दक्कन में अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के बाद, शिवाजी नें मुगल प्रदेशों की ओर ध्यान दिया. उन्होंने औरंगजेब के अधि क्षेत्रों पर छापा मारना शुरू कर दिया. उस समय, दक्कन का मुगल वायसराय शाइस्ता खान था.
शाइस्ता खान नें पूना के किले पर कब्जा कर लिया और शिवाजी को जंगल में भागने पर मजबूर कर दिया. शिवाजी नें पुनः अभियान किया और शाइस्ता खान के महल पर छापा मारा तथा उसके सैनिकों पर आक्रमण किया. औरंगजेब नें शिवाजी को नियंत्रित करने के लिए अम्बर के राजा जयसिंह को भेजा. अम्बर के राजा जयसिंह ने एक शांति संधि के लिए शिवाजी को मना लिया. इस सन्धि के परिणास्वरूप मराठों नें मुगलों को 23 किलों को देने का वादा किया और शिवाजी को औरंगजेब के दरबार में प्रस्तुत करने के लिए कहा.
हालांकि उसने(शिवाजी) औरंगजेब के दरबार में पर्याप्त सम्मान का प्रदर्शन नहीं किया था. शिवाजी नें औरंगजेब के दरबार में विरोध का प्रदर्शन किया जिसके परिणामस्वरूप उसे कैद में डाल दिया गया. हालांकि, शिवाजी ने भेष बदलकर जेल से भागने में सफलता प्राप्त की.
शिवाजी नें पुनः (अपने पुराने तरीकों) गुरिल्ला युद्ध पद्धति का अनुसरण किया और मुगल प्रदेशों को लूटना शुरू कर दिया. उसने 1671 ईस्वी में सूरत पर छापा मारा और 1674 ईस्वी में मुग़ल सेनापति दलेर खान को पराजित किया. सिंहासन पर उनकी ताजपोशी रायगढ़ में बड़े धूमधाम से हुई जिसमें उन्होंने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की. शिवाजी ने जहाँ भी संभव था चौथ लगाने में सफलता प्राप्त की. रहा. वास्तव में, शिवाजी नें मराठों को एक सेना के रूप में परवर्तित कर दिया जोकि कालांतर में एक प्रमुख भारतीय शक्ति के रूप में परिवर्तित हो गयी.
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