आईएएस की तैयारी करते वक़्त दैनिक घटनाओं को सामाजिक आर्थिक परिपेक्ष्य में देखना बहुत जरूरी होता है. विशिष्ट पहचान संख्या जो आधार के नाम से भी जानी जाती है, भारत के नागरिको को भारत सरकार की ओर से मुहय्या कराई जाती है. अद्धर नंबर भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के द्वारा , आधार अधिनियम 2016 के तहत जारी किया जाता है. यह एक पहचान नंबर है जो दस्तावेजो की पहचान के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इसमें किसी भी नागरिक के जीवमितीय तथा जनांकिकीय डाटा का अभिलिखित किया जाता है.
आईएएस मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न.
प्रश्न 1. आधार योजना को अनिवार्य बनाना क्या नागरिक की निजता का उल्लंघन है ? इस मुद्दे का संविधान के सन्दर्भ में आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये.
प्रश्न 2. 12 अंको वाली विशेष पहचान संख्या नागरिक सशक्तिकरण के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है! चर्चा कीजिये.
आधार, अन्य पहचान से सम्बंधित दस्तावेजों जैसे पासपोर्ट, पैन कार्ड, वोटर आई डी आदि को प्रतिस्थापित करने के लिए नहीं है. परन्तु इसे केवल एकमात्र पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा. इसका बैंक, वित्तीय संस्थान , तथा दूरसंचार कंपनियों के द्वारा अपने ग्राहक को जानो के लिए सत्यापन के लिए भी इस्तेमाल किया जायेगा.
मार्च 27, सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि सरकार को आधार पहचान पत्र को बैंक खाते, कर भरने में, तथा नए मोबाइल नंबर के अलावा अन्य सेवाओ में इस्तेमाल करने से नहीं रोका जा सकता. परन्तु सर्वोच्च न्यायलय ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार आधार को कल्याण योजनाओं का फायदा उठाने हेतु अनिवार्य नहीं कर सकती है.
आधार व्यक्तिगत निजता के लिए एक धमकी
सिविल समाज के अनुसार, आधार की वजेह से किसी भी नागरिक की निजता को सुरक्षा संस्थाओं के द्वारा अतिक्रमित किया जा सकता है.आधार जो पहले ऐच्छक पहचान पत्र से ले के अनिवार्य पहचान पत्र बनाने की ओर अग्रसर है. नागरिको का एक नुकसानदेह विकास है.
जैसा की आधार को अनिवार्य करने की बात हो रही है लेकिन आधार विधेयक में किसी एजेंसी के आधार का गलत इस्तेमाल करने पे पकडे जाने हेतु कोई प्रावधान नहीं है.आधार के कानून बनने से नागरिको के निजता के लिए कई खतरे पैदा हो गए है क्योकि वह आधार से एक डाटाबेस का हिस्सा बन जाएगी.
सर्वोच्च न्यायालय आधार से जुड़े अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि आधार को तब तक अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता जब तक यह मुद्दा सम्पूर्णता तथा सर्वसम्मति के साथ सुलझ न जाता.
तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि आधार को पीडीएस, केरोसिन, तथा एलपीजी के वितरण के अलावा और कहीं अनिवार्य नहीं किया जायेगा. सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी माना कि निजता के साथ समझौता आजादी के अधिकार का उल्लंघन है.
क्या निजता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार बनाया जा सकता है ?
महान्यायवादी मुकुल रोहतगी ने, आधार की वैधता को सर्वोच्च न्यायालय में उचित ठहराते हुए कहा कि इस मुद्दे के लिए नौ न्यायाधीशों की खंडपीठ की जरूरत होगी. क्योंकि 1954 में भी आठ न्यायाधीशों की खंड पीठ ने एक फैसला सुनाया था जिसे संविधानिक सिद्धांत नहीं माना गया था. इसीलिए तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ का इस निजता को एक मूलभूत अधिकार बनाने की बात कहने में संवैधानिक वैधता नहीं है.
मुकुल रोहतगी ने यह भी कहा कि 1963 में छः सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधींशों ने यह फैसला सुनाया था कि निजता एक संविधानिक अधिकार नहीं है.
संविधान तैयार करते समय डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि निजता को संविधान में नहीं डाला जा सकता. यह आपराधिक प्रक्रिया संहिता में पहले से ही दिया हुआ है.
उपसंहार
कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के एस पुत्तास्वामी ने आधार योजना के खिलाफ अपनी याचिका में कहा कि पूरी आधार योजना को ख़त्म कर देना चाहिए क्योकि ये न तो क़ानून पर आधारित है. न की संवैधानिक प्रावधानों में. इसके बावजूद इसको बहुत सी सरकार की कल्याणकारी योजना के लिए अनिवार्य किया जा रहा है.
परन्तु अब आधार योजना के लिए कानून भी बन चुका है तथा इसके लिए संवैधानिक प्रावधान भी हैं. फिर अब भी इस मुद्दे को ले के अभी निष्पक्ष रूप से चर्चा की जरूरत है. और इस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय में लम्बी परिचर्चा के साथ सुलझाना ही एक मात्र कारगर तरीका लगता है.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation