UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : जैव प्रौधोगिकी

Dec 4, 2017, 12:33 IST

आज हम आपको UP Board कक्षा 10 वीं विज्ञान अध्याय 25;जैव प्रौधोगिकी (Biotechnology) का स्टडी नोट्स उपलब्ध कर रहे है| यहाँ शोर्ट नोट्स उपलब्ध करने का एक मात्र उद्देश्य छात्रों को पूर्ण रूप से चैप्टर के सभी बिन्दुओं को आसान तरीके से समझाना है| इसलिए इस नोट्स में सभी टॉपिक को बड़े ही सरल तरीके से समझाया गया है और साथ ही साथ सभी टॉपिक के मुख्य बिन्दुओं पर समान रूप से प्रकाश डाला गया है|

UP Board class 10 science notes
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UP Board कक्षा 10 विज्ञान के 25th चैप्टर : जैव प्रौधोगिकी (Biotechnology) का स्टडी नोट्स यहाँ उपलब्ध है| हम इस चैप्टर नोट्स में जिन टॉपिक्स को कवर कर रहें हैं उसे काफी सरल तरीके से समझाने की कोशिश की गई है और जहाँ भी उदाहरण की आवश्यकता है वहाँ उदहारण के साथ टॉपिक को परिभाषित किया गया है| इस लेख में हम जिन टॉपिक को कवर कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं:

जैव प्रौधोगिकी (Biotechnology) :

जैव प्रौद्योगिकी अथवा जैव तकनीकी ऐसो प्रक्रिया है जिसमें सजीवों अथवा उनसे प्राप्त प्रदार्थों का उपयोग औद्योगिक स्तर पर किया जाता हैं। अथवा

"जैव रसायन, सूक्ष्म जीव विज्ञान, आनुवंशिकी और रसायन अभियान्त्रिकी के तकनीकी ज्ञान का एकात्मक सघन उपयोग ही जैव प्रौद्योगिकी (biotechnology) है।" जैव प्रौद्योगिकी ऐसी तकनीकी प्रक्रियाएँ है जिनके द्वारा हम न केवल DNA में हेर-फेर कर सकते है वरन सजीवों का भी किसी विशेष प्रयोजन हेतु उपयोग कर सकते हैं।

जैव तकनीकी के उपयोग से जैविक क्रियाओं द्वारा विभिन्न लाभदायक उत्पादो का निर्माण किया जाता है। इन उपयोगी उत्पादों के निर्माण की प्रक्रियाओं में जीवाणुओं, कवकों, शैवालों, उच्च पादपों व प्राणी कोशिकाओं या इनके उपतंत्रों अथवा इनके जैविक पदार्थों से पृथक किए गए यौगिको का उपयोग किया जाता है। जब इस जैव तकनीकी ज्ञान का उपयोग औद्योगिक स्तर पर किया जाता है तो इसे जैव प्रौद्योगिकी कहते हैं। जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग प्राचीनकाल से किण्वन द्वारा शराब निर्माण में किया जा रहा है, अत: शराब को जैव प्रौद्योगिकी का प्रथम उत्पाद माना जा सकता है।

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जीनी अभियान्त्रिकी (Genetic Engineering) :

इसे पुन: संयोजित DNA तकनीक या जीन क्लोनिंग (gene cloning) भी कहते हैं। जीवों में समलक्षणी गुणों में परिवर्तन हेतु आनुवंशिक पदार्थ को जोड़ना, पृथकृ करना, मरम्मत करना जीन अभियान्त्रीकी कहलाता है।

उपयोग (Uses) - (i) जीनी अभियान्त्रिकी द्वारा कृषि योग्य पशुओं की नस्ल में सुधार लाया जा सकता है।

(ii) किसी विशेष कार्य; जैसे - औषधियों के लिए, मानव शरीर में बनने वाले पदार्थ एवं रसायन अथवा प्रत्यारोपण हेतु अंगों को सुलभ कराने के लिए आवश्यक पशुओं को जल्दी तैयार किया जा सकता है।

ट्रान्सजेनिक प्राणी (Transgenic Animals) :

जन्तु कोशिकाओं के अत्यधिक जटिल होने के करण इनका कृत्रिम संवर्धन अधिक कठिन है। जीन पुनर्सयोज़न तकनीक द्वारा भेड़, बकरी, सूअर, खरगोश आदि के ट्रान्सजेनिक जन्तु तैयार कर लिए गए हैं। यह प्रक्रिया मानव रोगो के उपचार में साहयक सिद्ध हो सकती है। इनका उपयोग रोगों के अध्ययन में किया जाता है। रोगों के उपचार हेतु जैविक उत्पादों से औषधि तैयार करके अनेक रोगों का उपचार किया जाता है, जैसे - फिनाइल कीटोन्यूरिया रोग में।

जैव प्रौद्योगिकी एवं जीन अभियांत्रिकी के कारण आज हम हरित कान्ति से जीन क्रान्ति की ओर बढ़ रहे हैं। शुक्राणुओं, अणडाणुओँ, भ्रूण, बीज आदि को लम्बी अवधि तक सुरक्षित रखने की नईं – नईं तकनीके विकसित हो चुकी है और आज के मानव को बढती हुईं आबादी के भोजन आपूर्ति हेतु ट्रान्सजेनिक पादप और जन्तुओं पर निर्भर रहना पडेगा, लेकिन अभी यह सुनिश्चित होना शेष है कि ये ट्रान्सजेनिक पादप और जन्तु मानव और पर्यावरण के लिए सुरक्षित है अथवा नहीं। कहीं इनके आनुवंशिक दुष्प्रभाव हमारे लिए घातक सिद्ध न हों।

ट्रान्सजेनिक पादप (Transgenic Plants) :

पादप कोशिकाओं में विदेशी जीन (उस पादप कुल अथवा किसी अन्य पादप कुल का) को वेक्टर की सहायता से स्थानान्तरित करने से प्राप्त पादप को ट्रान्सजेनिक पादप कहते हैं। वैज्ञानिक मनचाहे लक्षणों का समावेश करके नए ट्रान्सजेनिक पादप तेयार कर रहे है, जैसे शाकनाशी सहनशीलता (herbicide tolerance), कीटों के प्रति सहनशीलता (insect tolerance), विषाणुओं से संरक्षण (virus portection) आदि लक्षणों का पौधों में समावेश करके इनको मानव के लिए उपयोगी बनाया जा रहा है। वैज्ञानिको ने बीटी कपास, आलू टमाटर, बीटी मबका, बैंगन, सोयाबीन आदि की अत्यधिक, उत्पादन व कीटों के प्रति सहनशील प्रजातियाँ विकसित कर ली हैं। इसके लिए कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं रह गई है। लेकिन इनकी मानव प्रजाति के लिए आनुवंशिक उपयोगिता की पुष्टि होनी शेष है।

DNA फिंगरप्रिंट का अर्थ तथा उपयोग:

DNA का एंडोन्यूक्लिएज (endonuclease) एन्जाइम की सहायता से विदलन करके DNA खण्डों की मैचिंग द्वारा किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है। क्योंकिं प्रत्येक जीव के DNA की संरचना तथा आनुवंशिकता विशिष्ट और अन्य जीवों से भिन्न होती है। इस तकनीक को DNA फिंगर प्रिटिंग कहते हैं। इस तकनीक की खोज एलेक जेफ्रीव (1986) ने की थी।

उपयोग - (1) इस तकनीक द्वारा अपराधी की पहचान की जा सकती है।

(2) इस तकनीक के द्वारा किसी व्यक्ति के माता - पिता की या सन्तान की पहचान की जा सकती है।

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