धारा मस्टर्ड हाइब्रिड (DMH -11) का मुद्दा हाल में एक महत्व मुद्दों के रूप में उभरा है। इस मामले में पर्यावरण और पारिस्थितिकी के बारे में कुछ चिंताएं जताई गई हैं जिन्हें IAS Mains परीक्षा 2017 में पूछा जा सकता है। इसलिए IAS उम्मीदवार को IAS की तैयारी के दौरान इस विषय का अध्ययन करना भूलना नहीं चाहिए।
11 मई 2017 को जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी), आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) बीज के सर्वोच्च प्राधिकरण के रुप मे GM सरसों को व्यावसायिक उद्देश्य तथा किसानों को खेतों में उपजाने के लिए मंजूरी दे दी है। लेकिन पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से अभी तक अंतिम मंजूरी नहीं मिली है। अगर GM सरसों को पर्यावरण मंत्रालय से अनुमोदन प्राप्त करने में सफलता मिलती है तो यह भारतीय कृषि-क्षेत्रों में व्यावसायिक खेती प्रयोजन के लिए अनुमोदन पाने वाली पहली ट्रांसजेनिक खाद्य फसल होगी और भारत में अन्य कई आनुवांशिक रूप से संशोधित खाद्य फसलों के लिए एक अवसर की शुरुआत भी कही जा सकती है।
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जीईएसी द्वारा व्यावसायिक उद्देश्य के लिए ट्रांसजेनिक खाद्य फसल को मंजूरी देने का हालिया निर्णय पहली बार नहीं है। इससे पहले बीटी-बैंगन की विज्ञप्ति को 2010 में जीईएसी ने मंजूरी दे दी थी लेकिन उस समय के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने अन्य बातों के अलावा सुरक्षा परीक्षणों की कमी की जानकारी को ध्यान में रखते हुए मंजुरी देने से इनकार कर दिया था।
धारा मस्टर्ड हाइब्रिड (DMH -11) क्या है?
- धारा मस्टर्ड हाइब्रिड (DMH -11) एक ट्रान्सजेनिक सरसों है जिसका विकास दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व उप-चांसलर दीपक पेंटल के नेतृत्व में दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलियेशन ऑफ क्रोप प्लांट के वैज्ञानिकों द्वारा सरकार के वित्त-पोषित परियोजना के अंतर्गत बनाई गई है।
- संक्षेप में DMH-11 एक मृदा-जीवाणु से जीन की एक प्रणाली का उपयोग करता है जो सरसों को एक स्व-परागणकारी संयंत्र बना देता है जो कि आम तौर पर मौजूदा विधियों की तुलना में संकर के अनुकूल होता है।
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जीईएसी की स्वीकृति के खिलाफ वक्तव्य
- कोलिशन आफ GM-फ्री इंडिया के कार्यकर्ताओं के आधार पर, जो कि ट्रांसजेनिक सरसों के हाइब्रिड DMH-11 की मंजूरी का विरोध कर रहे हैं, इसकी उपज मौजूदा किस्मों से बेहतर नहीं है।
- GM सरसों को मंजूरी देने का अर्थ यह है कि सीमांत किसानों को हर मौसम में बीज खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा और इससे उनकी फसल की विविधता और लाभप्रदता प्रभावित होगी।
- GM-सरसों के विरोधियों के एक समूह ने जीईएसी पर फसलों के डेवलपर्स द्वारा झूठे साक्ष्यों का प्रस्तुत किये जाने पर फिक्सिंग का आरोप लगाया है और इसके अलावा क्षेत्रीय परीक्षणों के लिए निर्धारित जैव-सुरक्षा मानदंडों के उल्लंघन और नियामक प्रणाली में ऐसे आवेदकों को ब्लैकलिस्ट करने के बजाय़ अलावा जानबूझकर अनुमति के लिए निंदा किया है।
- नागरिक समाज के समूह जीईएसी की GM-मस्टर्ड को मंजूरी का विरोध कई आधार पर कर रहे हैं जिसमें पुरुष बाँझपन एंव जड़ी-बूटी सहिष्णुता और अपर्याप्त परीक्षणों के साथ गंभीर चिंताएं भी शामिल हैं।
- हर्बीसाइड एक रसायन है जिसका उपयोग मादाओं को मारने के लिए किया जाता है जिससे पौधों पर जहरीले रसायनों की मात्रा बढ़ जाती है और बदले में मानव एंव पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
- भारत में उत्पादित कुल शहद का लगभग 50-60% सरसों की फसल के माध्यम से होता है और शहद के उत्पादकों ने मधु मक्खियों को नुकसान पहुंचाए जाने वाले प्रौद्योगिकी की वजह से GM फसल का विरोध किया है।
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विश्लेषण
पर्यावरणविदों और खाद्य विशेषज्ञों ने आनुवांशिक रूप से संशोधित सरसों, DMH-11 के व्यवसायिक उपयोग को GEAC द्वारा स्वीकृति देने के फैसले को एक "साइंटिफिक शैम" कहा है। विरोधियों ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलियेशन ऑफ फसल प्लांट्स द्वारा शोध का आयोजन करते समय अपनाये गये पारदर्शीता और अपर्याप्त सुरक्षा मूल्यांकन के बारे में कुछ वैध प्रश्न उठाये हैं। दिल्ली स्थित संबंधित मंत्रालय के वेबसाइट पर रिपोर्ट का केवल सारांश उपलब्ध है लेकिन पूरी रिपोर्ट सभी के लिए उपलब्ध होना चाहिए। ऐसी परिस्थिति में जो लोग दिल्ली के अलावा अन्य जगहों पर रहते हैं उनके लिए पूरी रिपोर्ट को प्राप्त करना मुश्किल होगा। संवैधानिक अस्थायी के बारे में विरोधियों द्वारा प्रस्तुत वैध प्रश्नों में से एक यह है कि कृषि राज्य सूची के अधिकार क्षेत्र में आती है लेकिन इस मुद्दे में प्रमुख निर्णय केंद्र सरकार कई राज्य सरकारों के विरोध के बावजुद अकेले ले रही है, आखिर क्यों?
विरोधियों ने हर्बीसाईड-टोलरेंट फसल की किस्मों को शुरू करने के कई सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर भी प्रकाश डाला है। भारत में असंगठित क्षेत्र मे विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मैनुअल विडिंग में शामिल है और इस किस्म की फसल ग्रामीण महिलाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। भारत में GM फसलों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे GM मुक्त भारत के कार्यकर्ताओं के एक समूह ने GM सरसों के डेवलपर्स पर DMH -11 को जानबूझकर हर्बिसाइड प्रतिरोधी किस्म बताये जाने का आरोप लगाया है जो कि हाल ही में निरंतर दबाव और विपक्ष के बाद ही मालूम हो पाया है।
निष्कर्ष
खाद्य कार्यकर्ताओं और किसानों के विरोध और असहमति की एक श्रृंखला ने GM सरसों के मुद्दे को एक गहरी चिंता का विषय माना है और सरकार को इस मामले पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। DMH-11 को अपनाने से सरसों के उत्पादन में 25% की वृद्धि का दावा काफी हद तक विश्वसनीय नहीं लगता है और शोधकर्ताओं को फसल की उत्पादकता में सुधार लाने के पारंपरिक तरीकों का भी पता लगाना चाहिए। जब पारदर्शिता की बात आती है तो सरकार को उन विरोधियों के सुझावों का भी स्वागत करना चाहिए जो GM सरसों के दुष-प्रभावों का पता लगाने में मदद कर सकें।