UP Board कक्षा 10 विज्ञान के 18th जीवन की प्रक्रियाएँ (activities of life or processes) के 12th पार्ट का स्टडी नोट्स यहाँ उपलब्ध है| हम इस चैप्टर नोट्स में जिन टॉपिक्स को कवर कर रहें हैं उसे काफी सरल तरीके से समझाने की कोशिश की गई है और जहाँ भी उदाहरण की आवश्यकता है वहाँ उदहारण के साथ टॉपिक को परिभाषित किया गया है| इस लेख में हम जिन टॉपिक को कवर कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं:
1. मुलदाब एवं इसका महत्त्व
2. मूलदाब का प्रयोग द्वारा प्रदर्शनी
3. बिन्दु स्रावण
4. विसरण तथा परासरण में अन्तर
5. वाष्पोत्सर्जन
मुलदाब एवं इसका महत्त्व (Root Pressure and its Importance):
जड़ की कार्टेक्स कोशिकाएं जल को मूलरोमों से लेकर जाइलम वाहिनियों तक पहुंचाती हैं। इस क्रिया में परासरण का विशेष महत्व हैं। इन कोशिकाओं के स्फीत होने से एक दाब उत्पन्न होता है जो जल को जाहलम तक निरन्तर धकेलने में सहायक होता हैं। इस दाब को मूलदाब कहते हैं। जाइलम वाहिकाओं में इस दाब के कारण जल काफी ऊंचाई तक चढ़ जाता है|
मूलदाब का प्रयोग द्वारा प्रदर्शनी(Demonstration of Root Pressure By Experiment):
गमले में लगे पौधे को अच्छी तरह जल से सीचते हैं। पौधे के तने को मिट्टी से 7-8 सेमी ऊपर तेज चाकू की सहायता से काट देते हैं। तने के कटे हुए सिरे पर रबड़ की एक नलिका की सहायता से एक मैनोमीटर फिट कर दिया जाता हैं। मैनोमीटर के 'U' भाग में पारा भरा हैं। रबड़ की नली के अन्दर तथा मैनोमीटर के शेष भाग में जल भर लिया जाता हैं। उपकरण को स्टैण्ड में कसकर कुछ समय के लिए छोड दिया जाता हैं। पैमाने (स्केल) पर पारे का तल प्रयोग के प्रारम्भ में तथा बाद में पढ़ लिया जाता हैं। पारे का तल, जो मैनोमीटर की खडी भुजा में चढ़ा है, मूलदाब को प्रदर्शित करता हैं। कटे हुए तने की जाइलम वाहिनियों में से मूलदाब के कारण जल रबड़ की नली में उपस्थित जल को ऊपर धकेलता है जिससे मैनोमीटर में पारे का तल ऊपर चढ़ जाता हैं।
हिल एवं स्कारिस्ब्रिक (Hill and Scarisbrick) ने हरितलवक को पृथक करके प्रकाश की उपस्थिति में होने वाले जल - अपघटन की प्रकिया का पता लगाया| इनके अनुसार प्रकाश संश्लेषण एक उपचयिक (anabolic) क्रिया हैं| यह क्रिया दो चरणों में पूर्ण होती हैं
(i) प्रकाशिक क्रिया तथा
(ii) अप्रकाशिक क्रिया|
प्रकाशिक क्रिया को हिल अभिक्रिया भी कहते हैं। इसमें जल के अपघटन से O2 सह्रउत्पाद के रूप में मुक्त होती हैं। CO2 के अपचयन हेतु आवश्यक ड़लेवट्रॉन जल के अपघटन से प्रकाशिक अभिक्रिया में प्राप्त होते हैं।
बिन्दु स्रावण(Guttation):
यह क्रिया जलरन्धों द्वारा होती हैं। जलरन्ध्र, अनेक शाकीय पौधों की पतियों में शिराओं और उनकी शाखाओं के अन्तिम सिरे पर पाए जाते हैं। इन जलरन्धों की रचना निष्किय द्वार कोशिकाओं से होती हैं। इनके बीच में उपस्थित छिद्र एक गुहिका में खुलता हैं। इस गुहिका का निर्माण पाली निति वाली मृदूतकी कोशिकाओं से होता है। इनको एपीथेम (epithem) कहते हैं। बिन्दु स्त्रावण अधिक अवशोषण और कम वाष्पोत्सर्जन की अवस्था में; जैसे सुबह के समय ही सबसे अधिक होता है। ऐसा माना जाता है कि जाइलम वाहिनियों में जल पर दबाव के कारण जल, एपीथेम के अन्तराकोशिकीय स्थानों में धकेल दिया जाता है।
यह क्रिया इन स्थानो में उपस्थित शिराओं के सिरों द्वारा होती है। यहीं पानी बूँदों के रूप में इन ज़लरन्धों से बाहर आ जाता हैं। यह कार्य धनात्मक मूल दाब के कारण होता है। जल की बूँदों के साथ घुले हुए पदार्थ भी निकलते है, जो सूख जाने पर पपडी के रूप में पत्ती पर जमा होते देखे जा सकते हैं। बिन्दु स्त्रावण टमाटर, कचालू, नॉस्टशिर्यम, पिस्टिया तथा घासों' में देखा जा सकता है। सुबह के समय जिस जल को हम ओस की बुँदे समझते है, वास्तव में वह बिन्दु स्त्रावण के द्वारा निकला हुआ तरल कोशिका रस (cell sap) होता है।
विसरण तथा परासरण में क्या अन्तर है(Differences between Diffusion and Osmosis):
क्र.सं. | विसरण (Diffusion) | परासरण (Osmosis) |
1.
2. 3.
4. | विसरण क्रिया ठोस, गैस, द्रव सभी में हो सकती है| विसरण करने वाले दो पदार्थों के बीच किसी प्रकार की कला की आवश्यकता नहीं है| विसरण सभी दिशाओं में होने वाली क्रिया है| इस क्रिया में विसरण दाब उत्पन्न होता है जिसके कारण अणु गति करते है| | यह क्रिया केवल द्रव और उसमें घुले पदार्थों में ही होती है| परासरण के लिए दोनों द्रवों के मध्य अर्द्धपारगम्य कला का होना आवश्यक है| यह निश्चित दिशाओं में होने वाली क्रिया हैं| परासरण दाब उत्पन्न होता है जो घोल की सांद्रता पर निर्भर करता है| |
वाष्पोत्सर्जन:
पौधे के वायवीय भागो (रन्ध्र, वातरन्ध्र पत्ती की उपत्वचा) से ज़लबाष्प के रूप में होने वाली जल हानि को वाष्पोत्सर्जन कहते है।
महत्त्व - (1) जड़ द्वारा अवशोषित जल का पौधे के सभी भागो में निरन्तर विसरण होता रहता है। जल के साथ घुलित पदार्थों का भी वितरण हो जाता हैं।
(2) वाष्पोत्सर्जन के कारण वायवीय भागो में उत्पन्न चूषण दाब के कारण रसारोहगा तथा जल का मृदा से वशोषण होता है।
(3) वाष्पोत्सर्जन के करण पौधे का ताप सामान्य बना रहता है।
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : जीवन की प्रक्रियाएँ, पार्ट-VII
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : जीवन की प्रक्रियाएँ, पार्ट-VIII
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