UP Board कक्षा 10 विज्ञान के 18th जीवन की प्रक्रियाएँ (activities of life or processes) के 7th पार्ट का स्टडी नोट्स यहाँ उपलब्ध है| हम इस चैप्टर नोट्स में जिन टॉपिक्स को कवर कर रहें हैं उसे काफी सरल तरीके से समझाने की कोशिश की गई है और जहाँ भी उदाहरण की आवश्यकता है वहाँ उदहारण के साथ टॉपिक को परिभाषित किया गया है| इस लेख में हम जिन टॉपिक को कवर कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं:
1. वाष्पोत्सर्जन (Transpiration)
2. वाष्पोत्सर्जन के प्रकार (Kinds of Transpiration)
3. रंध्रिय वाष्योंत्सर्जन (Stomatal Transpiration)
4. उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन (Cuticular Transpiration)
5. रन्ध्र के खुलने व बन्द होने की प्रक्रिया (Mechanism of Opening and Closing of Stomata)
6. वाष्पोत्सर्जन तथा बिन्दू स्रावण में अन्तर (Differences between Transpiration and Guttation)
वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) :
पौधे मृदा से जल एवं खनिज पदार्थ का निरन्तर अवशोषण करते रहते है। पौधे अवशोषित जल का लगभग 1 % अपनी जैविक क्रियाओं में प्रयोग करते है, शेष जल पौधों के वायवीय भागों से जलवाष्प के रूप में बाहर निकल जाता है। पौधे के वायवीय भागों से होने वाली जलहानि को वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) कहते हैं!
वाष्पोत्सर्जन के प्रकार (Kinds of Transpiration):
पौधों के वायवीय भागों से वाष्पोत्सर्जन होता है। यह अधिकतर पतियों से होता है। वाष्पोत्सर्जन निम्न प्रकार का होता है|
1. रंध्रिय वाष्योंत्सर्जन (Stomatal Transpiration) - रन्ध्र मुख्यतया पतियों पर पाए जाते हैं। रन्ध्रों से जलवाष्प विसरण द्वारा वायुमण्डल में चली जाती है। लगभग 90% वाष्पोत्सर्जन रन्ध्रों द्वारा होता है।
2. उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन (Cuticular Transpiration) - बाह्य त्वचा पर उपत्वचा या उपचर्म (cuticle) की परत पाई जाती है। यह वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करती है। कुछ मात्रा में जलवाष्प उपत्वचा से विसरण द्वारा वायुमण्डल में चली जाती है। इसे उपत्व्चीय वाष्पोत्सर्जन कहते है। यह कुल वाष्पोत्सर्जन का लगभग 3-9% होता है।
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : मानव शरीर की संरचना, पार्ट-VI
3. वातार्न्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन (Lenticular transpiration) - काष्ठीय पौधों के तने और शाखाओं पर उपस्थित वातरन्धों (lenticles) से कुछ जलवाष्प विसरित हो जाती है। इसे वातार्न्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन कहते है। यह कुल वाष्पोत्सर्जन का लगभग 1% होता है।
रन्ध्र के खुलने व बन्द होने की प्रक्रिया (Mechanism of Opening and Closing of Stomata):
रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन की दर रन्धों के खुलने तथा बन्द होने पर निर्भर करती हैं। रन्ध्र का खुलना तथा बन्द होना रक्षक कोशिकाओं की स्फीति (turgidity) पर निर्भर करता है। जब ये कोशिकाएँ स्फीत (turgid) होती है तो रन्ध्र खुला रहता है और जब शलथ (flaccid) होती है तो रन्ध्र बन्द हो जाता है।
दिन के समय जब रक्षक कोशिकाओं की कार्बन डाइआक्साइड (CO2) प्रकाश संश्लेषण में प्रयुक्त हो जाती है तो रक्षक कोशिका का माध्यम क्षत्रीय हो जाता है, रक्षक कोशिका में संचित स्टार्च ग्लूकोस में बदल जाता है। इस कारण रक्षक कोशिकाओं का रिक्तिका रस (cell sap) अधिक सान्द्र हो जाता है। रक्षक कोशिकाएँ समीपवर्ती सहायक कोशिकाओं से परासरण द्वारा जल अवशोषित करके स्फीत हो जाती है, जिससे अन्दर वाली मोटी भिती भीतर की तरफ खिच जाती है और रन्ध्र खुल जाता।
रात्रि के समय, जब रक्षक कोशिकाओं में प्रकाश संश्लेषण नहीं होता तो श्वसन के कारण CO2 की मात्रा बढ़ने के कारण इनका माध्यम अम्लीय हो जाता है तो कोशिकाओं में उपस्थित शर्कराएँ स्टार्च (starch) में बदल जाती हैं। अघुलनशील मण्ड के कारण रक्षक कोशिकाओं का परासरणीय दाब कम हो जता है, रक्षक कोशिकाओं से जल समीपवर्ती सहायक कोशिकाओं में चला जाता है, जिसके कारण रक्षक कोशिकाएँ श्थल दशा में आ जाती है। रक्षक कोशिकाओं की भित्तियों के मूल दशा में वापस आ जाने से रन्ध्र बन्द हो जाते है।
सेयरे (Sayre, 1972) के अनुसार pH मान अधिक होने पर फॉस्फोरिलेज एन्जाइम रक्षक आशंकाओं के स्टार्च को ग्लूकोस फॉस्फेट में बदल देता है जिससे रक्षक कोशिकाओं का परासरण दाब बढ़ जाता है और ये समीपवर्ती कोशिकाओं से जल अवशोषित करके स्फीत दशा में आ जाती हैं। रक्षक कोशिकाओं का pH मान कम होने पर रक्षक कोशिकाओं का ग्लूकोस फॉस्फेट स्टार्च में बदल जाता है। रक्षक कोशिकाओं का परासरणी दाब कम हो जाता है और कोशिकाएँ शलथ दशा में आ जाती हैं।
वाष्पोत्सर्जन तथा बिन्दू स्रावण में अन्तर (Differences between Transpiration and Guttation):
क्र. सं. | वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) | बिन्दु स्त्रावण (Guttation) |
1.
2.
3.
4.
5. | यह पौधे की वायवीय सतह से रन्ध्र, उपत्वचा या वातरन्ध्र से होने वाली क्रिया है| जल, वाष्प (vapours) के रूप इ विसरित होता है| अन्तराकोशिकीय स्थानों (intercellular spaces) में जो जलवाष्प संचित होती है, वही रन्ध्रों द्वारा विसरित होती है| इस क्रिया के कारण जल संवहन करने वाली वाहिकाओं में खिंचाव (transpiration pull) पैदा होता है, जो रसारोहण में सहायता करता है| इसके कारण उत्पन्न वाष्पोत्सर्जनाकर्षण के कारण जल का निष्क्रिय अवशोषण होता है| | यह जल रन्ध्रों (hydathodes) से होने वाली एक ही प्रकार की निश्चित क्रिया है| जल,कोशारस के रूप में उत्सर्जित होता है| दारू वाहिकाओं (Xylem vessels) के खुले सिरों से कोशारस तरल रूप में पत्तियों के शीर्ष,पर्णतट आदि से निकलता दिखाई देता है| पौधे में इसके कारण कोई दाब उत्पन्न नहीं होता|
जड़ द्वारा सक्रिय अवशोषण के कारण उत्पन्न मुलदाब के कारण यह क्रिया होती है |
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