शेरशाह ने अपनी उत्पादन व्यवस्था के अंतर्गत भूमि कर को तीन भागों में विभाजित किया था. अर्थात उच्च उत्पादन पर लगने वाला कर माध्यम उत्पादन पर लगने वाला कर और निम्न उत्पादन पर लगने वाला कर. इन पैदावार की राशि का एक तिहाई भूमि राजस्व के रूप में विनियोजित किया गया था. अकबर ने शेरशाह की राय प्रणाली में कोई परिवर्तन नहीं किया और सामना तरीके से उसे अपने साम्राज्य में लागू कर दिया. 1566 ईस्वी तक अकबर नें शेरशाह के भूमि कर प्रणाली में कोई भी परिवर्तन नहीं किया लेकीन अपने शासन के 10 वर्ष पूरे हो जाने के बाद उसने वार्षिक मूल्यांकन की प्रणाली को अपनाया.

करोड़ी व्यवस्था

वर्ष 1573 में, वार्षिक मूल्यांकन की प्रणाली को बंद कर दिया गया था और उसके स्थान पर करोड़ी व्यवस्था को लागू किया गया. इस प्रणाली के अंतर्गत पूरे उत्तर भारत में सभी स्थानों पर कर को एकत्रित करने के लिए करोड़ी की नियुक्ति की गयी जोकि भूमि कर के रूप में एक करोड़ दाम को एकत्रित करने वाले थे. करोड़ी व्यवस्था के अंतर्गत पूरे साम्राज्य में हो रहे वास्तविक उप्तादन, फसलो की वास्तविक कीमत और उनके मूल्य  का पता चल जाने के बाद समस्त जागीर व्यवस्था को खालिसा भूमि में परिवर्तित कर दिया गया.

 करोड़ी व्यवस्था के अंतर्गत किये जा रहे  प्रयोग के तहत सभी प्रांतों में जमीन की माप किया गया. जमीन को मापने के लिए रस्सियों के इस्तेमाल के स्थान पर बांस के छड जोकि लोहे के छल्लों से जुड़े हुए थे और इन्हें तनाब कहा जाता था, का इस्तेमाल किया गया. उत्पादकता और विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित कीमतों के आधार पर संग्रह की सुविधा के लिए इन भूमियों को दस्तूर या हलकों में विभाजित किया गया. हर दस्तूर या सर्कल में प्रत्येक फसल के लिए नकदी में मूल्यांकन की दरें घोषित कर दी गईं. करोड़ी  प्रणाली के अनुसार सभी परगना या उप जिलों और राज्य के राजकोषीय यूनियनों में उनके माप के अनुसार 1 करोड़ टंका लायक राजस्व के उत्पादन का अनुमान लगाया गया, और उन्हें करोड़ी कहा गया. ये करोड़ी आमिल या अमलगुज़ार कहे गए. जिन स्थानों पर एक करोड़ दाम का कर वसूला जाता था वहां पर इन आमिलों या अमलगुज़ारों को नियुक्त किया गया. इस तरह से मुग़ल साम्राज्य एक सभी भूमि यथा पहाड़ी, रागिस्तानी, आदि करोड़ी व्यवस्था के अंतर्गत सम्मिलित कर लिए गए. उल्लेखनीय है कि पहली करोड़ी व्यवस्था फतेहपुर से शुरू की गयी थी जबकि  पहला करोड़ी आदमपुर को नियुक्त किया गया था.

करोड़ी की सहायता के लिए एक कोषाध्यक्ष, एक सर्वेक्षक और अन्य गांव की जमीन को मापने के लिए और खेती के तहत निर्धारित क्षेत्र का आकलन करने के लिए नियुक्त किये गए. करोड़ी  प्रणाली के तहत, लोहे के छल्ले से जुड़े हुए बांस से मिलकर बने मापक जिसे जरीब कहा जाता था का इस्तेमाल किया गया. इस व्यवस्था को लाहोर से इलाहाबाद तक पूरी तरह से संगठित प्रान्तों में लागू किया गया. इसके अलावा, करोड़ी अधिकारी वास्तविक उत्पादन के संबंध में, खेती, स्थानीय कीमतों और राज्य के साथ तथ्यों और आंकड़ों के सत्यापन के सन्दर्भ में कानूनगो द्वारा दी गयी जानकारी पर ही पूरी तरह से निर्भर थे.

 करोडी आधिकारिक तौर पर प्रांत के दीवान द्वारा नियुक्त किए जाते थे. उनसे यह अपेक्षा की जाती थी की वे किसानों का ख्याल रखें और उन्हें गंभीरता से लें. राज्य के अंतर्गत ऐसी वयवस्था थी की वास्तविक उत्पादन और खातों के लेखा परीक्षा का मूल्यांकन और जानकारी करोड़ी के सहायको और गांवों में नियुक्त पटवारियों के कागजातों से हो जाती थी.  जैसा की अबुल फज़ल से हमें यह जानकारी मिलती है की ये करोडी, कर संग्रह के वास्तविक मूल्याकन और संग्रहकर्ता के इन-चार्ज होते थे. ये न केवल कर का करों का मूल्यांकन ही करते थे बल्कि उनका संग्रह भी करते थे.

इस प्रणाली में अकबर के पुत्र जहाँगीर, शाहजहाँ और उसके अन्य उत्तरधिकारियों के अधीन महत्वपूर्ण परिवर्तन उजागर हुए. उन शासकों के अधीन करोड़ी के अधिकारों को कम कर दिया गया. कर का मुल्यंकन करने का पूरा जिम्मा अमीन को सौप दिया गया और कर संग्रह करने का कार्य अब करोड़ी के हिस्से में रहने दिया गया. इस तरह से करोड़ी के अधिकारों में कटौती की गयी. करोड़ी व्यवस्था मुग़ल राजस्व प्रशासन के अंतर्गत एक एक महत्वपूर्ण  एवं कारगर उपाय था. साथ ही यह परिणाम उन्मुख भी था जिसे अकबर द्वारा शुरू किया गया था. लेकिन दुर्भाग्य से यह प्रणाली काफी कारगर नहीं हुई और बड़ी मात्रा में कीमती भूमि के बड़े हिस्से को बर्बादी का सामना करना पड़ा. साथ ही यह साम्राज्य के अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सकी और उसे विफलता का सामना करना पड़ा. इतिहासकारों के एक वर्ग द्वारा करोड़ी व्यवस्था पर यह इलज़ाम लगाया जाता हैं की जितने भी करोड़ी थे उनमे ईमानदारी की न केवल कमी थी बल्कि वे किसानो को परेशान किया करते थे. साथ ही अनावश्यक बोझ और दबाव के कारण किसानो को अपने बीबी और बच्चों को भी बेंचना पड़ा.

करोड़ी  प्रणाली की कमियां  

राजा इन करोडियों पर बेहतर तरीके से निगरानी नहीं रख सका. साथ ही इनके लिए बनाये गए कानूनों का व्यापक तौर पर क्रियान्वयन नहीं हो सका और निर्धारित नियमों का कड़ाई से पालन भी नहीं किया गया. करोडियों ने  सम्राट की ओर से निगरानी की कमी का अनुचित फायदा उठाया. परिणामस्वरुप करोडियों के हाथों इतने सारे लोगों को यातना और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा कि अनेक किसानो को उनके बहुमूल्य जीवन से न केवल हाथ धोना पड़ा बल्कि उनकी पूरी क्रियाशीलता समाप्त हो गयी.

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