काउंसलर कॉर्नर

Jan 28, 2009, 04:01 IST

इस बार के काउंसलर कॉर्नर कॉलम में पाठकों द्वारा जोश इम्पैक्ट में पूछे गए सवालों का जवाब दे रहे हैं काउंसलर अमन सिंह..

तैयारी से मिलेगी सफलता

पीसीएस परीक्षा के महत्व और इसके स्वरूप के बारे में जानकारी देते हुए सफल होने के टिप्स भी बताएं ?

कुमारी नीतू सिंह, आगरा

पीसीएस यानी प्रोविंशियल सिविल सर्विस एग्जाम का आयोजन विभिन्न राज्यों में प्रशासनिक एवं अन्य पदों को भरने के लिए किया जाता है। इनका स्वरूप बिल्कुल एक जैसा तो नहीं, लेकिन मिलता-जुलता अवश्य कहा जा सकता है। पहले प्रिलिमिनरी एग्जाम होता है, जिसमें दो ऑब्जेक्टिव टाइप के पेपर होते हैं। इनकी अवधि दो-दो घंटे की होती है। इनमें एक कम्पलसरी पेपर होता है और दूसरा ऑप्शनल। इसमें सफल होने वाले युवा ही मुख्य परीक्षा में शामिल हो सकते हैं। इसमें भी दो विषयों के वैकल्पिक प्रश्नपत्रों के अलावा, जनरल हिन्दी और जरनल स्टडीज (दो पेपर) होते हैं। विषयों का चयन निम्न सूची से किया जा सकता है : कृषि प्राणिविज्ञान, वाणिज्य, रसायन विज्ञान, भौतिकी, गणित, भारतीय इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, समाज विज्ञान, दर्शन शास्त्र, भूगर्भ विज्ञान, मनोविज्ञान, वनस्पति विज्ञान, विधि, पशुपालन एवं चिकित्सा विज्ञान, सांख्यिकी, लोक प्रशासन, इंजीनियरिंग इत्यादि। मुख्य परीक्षा में सफल होने वाले प्रत्याशियों को ही इंटरव्यू के लिए आमंत्रित किया जाता है। परीक्षा का सिलेबस अमूमन ग्रेजुएशन स्तर का ही होता है। अधिक जानकारी पाने के लिए संबंधित वेबसाइट भी देखी जा सकती है।

ले सकते हैं एडमिशन

एमफिल (कॉमर्स) करना चाहता हूं। कृपया आवश्यक जानकारी के साथ संस्थानों के बारे में भी बताएं?

धनंजय सिंह, मैनपुरी (उ.प्र)

एमकॉम के बाद ही आप इस विशेष उच्च अध्ययन आधारित कोर्स में दाखिला ले सकते हैं। कोर्स के सिलेबस में कई पेपर होते हैं, जो कि बैंकिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज, मार्केटिंग मैनेजमेंट, फाइनैंशियल मैनेजमेंट, कैपिटल मार्केट एनालिसिस, मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम, अकाउंटिंग ऐंड टैक्सेशन,  इंश्योरेंस ऐंड रिस्क मैनेजमेंट, ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट तथा एंट्रपॅ्रन्योरशिप डेवलॅपमेंट विषयों पर आधारित होते हैं। गंभीर अध्ययन एवं विविध रेफरेंस बुक्स की सहायता से इस स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन किया जा सकता है। सिलेबस और एडमिशन की प्रक्रिया के बारे में निम्न विश्वविद्यालयों से संपर्क किया जा सकता है। इनमें से कई ऐसे संस्थान भी हैं, जिनमें कॉरेस्पॉन्डेंस कोर्स के जरिए भी यह कोर्स संचालित किया जाता है।

इनमें प्रमुख रूप से

अलगप्पा यूनिवर्सिटी (कराईकुडी)

भरथियार यूनिवर्सिटी (कोयम्बटूर)

डॉ.बी.आर. अम्बेडकर ओपन यूनिवर्सिटी (हैदराबाद)

हिमाचल प्रदेश इंटरनेशनल सेंटर फॉर डिस्टेंस एजुकेशन (शिमला)

काकतिया यूनिवर्सिटी (वारंगल)

मदुरै कामराज यूनिवर्सिटी (तमिलनाडु)

टी.एस.यूनिवर्सिटी (तिरूवेल्वेरी तमिलनाडु) का नाम है, जबकि रेगुलर कोर्स के लिए अन्नामलाई यूनिवर्सिटी (अन्नमलाईनगर), बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी (भोपाल), दिल्ली यूनिवर्सिटी (दिल्ली) आदि से संपर्क किया जा सकता है।

संगम है बायोलॉजी और इंजीनियरिंग का

बायोमेडिकल इंजीनियरिंग से क्या आशय है? इस कोर्स के लिए किस प्रकार की शैक्षिक पृष्ठभूमि होनी चाहिए?

सुनील खत्री, दिल्ली

बायोमेडिकल इंजीनियरिंग असल में मेडिकल साइंस और इंजीनियरिंग के संगम से उपजी नई विधा है। इसका मतलब यही है कि मेडिकल साइंस के क्षेत्र में इंजीनियरिंग एवं तकनीकों का उपयोग। इसी इंजीनियरिंग शाखा की बदौलत चिकित्सा क्षेत्र के तमाम उपकरण, सॉफ्टवेयर और अन्य डायग्नोस्टिक उपकरणों का आविष्कार संभव हो सका है। आधुनिक एलोपैथी चिकित्सा पद्धति में डॉक्टरों द्वारा संपूर्ण जांच की रिपोर्ट आने के बाद ही इलाज की दिशा तय की जाती है। ऐसे में एक्स-रे, ईसीजी, एमआरआई, अल्ट्रा साउंड, सीटी स्कैन, एंडोस्कोपी आदि तकनीकों के जरिए डायग्नोस्टिक रिपोर्ट प्राप्त की जाती है। इन अद्यतन उपकरणों के निर्माण, रखरखाव और संचालन से जुडे कार्यो में इन बायोमेडिकल इंजीनियरों की सेवाएं ली जाती हैं। देश में 10+2 के बाद इस विषय पर आधारित कई कोर्स संचालित किए जाते हैं। इनमें बीई (बायोमेडिकल इंजी), बीई (बायोमेडिकल इंस्ट्रूमेंटेशन), बीटेक (बायोमेडिकल इंस्ट्रूमेंटेशन कंट्रोल ऐंड बायोमेडिकल  इंजी), बीएससी (अप्लाइड बायोमेडिकल साइंस) आदि का खासतौर से उल्लेख किया जा सकता है। विशेष जानकारी के लिए जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (हैदराबाद), पूना विश्वविद्यालय (पुणे), गुरु जम्भेश्वर यूनिवर्सिटी (हिसार), उस्मानिया यूनिवर्सिटी (हैदराबाद), गुरू नानक देव यूनिवर्सिटी (अमृतसर) आदि से संपर्क किया जा सकता है।

अमन सिंह

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